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This Article is From Mar 20, 2024

आधी आबादी से पूरी आबादी तक का सफर

Ankit Swetav
  • विचार,
  • Updated:
    मार्च 20, 2024 23:48 pm IST
    • Published On मार्च 20, 2024 21:19 pm IST
    • Last Updated On मार्च 20, 2024 23:48 pm IST

आज हम मानवता के सबसे आधुनिक वक्त में है. बदलते वक्त के साथ समाज की और समाज के लोगों की मांग भी बदली है. एक वक्त था, जब महिलाओं के घर से बाहर जाने तक पर रोक टोक हुआ करती थी. मगर आज की मांग महिलाओं को घर से बाहर आकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए प्रेरित करती है. यही कारण है कि हाल ही में शुरू की गई वूमेन प्रीमियर लीग बहुत कम समय में बहुत अधिक प्रचलित हो गई है.

निम्न स्तर पर थी महिलाएं

महिलाओं को शुरू से समाज में निम्न वर्ग पर रखा गया. आधी आबादी पर हर बार न जाने कितने ही जुल्म हुए. उन्हें समाज में अपनी कुशलता दिखाने का कोई मौका नहीं दिया जाता था. हमेशा इन्हें समाज से अपेक्षित रखा गया. मगर बदलते समय के साथ महिलाओं ने अपनी स्थिति को बदला और समाज में अपनी मजबूत और आत्मनिर्भर पहचान बनाई. आज समाज मेल डॉमिनेटेड न होकर फीमेल डॉमिनेटेड बनता हुआ नजर आता है. जिस महिला वर्ग की भागीदारी समाज में 40% से भी कम हुआ करती थी वो आज लगभग 65% पहुंच चुकी है.

बदलते समाज के नजारे

महिलाओं की मांग हर जगह बहुत तेजी से बढ़ी है. आज हर क्षेत्र में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को अहमियत दी जा रही है. Statistica की एक रिपोर्ट की मानें तो 2022 में भारत की महिला कार्यबल भागीदारी 27 प्रतिशत से अधिक थी. चाहे सरकारी दफ्तरों में बैठ कर किसी जिले को संभालना हो या फिर प्लेन में बैठ कर आसमान की ऊंचाई पर पहुंचना या क्रिकेट के मैदान पर शारीरिक रूप से एक्टिव रहना हो, महिलाएं हर जगह पुरुषों से बेहतर साबित हुई है. बल्कि भारतीय सेना के तीनों सेनाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है. बीते 26 जनवरी को भारत सरकार ने गणतंत्र दिवस का थीम महिलाओं पर ही आधारित रखा था.

हर क्षेत्र में लहरा रही हैं परचम

प्रोग्रेस ऑफ वर्ल्ड वुमन के रिपोर्ट की मानें तो भारत में मंत्री पद और राष्ट्रीय संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी क्रमशः 10 प्रतिशत और 11 प्रतिशत है. खेल के क्षेत्र में महिलाएं सबसे अधिक कुशल प्रदर्शन कर रही हैं. आज लोग बहुत तेजी से women's premier league के प्रति अपना रुझान बना रहे हैं. हाल ही में अंतरराष्ट्रीय वुशु चैंपियनशिप में भारत की बेटी वैष्णवी त्रिपाठी ने देश का गौरव बढ़ाया. मास्को में आयोजित हुए इस खेल में उन्होंने भारत के नाम गोल्ड मेडल हासिल किया.

छत्तीसगढ़ के एमसीबी जिला की 55 वर्षीय संजीदा खातून ने पावरलिफ्टिंग, स्ट्रेंथ लिफ्टिंग और वेट लिफ्टिंग में जिला और राज्य समेत राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परचम लहराया है. गौरतलब है कि 55 वर्षीय संजीदा खातून छह बार छत्तीसगढ़ स्ट्रॉन्ग वूमेन और तीन बार नेशनल स्ट्रांग वूमेन का खिताब अपने नाम कर चुकी हैं. कई बड़े ऑपरेशन होने के बाद भी वो खेल के क्षेत्र में देश का गौरव बढ़ा रही है.

हाल ही में गुजरे महिला दिवस के अवसर पर भी कई तरह के खास और अनूठी पहल देखने को मिले. ग्वालियर में महिला ट्रेनी आईपीएस ने गाँव की महिलाओं से खेत में ट्रैक्टर चलवाया और उन्हें घर से बाहर निकल कर काम करने के लिए प्रेरित किया. वहीं, बैतूल जिले में जेल की पूरी जिम्मेदारी एक दिन के लिए महिलाओं को दी गई, जिसमें उन्होंने पुरुषों से बेहतर काम करके दिखाया.

पुरुषों के लिए उदाहरण

ऐसे ही ना जाने कितने ही उदाहरण है जो महिलाओं के समाज में सशक्त होने के बारे में बताता हैं. चाहे बात देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की करें, या देश की मिलेट महिला लाहरी बाई की करें या देश की वित्तीय व्यवस्था देखने वाली निर्मला सीतारमण की करें, ये सभी देश की हर बेटी और महिला के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. आज ये कहना गलत नहीं होगा कि महिलाएं पुरुषों से आगे हैं और उनके लिए रोल मॉडल बनती जा रहीं हैं.

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