Morari Bapu Osho Visit: ओशो की 94वीं जयंती के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक मुरारी बापू ने उनकी जन्मस्थली कुचवाड़ा पहुंचकर नमन किया. यहां उन्होंने कुछ देर शांत बैठकर ध्यान साधना की और ओशो की आध्यात्मिक विरासत को याद किया. इस दौरान देश–विदेश से आए ओशो अनुयायी बड़ी संख्या में मौजूद रहे, जिनमें कई भावुक भी दिखाई दिए.
मुरारी बापू का ओशो जन्मस्थान पर आगमन
मुरारी बापू जबलपुर में होने वाली आगामी रामकथा के लिए जाते समय ओशो तीर्थ कुचवाड़ा पहुंचे. यहां उन्होंने लगभग 45 मिनट रुककर पूजा-अर्चना की और ध्यान लगाया. जन्मस्थली पर पहुंचकर बापू ने ओशो की स्मृति को प्रणाम किया और शांत मुद्रा में साधना कर वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया.
ओशो अनुयायियों की भावुक उपस्थिति
कुचवाड़ा में नेपाल, जापान और देश के कई शहरों से आए सैकड़ों ओशो प्रेमी उपस्थित थे. सभी ने जन्मस्थली पर ध्यान लगाया और अपने गुरु को स्मरण करते हुए भावुक हो उठे. कई अनुयायियों की आंखों में ओशो से जुड़ी यादें स्पष्ट झलक रही थीं.
ओशो की आध्यात्मिकता पर मुरारी बापू के विचार
ध्यान के बाद मुरारी बापू ने ओशो को “आध्यात्मिक चेतना” का पर्याय बताया. उन्होंने कहा कि OSHO में ‘O' का अर्थ ओरिजिनल, ‘S' का साइलेंट, ‘H' का हैप्पीनेस और अंतिम ‘O' का ओरिजिनल है. चरम आध्यात्मिक चेतना ही ओशो है.” बापू के इन शब्दों ने वहां मौजूद अनुयायियों के मन में और भी श्रद्धा भर दी.
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संतों ने की ओशो की शिक्षाओं का सम्मान
भेड़ाघाट, जबलपुर के स्वामी श्रीला प्रेम पारस ने भी अपने विचार साझा किए. उन्होंने कहा कि अनेक संत ओशो को पढ़ते और समझते तो हैं, लेकिन खुलकर कहते नहीं. स्वामी ने यह भी कहा कि “मुरारी बापू पहले ऐसे संत हैं जिन्होंने ओशो के जन्मोत्सव पर रामकथा करने का निर्णय लिया है. एक दिन देश ओशोमय होगा.”
ओशो जन्मस्थली की परंपरा और कार्यक्रम
ओशो की जन्मस्थली कुचवाड़ा में हर वर्ष 11 दिसंबर को जन्मोत्सव मनाया जाता है. वर्षों से यहां ध्यान शिविर आयोजित होते रहे हैं और विनोद खन्ना सहित कई प्रमुख हस्तियां भी यहां आ चुकी हैं. आज भी देश–विदेश में ओशो के लाखों अनुयायी उनकी शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हैं और कुचवाड़ा को आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र मानते हैं.
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