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खुद की आंखों में रोशनी नहीं... पर बच्चों के भविष्य को रोशन करने की जिद ठान बैठे हैं ये शिक्षक

कभी-कभी ज़िंदगी ऐसी तस्वीर रच देती है, जिसमें सबसे गहरी अंधेरी रात से भी उजाला फूट पड़ता है. सोचिए, जब आंखों में रोशनी ही न हो, तो ज़िंदगी जैसे अंधेरे में खो सी जाती है लेकिन सतना के उचेहरा ब्लॉक के कुछ शिक्षक इस अंधकार को भी मात दे रहे हैं. इन्होंने तय किया है कि अगर खुद की आंखों में रोशनी नहीं है, तो क्या हुआ वो अपने विद्यार्थियों के भविष्य को रोशन ज़रूर करेंगे.

खुद की आंखों में रोशनी नहीं... पर बच्चों के भविष्य को रोशन करने की जिद ठान बैठे हैं ये शिक्षक

Teachers' Day Special: कभी-कभी ज़िंदगी ऐसी तस्वीर रच देती है, जिसमें सबसे गहरी अंधेरी रात से भी उजाला फूट पड़ता है. सोचिए, जब आंखों में रोशनी ही न हो, तो ज़िंदगी जैसे अंधेरे में खो सी जाती है लेकिन सतना के उचेहरा ब्लॉक के कुछ शिक्षक इस अंधकार को भी मात दे रहे हैं. इन्होंने तय किया है कि अगर खुद की आंखों में रोशनी नहीं है, तो क्या हुआ वो अपने विद्यार्थियों के भविष्य को रोशन ज़रूर करेंगे.

दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण असली ताकत

लवकुश कोरी, धीरेंद्र ताम्रकार और दिवाकर गुप्ता, ये नाम सामान्य नहीं हैं. ये उस असाधारण हौसले की मिसाल हैं जो कहते हैं- “दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण मायने रखता है”. शासन ने भले ही इन्हें पढ़ाने के लिए दूर-दराज़ के ग्रामीण स्कूलों में तैनात किया हो, लेकिन इनके मन में कोई शिकायत नहीं है क्योंकि इनके लिए शिक्षा देना कोई नौकरी नहीं, बल्कि धर्म है.

ये शिक्षक खुद देख नहीं सकते पर छात्रों के जीवन में शिक्षा की रौशनी फैला रहे हैं.

ये शिक्षक खुद देख नहीं सकते पर छात्रों के जीवन में शिक्षा की रौशनी फैला रहे हैं.

नजरों में अंधेरा लेकिन इरादा रोशन

लवकुश कोरी सौ प्रतिशत नेत्रहीन हैं, बावजूद इसके वो रोज़ अपने प्राथमिक विद्यालय डुड़हा पहुंचते हैं और बच्चों के बीच उसी आत्मविश्वास से खड़े होते हैं, जैसे कोई सामान्य शिक्षक. बच्चे उन्हें देखकर चौंकते नहीं, बल्कि प्रेरणा लेते हैं. क्योंकि ये शिक्षक ब्लैकबोर्ड पर लिखने से भी हिचकिचाते नहीं, इनका लेखन स्पष्ट, अनुशासित और इतना सुंदर होता है कि बच्चे सहज ही सीख जाते हैं. हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में इनकी पकड़ गहरी है.

आंखों से नहीं, दिल से शिक्षा

धीरेंद्र ताम्रकार और दिवाकर गुप्ता भी इसी राह के राही हैं. दोनों ने अपनी कमजोरी को ढाल बना लिया है. रोज़ समय पर विद्यालय पहुंचना और पूरे मन से बच्चों को पढ़ाना ही उनकी दिनचर्या है. ये शिक्षक बताते हैं कि शिक्षा आंखों से नहीं, दिल से दी जाती है. इनका संघर्ष और समर्पण यही साबित करता है कि दिव्यांगता कोई रुकावट नहीं, बल्कि हौसले को परखने की कसौटी है. ये अपने विद्यार्थियों को केवल किताबों का ज्ञान नहीं देते, बल्कि जीवन का सबसे बड़ा सबक भी सिखाते हैं- मुश्किलें चाहे कितनी भी हों, अगर हिम्मत न टूटे, तो मंज़िल हमेशा मिलती है. शिक्षक दिवस पर जब हम सभी अपने गुरुओं को याद कर रहे हैं, तब ऐसे शिक्षक समाज के लिए किसी दीपक से कम नहीं. क्योंकि दीपक खुद जलकर अंधेरा सह लेता है, लेकिन दूसरों के रास्ते रोशन करता है. ये शिक्षक भी वही दीपक हैं. आज इनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि असली शिक्षा वो हैं जो इंसान को रोशनी दिखाएं, चाहे खुद की आंखों में उजाला न हो. शायद यही कारण है कि ऐसे गुरु केवल अपने विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, पूरे समाज के लिए प्रेरणा बन जाते हैं.

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