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Analysis : MP में 'मोहन' और छत्तीसगढ़ में 'विष्णु' राज से BJP ने चली चाल, जो आएगी 2024 में काम?

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक हफ्ते से ज्यादा के चिंतन-मनन के बाद बीजेपी ने डॉ मोहन यादव और विष्णुदेव साय को दोनों राज्यों की कमान सौंप दी. पार्टी ने दोनों ही राज्यों में कई सीनियर नेताओं को दरकिनाकर करके इन्हें कमान सौंपी है. आखिर इसके पीछे की वजहें क्या हैं?

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Analysis : MP में 'मोहन' और छत्तीसगढ़ में 'विष्णु' राज से BJP ने चली चाल, जो आएगी 2024 में काम?

MP-CG Election result 2023: आखिरकार 9 दिनों के चिंतन-मनन के बाद बीजेपी ने उज्जैन दक्षिण के विधायक डॉ मोहन यादव (Dr Mohan Yadav) को मध्यप्रदेश की कमान सौंप दी. वे कद्दावर ओबीसी नेता शिवराज सिंह चौहान के उत्तराधिकारी होंगे. डॉ मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी आलाकमान ने चौंकाने वाले फैसले लेन की अपनी परंपरा को कायम रखा क्योंकि बीते नौ दिनों से डॉ यादव का नाम रेस में कहीं भी नहीं था. कुछ ऐसा ही छत्तीसगढ़ में हुआ था जहां पार्टी ने 8 दिनों के मंथन के बाद विष्णु देव साय (Vishnu Dev Sai) को प्रदेश का मुखिया चुना...हालांकि साय का नाम रेस में था लेकिन उन्हें भी कई सीनियर नेताओं को दरकिनार करके ये अहम जिम्मेदारी मिली है. ऐसे में ये जानना दिलचस्प होगा कि आखिर बीजेपी ने दोनों पड़ोसी राज्यों में नए नामों पर दांव क्यों खेला. पहले बात मध्यप्रदेश की. 

1. ओबीसी सियासत को धार दी बीजेपी ने

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, प्रह्लाद पटेल, नरेन्द्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गज CM पद की रेस में बताए जा रहे थे लेकिन अंतत: बीजेपी ने सूबे की कमान डॉ मोहन यादव को सौंप दी. इसकी पीछे कई वजहें हैं लेकिन सबसे पहली वजह उनका ओबीसी समुदाय से आना है. मध्यप्रदेश में ओबीसी समुदाय सबसे बड़ा समुदाय है. इसी वजह से साल 2003 के बाद से बीजेपी ने हमेशा राज्य की कमान किसी ओबीसी नेता को ही सौंपी है.  

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2. BJP में आलाकमान ही सर्वोच्च है

डॉ मोहन यादव को CM बना कर बीजेपी ने संदेश दिया है कि पार्टी में आलाकमान ही सर्वोच्च है. वो बड़े नामों के प्रेशर में नहीं आता और जिस भी नेता को चाहे कमान सौंप सकता है. इससे पहले बीजेपी ने गुजरात और महाराष्ट्र में ऐसा किया भी है. दरअसल मध्यप्रदेश में चुनाव परिणाम आने के बाद से ही कई नेता अपनी-अपनी अहमियत अपने-अपने तरीके से जता रहे थे. खुद शिवराज (Shivraj Singh Chauhan) ये संदेश दे रहे थे कि 'लाड़ली बहना' योजना ने बीजेपी को जिताने में अहम भूमिका अदा की है. चुनाव परिणाम आने के बाद से वे लगातार महिलाओं से मिल रहे थे और प्रदेश के उन क्षेत्रों का दौरा कर रहे थे जहां बीजेपी कमजोर थी. यह एक तरह संदेश था कि शिवराज फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं.उधर कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya)कह रहे थे ये महिलाओं नहीं बल्कि मोदी की जीत है.जाहिर है इसके जरिए वे अपना दावा मजबूत कर रहे थे. 

3. पार्टी  नई पीढ़ी को आगे लाई

जेपी नड्डा और उनकी टीम ने डॉ मोहन यादव को CM बनाकर संदेश दिया है कि अब मध्य प्रदेश में नई पीढ़ी की राजनीति की जाएगी. मोहन यादव अभी 58 साल के हैं और उनके पास काफी वक्त है. सियासी लिहाज से देखें तो वे अपेक्षाकृत युवा हैं. पार्टी ने इसके जरिए राज्य में दूसरी पीढ़ी के नेताओं को तैयार करने का संदेश दिया है. 

4. 2024 के साथ-साथ यूपी-बिहार पर भी नजर

मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर BJP नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ-साथ यूपी-बिहार की सियासत पर भी निशाना साधा है. दरअसल विपक्षी INDIA गठबंधन जातिगत जनगणना और जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उतनी सत्ता में उसकी भागीदारी जैसे नारों को मुद्दा बना रही है. बीजेपी के इस फैसले के पीछे ये भी बड़ी वजह है. क्योंकि यूपी-बिहार में ओबीसी समुदाय सबसे बड़ी संख्या में हैं. इसके अलावा लोकसभा की सबसे अधिक सीटों वाले इन दो राज्यों में यादव वोट भी बड़ी संख्या में हैं. मोहन यादव को मध्यप्रदेश का सीएम बनाने से अगर यादव वोटों का कुछ परसेंट भी पार्टी अपनी ओर लाने में सफल होती है तो यह बीजेपी के बहुत बड़ी ताकत साबित होगी. 

5. युवा जोश और अनुभव का मिश्रण

मोहन यादव तीन बार के विधायक हैं. शिवराज सरकार में वे उच्च शिक्षा मंत्री के तौर पर काम कर चुके हैं. उनकी उम्र भी अभी 58 साल है. लिहाजा बीजेपी नेतृत्व को उनमें युवा जोश और अनुभव दोनों का तालमेल दिखा. इसके अलावा वे RSS की पृष्टभूमि से भी आते हैं.  

अब बात छत्तीसगढ़ की. बीजेपी ने वहां विष्णुदेव साय को कमान सौंपी है. जबकि वहां रेस में रमन  सिंह, अरुण साव और रेणुका सिंह जैसे नाम थे. इसके पीछे की वजहें भी दिलचस्प हैं

1. 'आदिवासी' होना विष्णुदेव के पक्ष में गया

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में पहली बार किसी आदिवासी चेहरे को राज्य का सर्वोच्च पद दिया है. ऐसे में यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि भाजपा ने सोची-समझी रणनीति के तहत विष्णुदेव साय को राज्य का नया मुख्यमंत्री चुना है. क्योंकि राज्य में 34 फीसदी आबादी आदिवासी है जो कि सरकार बनाने और हर चुनाव में काफी निर्णायक साबित होती है. वर्तमान में 29 आरक्षित सीटों में से 17 पर भाजपा को जीत मिली है। बता दें कि 2018 में इनमें से 27 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। वहीं लोकसभा चनावों में भाजपा ने राज्य की 11 सीटों में से 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। इनमें से 4 आरक्षित सीटों में से 3 पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी.  

2.  पड़ोसी राज्यों पर पड़ेगा असर 

विष्णु देव साय को छत्तीसगढ़ का CM बनाकर बीजेपी ने पड़ोसी राज्यों मध्यप्रदेश,झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और तेलंगाना की सियासत पर भी निशाना साधा है. बता दें कि मध्यप्रदेश में आदिवासियों के लिए 6 सीटें, ओडिशा-झारखंड में 5-5 सीटें, महाराष्ट्र में 4 सीटें और तेलंगाना में 2 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. पार्टी को लगता है कि इस फैसले का असर 2024 के आम चुनाव पर भी पड़ेगा. 

इसके अलावा और दूसरी सारी वजहें वहीं हैं जो मध्यप्रदेश में बताई गई हैं. मसलन पार्टी में नई पीढ़ी को आगे लाना और आलाकमान ही सर्वोच्च बताने का संदेश देना है. अब देखना ये है कि 2024 के चुनाव में बीजेपी की ये फैसले उसे कितना फायदा पहुंचाते हैं. 

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