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गजब है! जीवाजी यूनिवर्सिटी में PhD बनी मजाक, संस्कृत गाइड से कराते रहे ज्योतिष की रिसर्च, टेंशन में स्टूडेंट

नीरा विश्वकर्मा बताती है कि विवि वर्षों से संस्कृत के साथ ज्योतिर्विज्ञान की पीएचडी कराता आया है. 2021 में हमने इसके लिए एंट्रेंस दिया. तीन लोग सिलेक्ट हुए इसके बाद हमने क्लास वर्क (Class Work) किया और लगातार शोध (Research Work) किया. कई बार कहने के बावजूद विवि हमारी आरडीसी नहीं करवा रहा और अब कहने लगा कि संस्कृत के गाइड ज्योतिर्विज्ञान में शोध नहीं करा सकते.

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गजब है! जीवाजी यूनिवर्सिटी में PhD बनी मजाक, संस्कृत गाइड से कराते रहे ज्योतिष की रिसर्च, टेंशन में स्टूडेंट

Madhya Pradesh News: ग्वालियर का जीवाजी विश्वविद्यालय (Jiwaji University Gwalior) आए दिन विवादों की वजह से सुर्खियों में रहता है. हाल ही में प्राइवेट कॉलेजों की संबद्धता को लेकर तब चर्चा में था, तब स्टूडेंट्स ने यहा रेट कार्ड चिपका दिए. वैसे तो जीवाजी विश्वविद्यालय को ट्रिपल ए का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन इसकी चर्चा उत्कृष्ट शिक्षा के लिए नहीं बल्कि एकेडमिक अव्यवस्थाओं के लिए ही होती रहती है. यूनिवर्सिटी का एक मुख्य काम रिसर्च (Research Work) कराना होता है, लेकिन जीवाजी विश्वविद्यालय ने रिसर्च को ही मजाक बनाकर रख दिया है. यूनिवर्सिटी ने 2021 में पीएचडी के लिए एंट्रेंस एग्जाम (PhD Entrance Exam) कराए थे, अभी जो बच्चे चयनित हुए थे उनकी पीएचडी शुरू भी नहीं हुई थी कि अब फिर एंट्रेंस का विज्ञापन निकाल दिया. इस नए विज्ञापन ने सबसे बड़ी मुसीबत में ज्योतिर्विज्ञान (Astronomy) में पीएचडी कर रहे और करने के इक्छुक छात्र-छात्राओं को डाल दिया है. आइए जानते हैं क्या है मामला?

यह है पूरा मामला

ग्वालियर का जीवाजी विश्वविद्यालय ज्योतर्विज्ञान की अध्ययनशाला को संचालित करता है. जिसमें ज्योतिर्विज्ञान में ग्रेजुएट, पीजी और पीएचडी की कक्षाएं संचालित की जाती हैं. अब तक यह ज्योतिर्विज्ञान विषय का शोध कार्य संस्कृत सब्जेक्ट से जोड़कर उन्हीं के गाइड के मार्गदर्शन में कराया जाता था. इसके तहत अभी तीन लोगों की पीएचडी चल रही है, जिसमें आरडीसी (RDC) बची है. इस मामले में विवाद तब पैदा हुआ जब पिछले दिनों यूनिवर्सिटी ने एक विज्ञापन जारी किया जिसमें विभिन्न विषयों में पीएचडी कराने के इच्छा रखने वाले अभ्यर्थियों से इसका एंट्रेंस एग्जाम के लिए आवेदन मांगें थे. इसके एक हफ्ते बाद यूनिवर्सिटी ने फिर एक विज्ञापन जारी कर कर सूचित किया कि ज्योतिर्विज्ञान में पीएचडी करने वाले आवेदन न करें क्योंकि इसका शोध कराने के लिए उनके पास फिलहाल कोई गाइड (PhD Research Guide) नहीं है.

जब फैकल्टी नहीं थी तो सब्जेक्ट पढ़ाया क्यों : स्टूडेंट्स

इसके बाद ज्योतिर्विज्ञान में पीएचडी करने की तैयारी में जुटे छात्र-छात्राएं अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए. सबसे ज्यादा चिंतित वे लोग है जिनकी पीएचडी चल रही है.

ऐसी ही एक पीएचडी स्कॉलर हैं नीरा विश्वकर्मा, वे बताती है कि विवि वर्षों से संस्कृत के साथ ज्योतिर्विज्ञान की पीएचडी कराता आया है. 2021 में हमने इसके लिए एंट्रेंस दिया. तीन लोग सिलेक्ट हुए इसके बाद हमने क्लास वर्क (Class Work) किया और लगातार शोध (Research Work) किया. कई बार कहने के बावजूद विवि हमारी आरडीसी नहीं करवा रहा और अब कहने लगा कि संस्कृत के गाइड ज्योतिर्विज्ञान में शोध नहीं करा सकते. वे कहती हैं कि उनकी समझ में नहीं आ रहा कि उन्होंने जो मेहनत की और पैसा खर्च किया उसका क्या होगा? अब विवि अपनी गलती की सज़ा स्टूडेंट को क्यों दे रहा है?

नए अभ्यर्थी भी चिंतित

उधर दर्जनों ऐसे अभ्यर्थी हैं जो पीजी कर चुके है और अब पीएचडी की तैयारी करने में जुटे थे, लेकिन अचानक उनका सपना टूट गया.

ऐसे ही एक छात्र हैं जगदीश अरोरा, वे कहते हैं कि ज्योतिष (Astrology) पढ़ने के बाद हम सिर्फ पीएचडी करने के मकसद से यहां आते हैं. अब जब हमारा पीएचडी करने का समय आया तो विश्वविद्यालय हाथ खींच रहा है, यह तो सरकारी संस्था द्वारा की जाने वाली धोखाधड़ी है और हम इसके खिलाफ कोर्ट में भी जा रहे हैं.

यूनिवर्सिटी प्रशासन का क्या कहना है?

वहीं विवि के पीआरओ डॉ विमलेंद्र सिंह राठौड़ का कहना है कि यूजीसी के नियमों (UGC Rules) के तहत ज्योतिष का शोध कराने के लिए ज्योतिष का ही गाइड चाहिए होगा जो फिलहाल विवि के पास है ही नहीं.

अब तक इसके गाइड संस्कृत के विद्वान होते थे, लेकिन जब गाइडलाइन संज्ञान में आई तो तत्काल नया विज्ञापन जारी किया गया.

डॉ राठौड़ कहते हैं कि यह कदम स्टूडेंट के हित में ही उठाया गया है. लेकिन सवाल ये है कि अब तक संस्कृत विद्वान के अधीन पीएचडी करने वालो की पीएचडी का स्टेटस क्या रहेगा? और बीते कई सालों से शोध कर रहे और अब सिर्फ अपनी आरडीसी की प्रतीक्षा कर रहे स्टूडेंट की पीएचडी का क्या होगा?

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