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This Article is From Nov 07, 2023

MP के इस गांव में दिवाली पर नहीं देखते हैं ब्राह्मणों का चेहरा, लग जाते हैं ब्राह्मणों के यहां ताले

दीपावली के त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस तत्यौहार से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं है जो आज भी जारी है. ऐसे ही एक अनोखी परंपरा मध्यप्रदेश के रतलाम जिले के कनेरी गाँव की है, जहाँ दीपावली पर तीन दिनों तक ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं.

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MP के इस गांव में दिवाली पर नहीं देखते हैं ब्राह्मणों का चेहरा, लग जाते हैं ब्राह्मणों के यहां ताले

साल के सबसे बड़े त्योहार दीपावली (Diwali) को अब कुछ ही दिन बाक़ी है. देशभर में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है. दरअसल, इस दिन भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे, जिसकी खुशी में घर-घर दिए जलाए जाते हैं. इस त्यौहार से जुड़ी कई परंपराएं और मान्यताएं हैं, जो आज भी जारी है. ऐसे ही एक अनोखी परंपरा मध्यप्रदेश के रतलाम (Ratlam) जिले के कनेरी गांव की है. यहां लोग दीपावली पर तीन दिनों तक ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं. आइए जानते हैं क्या है इस परंपरा की वजह.

रतलाम के कनेरी (Kaneri) गांव की यह परंपरा सालों से जारी है. यहां के रहने वाले गुर्जर समाज (Gurjar Samaj) के लोग आज भी इस परंपरा को ठीक वैसे ही मना रहे हैं, जैसे उनके पूर्वज मनाते रहे हैं. दीपोत्सव के पांच दिन में से तीन दिन रूप चौदस, दीपावली और पड़वी के दिन गुर्जर समाज के लोग ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं.

ऐसे मनाते हैं इस परंपरा को
इस परंपरा के तहत दीपावली के दिन गुर्जर समाज के लोग कनेरी नदी के पास इकट्ठे होते हैं और फिर एक कतार में खड़े होकर लंबी बेर को हाथ में लेकर उस बेर को पानी में बहाते हैं, फिर उसकी विशेष रूप से पूजा की जाती है. पूजा के बाद समाज की सभी लोग मिलकर घर से बना हुआ खाना खाते हैं और पूर्वजों द्वारा इस परंपरा का पालन करते हैं और ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते हैं.

क्यों नहीं देखते हैं ब्राह्मणों का चेहरा
दरअसल कई बर्षों पहले गुर्जर समाज के आराध्य भगवान देवनारायण की माता ने ब्राह्मणों को श्राप दिया था. इसी श्राप के चलते दीपावली के तीन दिन तक कोई भी ब्राह्मण गुर्जर समाज के सामने नहीं आ सकता है, उसी समय से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है. गुर्जर समाज दीपावली पर विशेष पूजा करते हैं इस परंपरा के चलते गाँव में रहने वाले सभी भ्रमण अपने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लेते हैं.

कनेरी गाँव की यह परंपरा बीते कई सालों से जारी है. अब इसे निभाने वालों की संख्या में कमी आ गई है लेकिन कुछ लोग खासकर बुजुर्ग इस परंपरा को आज भी पूरा करते हैं और विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना करते हैं. दीपावली के दिन जब गुर्जर समाज के सभी लोग नदी पर पूजा करने के लिए जाते हैं तो पूरे गाँव में सन्नाटा छा जाता है.

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