रानी दुर्गावती (Rani Durgawati) यानी बहादुरी का दूसरा नाम...उनकी वीरता और मातृभूमि के लिए दी गई कुर्बानी की याद में ही देशभर में 24 को बलिदान दिवस (Sacrifice Day) के तौर पर मनाया जाता है. गुरुवार यानी 5 अक्टूबर को उनकी जयंती है. उत्तर प्रदेश के बांदा (Banda of Uttar Pradesh) में जन्मी रानी दुर्गावती बचपन से ही तीरंदाजी, तलवारबाजी और घुड़सवारी की शौकीन थीं. वे बचपन में पिता के साथ जंगलों में शिकार करने जाती थी उनका निशाना इतना बेहतरीन था कि तब के मुगल शासक भी उनसे भिड़ने से पहले कई बार सोचते थे. 5 अक्टूबर 1524 को रानी दुर्गावती का जन्म हुआ और 24 जून 1564 में मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए वे शहीद हो गईं. लेकिन क्या आप जानते हैं की रानी दुर्गावती ने अपने सीने में खुद से ही तलवार उतार ली थी क्योंकि उन्हें शत्रुओं से मरना गवारा नहीं था.
आसफ खान ने किया गोंडवाना पर हमला
दरअसल 1562 में जब अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) में मिला लिया और रीवा पर आसफ खान का कब्जा हो गया. तब आसफ खान ने गोंडवाना पर हमला किया लेकिन हमले में रानी दुर्गावती की जीत हुई. इसके बाद साल 1564 में आसफ खान ने फिर से उनके किले पर हमला बोला.रानी अपने हाथी पर सवार होकर युद्ध करने के लिए निकलीं इस दौरान उनका बेटा वीर नारायण भी उनके साथ था.
अपने ही सैनिक से की थी तीर मारने की गुजारिश
युद्ध में रानी को कई तीर लगे और वह गंभीर रूप से घायल हो गई.रानी दुर्गावती को इस बात का एहसास हो चुका था कि अब उनका जिंदा रहना मुश्किल है तब उन्होंने अपने एक सैनिक से कहा कि वह उन्हें मार दे. लेकिन सैनिक ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया.रानी दुर्गावती यह जानती थी कि वह चारों तरफ से शत्रुओं से घिर चुकी है,तब उन्होंने खुद ही अपनी तलवार सीने में मार ली और शहीद हो गईं .क्योंकि रानी दुर्गावती को शत्रुओं के हाथों से मरना गवारा नहीं था. उन्ही की याद में देश भर में 24 जून को बलिदान दिवस के तौर पर उनके शहादत को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है.