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New School Registration Policy: 8000 निजी स्कूलों के बंद होने का संकट, अधर में लटका लाखों बच्चों का भविष्य

State Education Center Bhopal: राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल की ओर से लागू की गई नई मान्यता नीति के अनुसार अब केवल वही स्कूल मान्य होंगे, जो वैध दस्तावेज़ जैसे रजिस्टर्ड किरायानामा, भूमि के कागज़, और अन्य तकनीकी शर्तें पूरी करते हैं. हालांकि, छोटे निजी स्कूलों का कहना है कि ये नियम गरीब छात्रों और जमीनी हकीकत से बिल्कुल कटे हुए हैं.

New School Registration Policy: 8000 निजी स्कूलों के बंद होने का संकट, अधर में लटका लाखों बच्चों का भविष्य

New School Registration Policy News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के हज़ारों निजी स्कूल (Private School) बंद होने की कगार पर हैं. दरअसल, सरकारी मान्यता न मिलने के चलते करीब 8000 स्कूल संचालन बंद करने को मजबूर हैं. इसका सीधा असर उन लाखों बच्चों पर पड़ेगा, जो इन स्कूलों में पढ़ते हैं.

राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल की ओर से लागू की गई नई मान्यता नीति के अनुसार अब केवल वही स्कूल मान्य होंगे, जो वैध दस्तावेज़ जैसे रजिस्टर्ड किरायानामा, भूमि के कागज़, और अन्य तकनीकी शर्तें पूरी करते हैं. हालांकि, छोटे निजी स्कूलों का कहना है कि ये नियम गरीब छात्रों और जमीनी हकीकत से बिल्कुल कटे हुए हैं.

दुविधा में फंसे स्कूल संचालक

स्कूल संचालक प्रेम प्रजापति कहते हैं कि 12 साल से स्कूल चला रहे हैं, लेकिन अब हमारे पास मान्यता नहीं हैं.  उन्होंने अपना दुख बयान करते हुए कहा कि मैं 12 सालों से गांव में स्कूल चला रहा हूं, लेकिन रजिस्टर्ड किरायानामे के अभाव में हमें मान्यता नहीं मिली है. जब मकान मालिक तैयार नहीं होगा, तो हम क्या करें? वहीं, 22 सालों से स्कूल चलाने वाले संजय दुबे अपना दुख बयान करते हुए कहा कि हमारे यहां गरीब बच्चे पढ़ते हैं, उनके माता-पिता बर्तन और सफाई का काम करते हैं. हम किरायानामा नहीं बनवा सकते और फीस भी नहीं बढ़ा सकते. ऐसे में अब हमारे लिए स्कूल चलाना मुश्किल हो गया है.

सरकार की सख्ती या स्कूलों पर साज़िश?

वहीं, एक और स्कूल संचालक सुनीता राय इसे छोटे निजी स्कूलों को बंद करने की साजिश करार दे रही हैं.
उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि छोटे प्राइवेट स्कूल बंद हो जाएं, ताकि सरकारी स्कूलों में बच्चे जाएं. उन्होंने आगे कहा कि हमने लेट फीस दी, नियम माने, फिर भी मान्यता नहीं मिली. पैसा भी गया, स्कूल भी बंद होने की कगार पर है.

RTE भुगतान तीन साल से लंबित

इन स्कूलों की एक और बड़ी शिकायत यह है कि RTE (मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून) के तहत सरकार ने पिछले तीन सालों से भुगतान नहीं किया है. नतीजतन स्कूलों के आर्थिक संकट में होने की वजह से मुफ्त सीटें बंद कर दी गई हैं.

पारदर्शिता पर अड़ी सरकार

वहीं, इस मामले में सरकार का कहना है कि मान्यता की प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए ये कदम ज़रूरी हैं. सरकार की ओर से कहा गया है कि रजिस्टर्ड रेंट एग्रीमेंट का प्रावधान इसलिए किया गया है, ताकि स्कूल ज़मीन से न निकाले जाएं. वहीं, ₹30,000-₹40,000 सिक्योरिटी डिपॉजिट का प्रावधान इसलिए किया गया है,  ताकि वित्तीय संकट से स्कूल न बंद हों.

अभिभावकों की बढ़ी चिंता

सरकार और स्कूल संचालक की इस लड़ाई में इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य अधर में लटकता नजर आ रहा है. इससे अभिभावकों  की चिंता बढ़ गई है. उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि स्कूल बंद हो गया, तो बच्चे कहां पढ़ेंगे? ऐसी ही एक मां भूरी बिलाला कहती हैं कि हम गरीब हैं, स्कूल बंद हो गया, तो बच्चों को कहां पढ़ाएंगे? एक अन्य अभिभावक सीता बाजपेयी का कहना है  कि सरकारी स्कूल दूर हैं, बच्चों को भेजना मुश्किल है. प्राइवेट स्कूल ही सहारा था. अगर ये बंद हो गया, तो हम बच्चों को कहां पढ़ाएंगे.

मंत्री की सफाई, लेकिन सवाल बरकरार

जब एनडीटीवी ने इस मुद्दे पर स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सवाल पूछा, तो पहले वे टालते नज़र आए. बाद में उन्होंने कहा कि जिन्होंने पोर्टल पर अप्लाई किया, उन्हें मान्यता दी गई है. लेकिन स्कूल संचालकों का कहना है कि कई बार पोर्टल पर तकनीकी गड़बड़ियां थीं, या दस्तावेज़ पूरे नहीं होने की वजह से आवेदन ही नहीं हो पाया. 

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सवाल दस्तावेज़ों का नहीं, भविष्य का है. यह स्पष्ट है कि नियम, नीति और पोर्टल के इस मकड़जाल में असली नुकसान छोटे स्कूलों और लाखों बच्चों का हो रहा है. जब सवाल एक गरीब मां के सपनों का हो, एक शिक्षक की तपस्या का हो, और एक बच्चे के भविष्य का हो, तो दस्तावेज़ नहीं, दृष्टिकोण बदलने की ज़रूरत होती है. क्या सरकार सुन पाएगी, इन आवाज़ों को? या 8000 स्कूलों के बंद दरवाज़े, हमारे शिक्षा तंत्र की नई हकीकत बन जाएंगे?

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