Shah Bano Case: भारत का चर्चित शाहबानो केस एक बार फिर से चर्चा में है, क्योंकि इस केस पर बनी फिल्म 'हक' इस शुक्रवार (7 नवंबर) को रिलीज होने जा रही है. फिल्म मुख्य भूमिका में यामी गौतम (Yami Gautam) और इमरान हाशमी (Imran Hashmi) निभा रहे हैं. फिल्म के रिलीज होने से पहले ही यह विवादों में आ गई और इसके खिलाफ शाहबानो की बेटी सिद्दीका बेगम खान इंदौर हाईकोर्ट में पहुंच गईं, जहां कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. याचिका के जरिए उन्होंने फिल्म के रिलीज पर बैन लगाने की मांग की है.
शाहबानो परिवार के वकील ने तौसीफ वारसी ने बताया कि शाहबानो पर बनी फिल्म को लेकर मंगलवार को हाईकोर्ट में 2 घंटे तक सुनवाई चली, जिसमें दोनों पक्षों की ओर से दलीलें दी गईं. सुनवाई होने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. वहीं, बचाव पक्ष ने कहा कि उन्होंने किसी भी तरीके से फिल्म के ट्रेलर या टीजर में शाहबानो बेगम के किरदार को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास नहीं किया.
परिवार का क्या कहना?
शाहबानो के परिजनों ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि किसी की भी निजी जिंदगी को बिना अनुमति के फिल्म में दिखाना सही नहीं है. हमें नहीं बताया गया कि फिल्म में क्या दिखाया जाएगा और न ही हमसे कानूनी अधिकार नहीं लिए गए.
शाहबानो के परिवार की याचिका में यह भी कहा गया है कि शरिया कानून की छवि गलत दिखाई है. इसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़कर दिखाया गया है. दूसरी तरफ याचिका में कहा है कि मूवी में शाहबानो बेगम की निजी जिंदगी को दिखाया है.
क्या था शाहबानो केस
शाहबानो इंदौर की रहने वाली एक महिला थी. साल 1975 में शाह बानो के पति मोहम्मद अहमद खान ने उसे तलाक दे दिया. शाहबानो और उसके 5 बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया. उस समय शाहबानो की उम्र 59 साल की थी.
शाहबानो ने बच्चों के लिए हर महीने गुजारा भत्ता देने की मांग की. लेकिन उसके पति ने मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) दे दिया. जिसके बाद उसने किसी भी तरह की मदद करने से इनकार कर दिया.
संविधान पीठ ने दिया था ऐतिहासिक फैसला
शाहबानो ने अदालत से न्याय की मांग की. हालांकि उसके पति मोहम्मद अहमद खान ने दलील दी कि तीन तलाक के बाद इद्दत की मुद्दत तक ही तलाकशुदा महिला की देखरेख की जिम्मेदारी उसके पति की होती है. तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं है. मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा था. लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची. पांच जजों की संविधान पीठ ने 23 अप्रैल 1985 को मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड के आदेश के खिलाफ जाते हुए शाहबानो के पति को आदेश दिया कि वो अपने बच्चों को गुजारा भत्ता दे.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हर महीने मोहम्मद अहमद खान को 179.20 रुपये देने थे. इस आदेश में संविधान पीठ ने सरकार से 'समान नागरिक संहिता' की दिशा में आगे बढ़ने की अपील की थी.
'समान नागरिक संहिता' वाले टिप्पणी और इस फैसले को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड ने जमकर नाराजगी जतायी थी. मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के आगे राजीव गांधी सरकार ने घुटने टेक दिए थे. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) कानून 1986 सदन में पेश किया.