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ग्वालियर में 266 वर्षों से चल रही है प्राकृतिक रंग से दीवाली पूजन के चित्र बनाने की परंपरा, राष्ट्रपति से पीएम तक हैं इस कला के मुरीद

ग्वालियर में 266 वर्षों से चली ऐ रही श्री वृद्धि के कलेंडर को हाथों से तैयार कर बेचने की परंपरा आज भी जारी है. दरअसल, ग्वालियर के रहने वाले एक परिवार आज भी इस परंपरा को जीवित रखे हुए है.

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ग्वालियर में 266 वर्षों से चल रही है प्राकृतिक रंग से दीवाली पूजन के चित्र बनाने की परंपरा, राष्ट्रपति से पीएम तक हैं इस कला के मुरीद
ग्वालियर में 266 वर्षों से चली ऐ रही श्री वृद्धि के कलेंडर को हाथों से तैयार कर बेचने की परंपरा आज भी जारी है.

पूरे देश भर में रविवार, 12 नवंबर को धूमधाम से दीपोत्सव का पर्व दीपावली मनाई जा रही है. घर-घर में भगवान गणेश और महालक्ष्मी की पूजा की तैयारियां चल रही है. दीवाली पूजन में श्री वृद्धि के कलेंडर का बहुत ही महत्व होता है जिसे पट कहते हैं. यह कलेंडर वैसे तो बाजार में हर जगह उपलब्ध हैं, लेकिन ग्वालियर में 266 वर्षों से यह कलेंडर हाथों से तैयार कर बेचने की परंपरा आज भी जारी है. यहां इन्हें बनाने वालों की एक पूरी बस्ती है जिसका नाम चितेरा ओली है. चितेरा यानी चित्र बनाने वाले. हाथों से बने इन चित्रों के कद्रदानों की संख्या अभी भी है. हालांकि अब इस बस्ती में सिर्फ एक ही परिवार हैं जो दीवाली के इस खास मौके पर हस्त से निर्मित पट बनाने की परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए है और ये कलेंडर देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक पहुंचते हैं.

ये परिवार दीपावली के पूजन के लिए अपने हाथों से कैलेंडर तैयार करता है, इसमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है,

ये परिवार दीपावली के पूजन के लिए अपने हाथों से कैलेंडर तैयार करता है, इसमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है.

ऐसे शुरू हुई ये परम्परा

ग्वालियर में ये परम्परा 1757 में तत्कालीन सिंधिया शासकों के समय शुरू हुई थी.

शहर के चितेराओली में रहने बाले बुजुर्ग पति-पत्नी कन्हैया लाल और पवन कुमारी का कहना है कि सिंधिया राज परिवार कला का प्रेमी था. उन्हीं के द्वारा भेजे आमन्त्रण पर सन 1857 में हमारे परिवार के लोग झांसी-बुंदेलखंड से ग्वालियर आए थे. हम लोगों को रहने के लिए ये खास बस्ती बसाई गई थी और तब से इसी चितेरा ओली में रह रहे हैं.

कन्हैया लाल और पवन कुमारी का कहना है तब न तो कैमरे का अविष्कार हुआ था और न ही अपनी परंपराओं और स्मृतियों को संरक्षित करने का कोई साधन नहीं था. सिंधिया महाराज ने जय विलास पैलस और फिर मोती महल में हमारे पूर्वजो से दीवालों पर पेंटिंग करवाकर अपने पूर्वजो और राजकीय परंपराओं को संरक्षित किया. आज भी मोती महल में दीवारों पर परिवार के महाराज, महारानी, शिकार और शाही दशहरा की भव्य पेंटिंग संरक्षित हैं. साथ ही सभी राग-रागनियों से जुटे काल और साधना पद्धतियों के चित्र भी अंकित हैं.

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पवन कुमारी बताती हैं कि पहले चितेराओली में घर-घर में इस तरह की कलाकृतियां बनाने का काम होता था, लेकिन अब ये कल सिर्फ कुछ परिवारों में ही सिमिट कर रह गई है.

दीवाली के चित्र दुनिया भर के चित्र म्यूजियम में हैं संरक्षित 

85 साल के कलाकार कन्हैयालाल और उनकी पत्नी पवन कुमारी बताते हैं कि हम लोग सिर्फ प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं.  इनमें किसी तरह के केमिकल का उपयोग नहीं करते. हमारे यहां बनी करवाचौथ और दीवाली के चित्र दुनिया भर के चित्र म्यूजियम में भी संरक्षित हैं. दीपावली के पर्व पर इन कैलेंडरों को अपने हाथों से तैयार करते हैं.  

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कन्हैया लाल की पत्नी पवन कुमारी ने बताया कि इसके अलावा वे लोग दीपावली के त्योहार पर घर-घर जाकर गणेश लक्ष्मी जी की कलाकृति तैयार करते हैं. इसकी पहले से ही एडवांस बुकिंग रहती है.

पवन कुमारी बताती हैं कि उन्होंने 11 साल की उम्र में अपने पिताजी से कलाकृति बनाना सीखी थी. अभी इस कला को बनाने वाले शहर में कुल 10 कलाकार हमारे परिवार से हैं. हालांकि अब इसके इतने कद्रदान नहीं बचे.

ऐसे हाथों से तैयार होते है ये कलेंडर

पवन कुमारी बताती है कि वोअपने पति कन्हैया लाल के साथ मिलकर इन कैलेंडरों को अपने हाथों से तैयार करती है. हालांकि इसके लिए पहले  प्राकृतिक रंगों को तैयार करती है जिनका उपयोग इन कैलेंडरों को बनाने में किया जाता है. वो कहती है कि हम इसको बनाने में गंगाजल भी मिलाते है. लोगों के जीवन में दीपावली खुशहाली लेकर आए इसलिए इस रंग में गंगाजल मिलाते हैं. इन  कैलेंडरों को बनाने की प्रक्रिया लगभग डेढ़ माह पहले से ही शुरू कर देते हैं.

कैलेंडर को बनाने के लिए रंग में मिलाया जाता गंगाजल 

चितेरा कला से बने इन कैलेंडरों की डिमांड अभी भी काफी होती है, क्योंकि पूरे प्रदेश भर में डिमांड के जरिए इन कैलेंडरों को मंगवाया जाता है. इसके साथ ही ग्वालियर शहर में कन्हैया कुमार घर-घर जाते हैं और दीपावली से पहले चितेरा कला में कलाकृति बना कर आते हैं. कैलेंडर को बनाने के लिए पहले हरिद्वार से गंगाजल जाकर विधि विधान की साथ इस रंग में मिलाकर कलाकृति बनाते हैं.  इसमें लक्ष्मी, सरस्वती और गणेश जी की मूर्ति बनाने के साथ-साथ हाथी, शेर और बेल बूटी बनाते हैं.

बुजुर्ग कलाकार  पवन कुमारी बताती है कि पहले के समय इन कैलेंडर को तैयार करने के लिए हम लोग हरे पत्ते, फूल और जड़ी बूटियां के रस से कलर तैयार करते थे और उसके बाद कैलेंडर बनते थे, ये पूरी तरह शुद्ध और पवित्र होते हैं. हालांकि अब प्राकृतिक कलर आने लगे हैं. 

राष्ट्रपति से पीएम मोदी तक इस कलाकृति के हैं मुरीद

ग्वालियर की इस  266 साल पुरानी चितेरा कला से कैलेंडर तैयार कर रहे कन्हैया कुमार और उनकी पत्नी पवन कुमारी की इस कला को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पीएम नरेंद्र मोदी भी तारीफ कर चुके हैं. 

दरअसल, बीते कुछ दिन पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ग्वालियर दौरे पर आई थी. इस दौरान पवन कुमारी ने हाथों से बनी एक कलाकृति को द्रौपदी मुर्मू को भेंट किया था. इस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनकी कला को खूब सराहा भी था. इसके बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ग्वालियर दौरे पर आए थे तो उस दौरान कन्हैया लाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाथ से उनका शानदार चित्र उकेरा था और उन्होंने अपने हाथों से पीएम नरेंद्र मोदी को भेंट किया था. बता दें कि इस तस्वीर को देखकर पीएम नरेंद्र मोदी कन्हैया के मुरीद हो गए थे और उन्होंने उनकी कला की काफी सराहना की थी.

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