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कदाचार के आरोपी जिला जज को बना दिया गया हाईकोर्ट का जज, विरोध में पीड़ित महिला जज ने दिया इस्तीफा

Madhya Pradesh High Court Latest News: इस्तीफे में महिला जज ने कहा है कि संवैधानिक अदालतों ने उस जिला जज को पुरस्कृत किया है, जिसने उन्हें गंभीर रूप से परेशान और प्रताड़ित किया था.

कदाचार के आरोपी जिला जज को बना दिया गया हाईकोर्ट का जज, विरोध में पीड़ित महिला जज ने दिया इस्तीफा

Madhya Pradesh High Court News: जिला जज को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का जज बनाए जाने से नाराज एक महिला सिविल जज ने इस्तीफा दे दिया है.  दरअसल, इस जज साहब पर महिला जज ने कदाचार के आरोप लगाए थे. MP के शहडोल (Shahdol) में जूनियर डिवीजन सिविल जज ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को अपना इस्तीफा भेजा.

इस्तीफे में महिला जज ने कहा है कि संवैधानिक अदालतों ने उस जिला जज को पुरस्कृत किया है, जिसने उन्हें गंभीर रूप से परेशान और प्रताड़ित किया था. दरअसल, इस महिला जज को पांच अन्य महिला न्यायिक अफसरों के साथ सेवा से बर्खास्त किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 28 फ़रवरी को एक कड़ा फैसला सुनाया, जिसमें महिला जज अदिति कुमार शर्मा की बर्खास्तगी को "मनमाना और अवैध" बताते हुए महिला न्यायिक अफसर को सेवा में बहाल कर दिया था.

महिला जज ने न्याय को बताया क्रूर मजाक

अब इस्तीफे में जज अदिति कुमार शर्मा ने कहा कि न्यायपालिका में उनके कष्टों का कारण बनने वाले ज़िला न्यायाधीश की नियुक्ति को हाईकोर्ट के न्यायाधीश पद से पुरस्कृत कर दिया है. जिस व्यक्ति पर मैंने दस्तावेज़ी तथ्यों और उस अदम्य साहस के साथ आरोप लगाया था, जो सिर्फ एक आहत महिला ही दिखा सकती हैं. उनसे स्पष्टीकरण तक नहीं मांगा गया. कोई पूछताछ नहीं हुई. कोई नोटिस नहीं. कोई सुनवाई नहीं. कोई जवाबदेही नहीं. जिसे अब न्याय कहा जाता है, यह शब्द ही एक क्रूर मज़ाक है.

"बस ये था मेरा अपराध"

जिला जज से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के नवनियुक्त जज के खिलाफ बोलने की वजह से लगातार प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट जज के रूप में उनकी नियुक्ति न्यायपालिका की बेटियों के लिए क्या संदेश देती है? उन्हें उनके एकमात्र वास्तविक अपराध के लिए प्रताड़ित किया जा सकता है? यहां तक कि अपमानित किया जा सकता है और संस्थागत रूप से मिटा दिया जा सकता है. यह विश्वास करने का साहस किया था कि व्यवस्था उनकी रक्षा करेगी.

न्यायपालिका को कटघरे में किया खड़ा

वहीं, न्यायपालिका पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि जो पीठ पारदर्शिता का उपदेश देती है, अपने ही सदनों में प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करने में भी विफल रही. उन्होंने आगे लिखा कि वह संस्था, जो कानून के सामने समानता की बात सिखाती है, लेकिन, जिसने मेरी पीड़ा का षडयंत्र रचा, उससे पूछताछ तक नहीं की गई, बल्कि उसे पुरस्कृत कर दिया गया. लिहाजा, मैं अदालत के एक अधिकारी के रूप में नहीं, बल्कि उसकी चुप्पी की शिकार के रूप में इस्तीफा दे रही हूं.

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 न्यायपालिका पर उठाए ये सवाल

  • सम्मानजनक पारदर्शिता कहां है?
  • आपने अपने ही एक व्यक्ति की रक्षा करने से इनकार कर दिया?
  • आपने अपने सिद्धांतों पर चलने से इनकार कर दिया?
  • आपने न्याय करने से इनकार कर दिया ?
  • जहां इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, फिर भी आपकी अंतरात्मा को नहीं झकझोरता है?
  • शायद सड़ांध हमारी स्वीकारोक्ति से भी ज़्यादा गहरी है?

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