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चंद रुपयों और सियासी फायदे से बढ़कर है 'लाडली बहना', सरकार ने 100 दिनों में कैसे सफलतापूर्वक किस्त पहुंचाई?

Ladli Behna Yojana से जुड़े इंजीनियर राहुल गुर्जर का कहना है कि हम लगभग 16-20 घंटे काम करते थे. इसमें रिक्वायरमेंट चेंज करना ये हमारा मुख्य टास्क था. वहीं दूसरी इंजीनियर शिवानी कहती हैं कि जब से ये प्रोजेक्ट आया था, हम सभी ने लगातार काम किए सारे त्योहार छोड़े, कोई बीमार है तो भी उसने कोशिश कि वह काम करे.

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चंद रुपयों और सियासी फायदे से बढ़कर है 'लाडली बहना', सरकार ने 100 दिनों में कैसे सफलतापूर्वक किस्त पहुंचाई?
भोपाल:

Madhya Pradesh Election Results 2023 : चुनावी साल में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) ने अपनी योजनाओं के पिटारे में से लाडली बहना योजना को निकाला. इस योजना का जादू प्रदेश की महिलाओं के साथ-साथ वोटर्स पर ऐसा चला कि वोटिंग और काउंटिंग के दौरान सबने एक सुर में कहा लाडली बहना... लाडली बहना... मध्य प्रदेश में 100 दिनों के आस-पास इस योजना में एक करोड़ 25 लाख से ज्यादा बहनों को जोड़ा गया. यही बहनें और महिलाएं जो परिवार तो संभालती ही थीं लेकिन उनको इस योजना से जो संबल मिला उससे अब वे अपने घर के लिये छोटा-मोटा बाज़ार भी देख सकती हैं. मध्यप्रदेश में आधी आबादी के लिये शिवराज सरकार की 'लाडली बहना' योजना को शिवराज सिंह चौहान का मास्टर स्ट्रोक माना गया था.

बीजेपी और कांग्रेस में लगी होड़

वहीं कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ने फौरन लाडली बहना योजना की काट के लिये सरकार बनने पर नारी सम्मान योजना शुरू करने की बात की थी, जिसमें कहा गया था कि महिलाओं को 1500 रुपये दिये जाएंगे. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने पलटवार किया. सीएम शिवराज और पार्टी की ओर से कहा जाने लगा कि शुरूआत 1000 रुपये से कर रहे है लेकिन इसे हम 3000 रुपए तक करेंगे. ख़ैर ये कहानी वार-पलटवार की नहीं है. ये पूरी कहानी इस व्यवस्था की है, जिसके दम पर सरकार 100 दिनों में सवा करोड़ महिलाओं के खाते में लगभग शत प्रतिशत सफलता के साथ पैसे पहुंचा पायी है.

100 दिन में 1 करोड़, 25 लाख से भी ज्यादा लाडली बहना बनीं

लाडली बहना योजना में सरकार को कुल 1 करोड़ 25 लाख 33 हजार 145 आवेदन मिले थे वहीं 2 लाख 3 हजार 42 आवेदनों पर ऐतराज हुआ, जांच के बाद 1 करोड़ 25 लाख 5 हजार 947 पात्र मिले जिनके खाते में लगभग 99 फीसद सफलता के साथ 1000 रुपये ट्रांसफर किए गये.  इसके साथ ही सरकार कहती रही कि ये रकम और बढ़ाई जाएगी.

मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना शुरू तो 1 हजार रुपये से हुई है, लेकिन अभी तो ये अंगड़ाई है. तुम्हारे भाई ने 1 हजार रुपये से शुरू किया है लेकिन इसे और बढ़ाता जाऊंगा, बाद में साढ़े 12 सौ रुपये कर दूंगा, इसके बाद बढ़ाकर 1500 रुपये कर दूंगा, यही नहीं रुकूंगा 1700 और उसके बाद 2000, फिर 2250 इसके बाद 2500 फिर 2700 और उसके बाद हर महीने 3 हजार रुपये कर दूंगा.

शिवराज सिंह चौहान

मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

लेकिन ये सब हुआ कैसा?

लाडली बहना के फॉर्म भरने के लिये कतार लगती थी. बगैर किसी तामझाम के चंद मिनटों में रजिस्ट्रेशन हो जाता था. ये रजिस्ट्रेशन एक मोबाइल से भी हो जाते थे. इस प्रक्रिया को 40-50 लोगों की टीम ने सार्थक कर दिखाया था. जिन्होंने रिकॉर्ड 100 दिनों में इस पहाड़ को अपनी मेहनत और कुशाग्रता से फतह कर लिया. वहीं इस चुनौती में उनको जैम (JAM) यानी जनधन (Jan Dhan Account), आधार (Aadhar Number) और मोबाइल (Mobile) का साथ मिला.

MPSEDC के एमडी अभिजीत अग्रवाल बताते हैं कि समग्र केवायसी (Samagra KYC) से पूरा डेटा मिल जाता था, हमने महिलाओं की तस्वीर ली थी, तकनीकी रूप से क्लाउड बेस स्केलेबल बनाया था. हमने सारे मीडियम इस्तेमाल किये. व्हाट्सएप पूरा बैकबोन आधार बेस्ड था, यूजर को समझाना जरूरी था कि आधार को खाते से लिंक कराना है. पिछले 3 महीने में जब स्कीम रोलआउट हुई, तो मल्टीपल टाइम नज किया, मल्टीपल टाइम चाहे नगर पालिका हो पंचायत हो जिससे वो आउटरीच अच्छे से हो पाये.

16-20 घंटे करते थे काम

मध्यप्रदेश में 23 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतें हैं, 7 हजार से ज्यादा वार्ड हैं. कभी ऐसा भी होता था कि लाडली बहना के एप पर 50 हजार से ज्यादा यूजर्स की जानकारी भरी जा रही होती थी, ये सब कुछ 40-50 लोगों की टीम संभाल रही थी.

इंजीनियर राहुल गुर्जर का कहना है कि हम लगभग 16-20 घंटे काम करते थे. इसमें रिक्वायरमेंट चेंज करना ये हमारा मुख्य टास्क था. वहीं दूसरी इंजीनियर शिवानी कहती हैं कि जब से ये प्रोजेक्ट आया था, हम सभी ने लगातार काम किए सारे त्योहार छोड़े, कोई बीमार है तो भी उसने कोशिश कि वह काम करे.

लाडली बहना से जो सिस्टम बना उसका सबसे बड़ा फायदा ये हुआ है कि इस योजना के पैसे लाभार्थी महिला के ही पास गए हैं, उनके पति या पिता के पास नहीं. इससे बहनों-माताओं की वित्तीय और डिजिटल साक्षरता बढ़ी है. उन्होंने खुद के बैंक खाता खुलवाए. MPSEDC के एमडी अभिजीत अग्रवाल ने बताया कि महिला ने अगर समग्र में ईकेवायसी करा लिया है, बैंक खाता आधार से लिंक है तो सारी जानकारी सीधे आ जाएगी, ऐसे में ह्यूमन एरर खत्म हो जाती है ना नाम एंट्री कराना है ना डेमोग्राफी.

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एमपी में इसलिए भी जरुरी है 'लाडली बहना योजना'

हमें यहां पर ये समझना भी ज़रूरी है कि मध्यप्रदेश जैसे राज्य में ये योजना भले ही सियासी दिख रही है लेकिन इसकी जरूरत वाकई में भी है, क्योंकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक राज्य में 23.0 प्रतिशत महिलाएं मानक बॉडी मास् इन्डेक्स से कम के स्तर पर हैं. 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं में एनीमिया का स्तर 54.7 प्रतिशत है. ग्रामीण इलाके में श्रमबल में 57.7 प्रतिशत भागीदारी पुरूषों की है, वहीं महिलाओं की सिर्फ 23.3 प्रतिशत है. शहरी इलाके में 55.9 प्रतिशत पुरुष रोजी कमाते हैं, जबकि सिर्फ 13.6 प्रतिशत महिलाओं की ही श्रम बल में भागीदारी है.

यह पूरी कहानी 1000 रुपये और चुनावी फायदे से कहीं आगे की है. आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाओं की श्रम में भागीदारी पुरुषों की अपेक्षा कम है, जिससे वे आर्थिक रूप से स्वावलंबी नहीं बन पाती हैं. ऐसे में लाडली बहना जैसी योजना उनके स्वास्थ्य (Health), पोषण और स्वालंबन की दिशा में एक छोटा कदम जरूर है, जिसे तकनीक का साथ मिला है.

यह भी पढ़ें : Madhya Pradesh Election Results : मध्य प्रदेश के सभी सियासी अंचलों का हाल, जानिए BJP-कांग्रेस का नफा-नुकसान

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