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This Article is From Jul 20, 2023

कांकेर : नक्सली इलाके से निकला एक ऐसा शांति दूत, जिसने आदिवासियों की जिंदगी बदल दी

पर्वतारोहण का शौक रखने वाले गुरु बंशी लाल नेताम ने बताया कि अब वह ट्रेनी तीनों बेटियों के साथ माउंट एवरेस्ट की फतह कर अपना लक्ष्य पूरा करना चाहते है.

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कांकेर : नक्सली इलाके से निकला एक ऐसा शांति दूत, जिसने आदिवासियों की जिंदगी बदल दी

छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य कांकेर जिले के बरदेभाटा के बंशीलाल नेताम अपने प्रयास से कई लोगों की जिंदगियों को बेहतरीन बना रहे हैं. उनकी कोशिश से नक्सलगढ़ की बेटियां इतिहास रच रही हैं. बंशीलाल का जन्म 27 जून 1977 को हुआ. साधारण से आदिवासी परिवार में जन्मे बंशीलाल के मन मे बचपन से ही कुछ मुकाम हासिल का जुनून था. लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर और संसाधनों की कमी के चलते उनकी सोच उड़ान नहीं भर पा रही थी. खेल के प्रति रुचि ने उन्होंने पुलिस तक पहुंचा और वर्ष 2006 में पुलिस विभाग में  बतौर पीटीआई के पद पर बीजापुर में उनकी पहली पोस्टिंग हो गई.

वर्ष 2019 में बीजापुर से कांकेर ट्रांसफर होने के बाद उन्होंने अपने सपनो को रंग देने की सोची. उन्होंने जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर निःशुल्क गोटूल एकेडमी की शुरुआत की. पैसों की कमी बाधा बनने लगी तो प्रकृति को अपना औजार बनाया और प्रशिक्षण देना शुरू किया.

बंशी लाल अब एक 120 बच्चों की निःशुल्क प्रशिक्षण दे चुके है. जिसमें नक्सल प्रभावित कांकेर जिले की तीन आदिवासी बेटियों ने नया कीर्तिमान रचते हुए हिमाचल के देव टिब्बा पर्वत व इन्द्रासन पर्वत की चोटी पर पहुंच कर विजय तिरंगा लहराया हैं.

प्राकृतिक चीजो को बनाया औजार

बंशीलाल नेताम बताते हैं कि उन्होंने जब गोटूल एकेडमी की शुरुआत की थी, तब उनके पास कोई संसाधन नहीं थे. उन्होंने प्राकृतिक चीजों जैसे लकड़ी से डंबल, वेटलिफ्टर व अन्य उपकरण तैयार किये. सांसों की गति को बनाये रखने के लिए खैरखेड़ा जलाशय में आधा घण्टा तैराकी सिखाना शुरू किया. पैरों में शक्ति बढ़ाने के लिए महानदी की रेत में दौड़ाया. ताकि एकेडमी में आने वाले युवा मज़बूत बन सके.

सुबह 4:30 बजे से शुरू हो जाती है ट्रेनिग शुरू

बंशीलाल बताते है कि वह सुबह अपने घर से 25 किलोमीटर दूर ग्राम खैरखेड़ा पहुंचते है. यहां पहुंचने वाले युवाओं की ट्रेनिंग सुबह 4:30 से शुरू हो जाती है जो कि सुबह 7:30 तक चलती है. पुलिस भर्ती, वन रक्षक भर्ती सहित अन्य खेलकूद व पर्वतारोही युवाओ को वह ट्रैनिंग देते है. ट्रेनिंग के पश्चात उनके डाइट की जानकारी भी उन्हें दी जाती है.

जिले की तीन बेटियां कर चुकी है शिखर फतेह

पर्वतारोही बनने की वेट ट्रेनिंग बेहद कठनाई भरी है. इस कठिनाई से मुक़ाबलता करती हुई जिले की तीन आदिवासी बेटियों ने मुकाम भी हासिल कर लिया है.

वेट ट्रेनिंग के लिए ये नक्सलगढ़ की बेटियां सुबह पिट्ठू बैग में 30 किलो रेत पिट पर लादकर गढ़िया पहाड़ की लगभग 1000 फिट की ऊंचाई को दौड़कर 12 मिनट में पूरा करती है. लगभग दो राउंड रोजना इतने वजन को लेकर ये बेटियां ऊंचाइयों को छूकर नीचे उतरती है.

ये तीनो बेटियां कल्पना भास्कर, आरती कुंजाम और दशमत वट्टी अब तक देव टिब्बा पर्वतमाला जिसकी ऊंचाई 6001 मीटर है, इन्द्रासन पर्वत जिसकी ऊंचाई 6221 मीटर है. इस पर्वत की ऊंचाई को पहली बार फतह करने वालो में  छत्तीसगढ़ की इन बेटियों का नाम चुका है.

बंशी लाल का नाम गोल्डन बुक ऑफ वल्ड रिकार्ड में भी है दर्ज

बंशीलाल ने बहुत सी उपलब्धियां हासिल की है. 2003 में खेलदूत के रूप में सम्पूर्ण भारत का भ्रमण कर चुके है.  

वर्ष 2018 में साइकिलिंग करते हुए उन्होंने चारों महानगरों को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज जिसकी दूरी 6000 किलोमीटर है, उसे 16 दिन 16 घण्टे में पूरा किया है. जिनका नाम गोल्डन बुक ऑफ वल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है.

वही उन्होंने वर्ष 2018 में ही खेल क्षेत्र के अध्यन के लिए सम्पूर्ण भारत की 29000 हजार किलोमीटर की लंबी यात्रा बुलेट से तय की थी.

एवरेस्ट फतह करना लक्ष्य

पर्वतारोहण का शौक रखने वाले गुरु बंशी लाल नेताम ने बताया कि अब वह ट्रेनी तीनों बेटियों के साथ माउंट एवरेस्ट की फतह कर अपना लक्ष्य पूरा करना चाहते है. जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है. इसके लिए उन्होंने तिब्बत की ओर से चढ़ाई करना चुना है. जिसमे पहली बार नक्सलगढ़ बस्तर कि आदिवासी बेटियां फतह करेगी. 

बस्तर के जंगलों से हजारों बच्चों को बाहर लाना भी है जुनून

एक तरफ जहां युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आकर अपना जीवन खराब कर रही है, तो वही बंशीलाल चाहते है कि वह इसी तरह निःशुल्क ट्रेनिंग देते रहे. उनकी अंतिम इच्छा यही होगी कि बस्तर के जंगलों से हजारों की तादात में बच्चे निकल कर खेल के क्षेत्र में आगे आये. जिससे राज्य, राष्ट्र ही नहीं अपितु अंतराष्ट्रीय स्तर पर बस्तर का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो जाये.

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