
MP NEWS: शिवपुरी शहर के सैकड़ों करोड़ रुपये की जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें इस जमीन को “श्री गरुड़ गोविंद जी बांके बिहारी मंदिर” की संपत्ति माना गया था. यह फैसला अगर बरकरार रहता, तो पुरानी शिवपुरी, फतेहपुर और AB रोड क्षेत्र के 70 हजार लोग प्रभावित होते और शहर के 1/6 हिस्से पर प्रशासन बुलडोजर चला देता.
क्या था मामला?
यह ज़मीन विवाद 1890 के दशक से जुड़ा है, जब रियासतों के दौर में मंदिरों को ज़मीन दी जाती थी. 2014 में हाई कोर्ट ने इस ज़मीन को मंदिर की संपत्ति मानते हुए इसे मंदिर के नाम पर दर्ज करने और कलेक्टर को इसका संरक्षक बनाने का आदेश दिया था.
किसने बचाई जनता की जमीन?
इस फैसले के खिलाफ कुछ नागरिक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां सुप्रीम कोर्ट के वकील निपुण सक्सेना ने उनकी ओर से पक्ष रखा. सक्सेना ने दलील दी कि:
यह मंदिर कोई सार्वजनिक ट्रस्ट नहीं, बल्कि निजी स्थान है.
इस ज़मीन पर बसे हजारों परिवार कई दशकों से रह रहे हैं.
1981 में ही यह तय हो गया था कि मंदिर की जमीन अलग है और नागरिकों की अलग.
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस जे.एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इन दलीलों से सहमति जताई और हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया.
अब क्या होगा?
अब पूरा मामला फिर से हाई कोर्ट के पास जाएगा, लेकिन तब तक 70 हजार लोग बेदखली और बुलडोजर की कार्रवाई से पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे.
क्यों मायने रखता है यह फैसला?
यह फैसला उन 70,000 परिवारों के लिए जीवन रक्षक साबित हुआ है जो कई पीढ़ियों से इन जमीनों पर रह रहे थे.
अगर सुप्रीम कोर्ट यह फैसला नहीं देता, तो शिवपुरी का बड़ा हिस्सा सरकारी कब्जे में चला जाता.