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Republic Day 2025: स्वतंत्रता सेनानियों की धरती है ये जिला, आइए जानते हैं यहां के एकमात्र शहीद की कहानी

Republic Day 2025 Special: साल 1947 में भारत की आजादी में पूरे देश से कई स्वतंत्रता सेनानी एक साथ हुए. एमपी से आजादी की लड़ाई में बालाघाट से 365 स्वतंत्रता सेनानी सामने आए. इनमें से एक ऐसे आजादी के सिपाही थे, जिन्हें शहीद का दर्जा मिला. आइए आपको इनके बारे में बताते हैं.

Republic Day 2025: स्वतंत्रता सेनानियों की धरती है ये जिला, आइए जानते हैं यहां के एकमात्र शहीद की कहानी
Freedom Fighter from MP: बालाघाट के स्वतंत्रता सेनानी दशाराम फूलमारी

Balaghat news: आजादी की लड़ाई 200 सालों तक चलती रही. इस दौरान कई स्वतंत्रता सेनानियों (Freedom Fighters) ने आजादी के लिए संघर्ष किया. कई जतनों के बाद हमें अंग्रेजो से आजादी मिली. इस आजादी की लड़ाई में बालाघाट (Balaghat) के स्वतंत्रता सेनानियों का भी अहम योगदान रहा. बालाघाट में 365 स्वतंत्रता सेनानी थे. इनमें से 92 सेनानी वारासिवनी से है. इसलिए इसे स्वतंत्रता सेनानियों की धरती भी कहा जाता है. उन्हीं में से एक थे दशाराम फूलमारी उर्फ दाखिया, जो बालाघाट जिले से एकमात्र शहीद कहलाए. जानिए उनकी पूरी कहानी...

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हुई थी शहादत

दशाराम फुलमारी का जन्म बालाघाट के वारासिवनी में 1920 को हुआ था. वह एक किसान परिवार के थे. दशाराम फुलमारी आजादी की लड़ाई में समय-समय पर आंदोलनों में सक्रिय थे. वहीं, गांधी जी के आह्वान पर साल 1942 में देश भर में भारत छोड़ो आंदोलन हुआ था. ऐसे में यह आंदोलन बालाघाट के वारासिवनी में भी हुआ था, जिसमें जुलूस भी निकले. इस जुलूस में दशाराम फुलमारी सबसे आगे थे.

रैली में सबसे आगे थे दशाराम

इस दौरान जुलूस ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज किया. ऐसे में हिंसा भड़क गई और आंदोलनकारियों ने पत्थर फेंके. तब सुपरिन्डेन्ट ने गोली चलाने का आदेश दिया. ऐसे में सबसे आगे दशाराम थे और 22 साल की उम्र में वह शहीद हो गए. साथ ही कई लोग इसमें घायल हो गए. अब उस चौक को गोलीबारी चौक के नाम से जाना जाता है. इसमें दशाराम उर्फ दाखिया की प्रतिमा भी रखी गई है.

परिवार ने जताई नाराजगी

परिवार ने जताई नाराजगी

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दशाराम का परिवार है नाराज

दशाराम का परिवार आज भी वारासिवनी के वार्ड नंबर 13 में रहता है. उनकी बेटी का देहांत हो चुका है. वहीं, उनका भतीजा भी वहीं रहता है. उनके परिवार का कहना है कि हर साल मीडिया के लोग आते हैं. लेकिन, किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती है. उनका कहना है कि बीड़ी कारखाने के पास उनकी शहादत हुई थी. ऐसे में वहां पर उनका एक स्मारक था. लेकिन बीते कुछ समय से वह भी कहा है पता नहीं. 

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