Loudspeaker Ban: मध्य प्रदेश में इस समय लाउड स्पीकर और तेज आवाज वाले साउंड (Loud Speaker) की चर्चा खूब है. कारण है, प्रदेश के नए मुख्यमंत्री (MP CM) द्वारा तेज आवाज वाले स्पीकर पर प्रतिबंध लगाना. सीएम मोहन यादव (CM Mohan Yadav) के आदेश के बाद शासन और प्रशासन तेजी से लाउड स्पीकरों पर कार्रवाई कर रहा है. दरअसल, तेज आवाज को रोकना प्रशासन के साथ ही आमजन की भी नैतिक जिम्मेदारी (Moral Responsibility) है. लेकिन, हम इसे अनदेखा करते हैं. जबकि तेज आवाज के कारण हमारे स्वास्थ्य पर इसका गहरा प्रभाव देखने को मिलता है. इस खबर में हम आपको तेज आवाज से होने वाले नुकसान के बारे में बताने वाले हैं.
तेज आवाज से मिलती हैं गंभीर बीमारियां
अक्सर तेज आवाज में बजने वाले डीजे हमें परेशान करते हैं. लेकिन, हम सोचते हैं कि यह सिर्फ हमारे कानों पर असर डालते हैं और हमारे सुनने की शक्ति को प्रभावित करते हैं, लेकिन अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप गलत सोचते हैं. आपको बता दें कि डीजे की तेज आवाज न केवल आपके कानों में परेशानी पैदा करती है, बल्कि दिमागी और शारीरिक रूप से कई समस्याएं भी पैदा करती है. जिनमें घबराहट जैसे लक्षण आम हैं. इसके अलावा मानसिक रूप से भी इंसान बीमार हो सकता है. सबसे खास बात यह है कि तेज आवाज में लगातार बने रहने से आमतौर पर इंसान के दिमागी व्यवहार पर भी असर आता है. इंसान में सिर दर्द की समस्या हमेशा के लिए बन सकती है और वह तनाव से ग्रस्त हो सकता है.
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए है कानूनी प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 268 सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) के बारे में बात करती है. कोई भी व्यक्ति जो किसी भी सार्वजनिक उपद्रव का दोषी है, यदि वह कोई ऐसा कार्य करता है जिससे किसी व्यक्ति को चोट लग सकती है, जिससे आम जनता परेशान हो सकती है या जिससे कोई सामान्य बाधा उत्पन्न हो सकती है. ध्वनि प्रदूषण करना भी धारा 268 के प्रावधानों के अंतर्गत आता है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इन सारी बातों का ख्याल रखा जाता है? ऐसा नहीं होता. हम हर रोज इस धारा का उल्लंघन होते हुए अपने आसपास जरूर देखते हैं.
80 डेसिमल से ज्यादा की आवाज का होता है गहरा प्रभाव
शिवपुरी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर गिरीश दुबे का कहना है कि एक निश्चित प्रावधान के ऊपर आवाज का लगातार कानों में आना इंसान के कानों को प्रभावित करता है. साथ ही उसके दिमाग पर भी गहरा असर डालता है. आमतौर पर देखा गया है कि ज्यादा तेज आवाज, जो कि तकरीबन 80 डेसिमल से ऊपर मानी जाती है दिमाग पर काफी असर डालती है. इससे नींद प्रभावित होती है. दूसरे तरीके से अगर हम देखें तो इसका प्रभाव इंसान पर मानसिक रूप से भी देखने को मिलता है. एक स्टडी में माना गया है कि तेज आवाज के कारण लोगों को घबराहट और उल्टी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. इंसान के व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगता है, जो काफी चिंताजनक है. इसके अलावा सिर दर्द और तनाव काफी देखा गया है.
जानें कानून के मुताबिक ध्वनि की सीमा
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के ग्वालियर बेंच के अधिवक्ता अनचित जैन का कहना है कि यह एक गंभीर और चिंताजनक समस्या है. जिस पर कड़ाई से काम होना चाहिए. क्योंकि कानून में इसे लेकर बहुत महत्वपूर्ण और कई उपयोगी प्रावधान रखे गए हैं. ध्वनि प्रदूषण (विनियम एवं नियंत्रण) नियम, 2000 के नए संशोधन के मुताबिक ध्वनि की गूंज पर परिसीमा तय की गई है. जिसे चार वर्गों में बांटा गया है - इंडस्ट्रियल, कमर्शियल, रेसिडेंशियल और साइलेंस.
1. इंडस्ट्रियल एरिया में ध्वनि प्रदूषण का मानक दिन में जहां 75 डेसीबल निश्चित है. वहीं रात में इसके नियंत्रण के लिए 65 डेसीबल से ज्यादा आवाज नहीं होनी चाहिए.
2. कमर्शियल एरिया की बात की जाए तो इस एरिया में दिन के दौरान यह मानक 55 डेसीबल निश्चित है. जबकि रात में 50 डेसीबल से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
3. इसी तरह अगर हम रेजिडेंशियल एरिया की बात करें तो यहां दिन का शोर 70 डेसीबल से ज्यादा नहीं होना चाहिए, जबकि रात में 50 डेसीबल से ज्यादा आवाज होना कानूनी अपराध है.
4. कानून ने अपनी बात कहते हुए एक साइलेंस जोन भी बनाया है. जिसके मुताबिक ध्वनि का शोर दिन में 45 डेसीबल से ज्यादा नहीं होना चाहिए, जबकि रात में 40 डेसिबल से ज्यादा आवाज कानूनन अपराध है.
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