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इस गांव को नहीं देता कोई अपनी बेटी, 100 से ज्यादा कुंवारों को नहीं मिल रही दुल्हन, वजह जान रह जाएंगे हैरान

मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के मारूबल्डिया गांव में जल संकट के चलते 100 से ज्यादा युवाओं की शादी नहीं हो पा रही है. गांव में पानी की कमी के कारण लोग अपनी बेटियों की शादी यहां नहीं करना चाहते हैं.

इस गांव को नहीं देता कोई अपनी बेटी, 100 से ज्यादा कुंवारों को नहीं मिल रही दुल्हन, वजह जान रह जाएंगे हैरान

क्या आपने कभी सोचा भी है कि लड़कों की शादी के लिए जरूरी योग्यता गांव में पानी की उपलब्धता हो सकती है? आगर मालवा जिले के मारूबल्डिया गांव में जल संकट के चलते सौ से ज्यादा नौजवान कुंवारे है और अपने रिश्तों का इंतजार कर रहे हैं. गांव की महिलाएं एक से दो किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर हैं. सिंचाई और पेयजल की पूर्ति के लिए बनाया गया तालाब दिसंबर महीने में सूख जाता है. गांव में लगे करीब एक दर्जन हैंडपंप पानी के अभाव में दम तोड़ चुके हैं और तीस से ज्यादा सरकारी ट्यूबवेल का जल स्तर बेहद नीचे है, जिसके चलते लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है. गांव के बाहरी इलाकों में बने कुएं भी सूख चुके हैं, जिनमें दूसरे गांव से पाइप लाइन डालकर इन कुओं को भरा जाता है. महिलाएं पैदल चलकर, बच्चे साइकिल पर और पुरुष मोटरसाइकिल पर अलग जगहों से पानी लाते हैं. दस साल की उम्र के बच्चों से लेकर नब्बे साल के बुजुर्ग तक सभी रोज सुबह से दोपहर तक बस एक काम करते हैं वो है अपने परिवार के लिए पानी का इंतजाम करना. गांव में नल जल योजना की बड़ी टंकी बना दी गई, हर घर तक नल कनेक्शन की लाइन भी डाली गई, मगर पानी की सप्लाई का कोई इंतजाम नहीं हुआ. आगर मालवा से एनडीटीवी संवाददाता जफर मुल्तानी की एक्सक्लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट देखिए... 

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भीषण में गर्मी में गांव में पानी की समस्या किस तरह की होती है यह जानने के लिए एनडीटीवी ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 220 किलोमीटर दूर आगर मालवा जिले के मारुबल्डिया जाने का फैसला किया. गांव जाने वाले कच्चे रास्ते के किनारे एक सूखे खेत में बने कुएं पर महिलाओं की भीड़ दिखाई दी. सुबह का सूरज निकलने के साथ ही मारूबल्डिया गांव की आबादी के बाहरी हिस्से में बने इस निजी कुएं पर पानी के लिए महिलाओं की ऐसी भीड़ आम बात है. यहां हर उम्र की महिलाएं पानी की जुगत में दिखाई दीं. इनके साथ स्कूल जाने वाली बच्चियां भी थीं.

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60 साल की बुजुर्ग अभी भी भरकर लाती हैं पानी

कुएं की दीवारें पक्की थीं. उसी में लगी एक पुल्ली को बहुत तेज गति से अपने हाथों से पानी खींचती हुई एक बुजुर्ग महिला दिखाई दी. चेहरे की सिलवटें कह रही थीं कि उम्र साठ साल से ज्यादा है. मगर जोश किसी नवयुवती जैसा. अपना नाम उन्होंने अनोखा बताया. इस उम्र में गांव से बाहर पानी लेने आने की वजह पूछने पर तल्खी भरे अंदाज में कहती हैं कि हमारी उम्र हो गई पानी भरते-भरते, इतनी दूर आना तो रोज का काम है. जब से शादी होकर गांव आई है, गर्मियों के दिनों में ऐसे ही परेशानी उठानी पड़ती है. अब आदत पड़ गई हमारी. उम्र देखेंगे तो पानी कैसे भर पाएंगे. ये रसाई खींचते-खींचते हमारे हाथ में छाले पड़ जाते हैं.

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या तो पढ लो, नहीं तो पानी भर लो

तभी ग्यारहवीं में पढ़ने वाली कोमल अपने सिर पर आठ खाली बर्तन पानी भरने के लिए कुएं पर आ गई. कोमल के साथ चार और महिलाएं भी अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से खाली बर्तनों को लेकर आई थीं. कोमल से जब पूछा कि पढ़ कर क्या बनना चाहती हो तो चेहरे पर उदासी छा गई. कहती है कि स्कूल के समय तो हमको पानी भरने आना पड़ता है. कई बार क्लास छूट जाती है, या तो पानी भर लो या फिर स्कूल पढ़ लो. एक समय में कोई एक ही काम कर सकते है.

तभी एक दूसरी महिला बीच में बोल उठती है, क्या स्कूल पढ़ाएं...? बहुत सारी लड़कियों की पढ़ाई छूट गई इस के चक्कर में.  क्लास में देर हो जाती है तो स्कूल के शिक्षक बैठाते नहीं.

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पानी के चक्कर में छूट जाती है क्लास

स्कूल के समय में बच्चों को पानी भरना होता है, ऐसे में कई बार इनकी क्लास छूट जाती है और पढ़ाई भी अधूरी रह जाती है. गांव ने कई बच्चे स्कूल की पढ़ाई छोड़ कर अपने ख्वाबों को दफन कर चुके हैं, क्योंकि उम्र से पहले ही इन्होंने घर के लिए जरूरी पानी की जिम्मेदारी संभाल ली है.

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अब क्या पढ़ना, पानी भी तो भरना है- अंकित

सोलह साल की उम्र में अंकित दसवीं क्लास में पढ़ रहे हैं. अपनी पुरानी साइकिल पर चार प्लास्टिक के केन पानी भरकर टूटे-फूटे, टेढ़े-मेढे रास्ते अपने घर ले जाते हुए दिखाई दिए. अंकित के चेहरे पर नाउम्मीदी साफ झलक रही थी. कुछ बनने और करने का ख्वाब इन पथरीले रास्ते में कुच गया लगता है. अंकित ने कहा कि अब क्या बनना... पानी भरना पड़ता है, अगर इस तरह मैं रोज साइकिल पर पानी नहीं ले जाऊंगा तो घर में खाना कैसे बनेगा और क्या पियेंगे. घर में जितने भी सदस्य हैं, सब ही ऐसे भरने के लिए गांव से बाहर जाते हैं.

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महिलाएं अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से घर से खाली बर्तन लेकर आती हैं. हर एक महिला के पास कम से कम आधार दर्जन खाली बर्तन होते हैं. ऐसा इसलिए कि जिस कुएं में ये पानी भर रही हैं, इसमें पानी नहीं है. गांव से दूर सौ किलोमीटर एक ट्यूब वेल से पाइपलाइन के माध्यम से इस कुएं में रोज रात में पानी डाला जाता है और दोपहर होते होते यह पानी खत्म हो जाता है. ऐसे में जितनी जल्दी हो सके ज्यादा से ज्यादा पानी इन बर्तनों में भर लिया जाए. अगर बिजली सप्लाई किसी तरह से बाधित होती है तो फिर यह पानी भी नहीं मिलेगा.

एक अन्य महिला कहने लगी अब तो गांव छोड़ने का मन बना किया है. इंसान और पशु सबको पानी की समस्या है. कुछ नहीं है इस गांव में.

इस कुएं के किनारे पर खड़ी हो कर जान का जोखिम लेते हुए ये महिलाएं पीने का पानी भरती हैं. कुएं के किनारे के जरा सा पैर फिसला तो सीधा कुएं के अंदर ही गिरना तय है. महिलाओं ने बताया कि ये जोखिम लेना हमारा रोज का काम है. अगर जोखिम नहीं लेंगे तो पानी नहीं मिलेगा, क्योंकि बिजली आने पर दूर गांव से पाइपलाइन के जरिए पानी कुएं में आता है, जो सुबह से दोपहर तक ही चल पाता है. अगर हम देर कर देंगे तो पानी खत्म हों जाता है और हमको पानी मिलेगा.

हमने इन महिलाओं से पूछा कि क्या कभी इन्होंने नेताओं और अधिकारियों से इस समस्या के बारे में बात की है ..? तो मौजूद सभी महिलाएं एकसाथ आग बबूला हो उठीं. कहने लगीं, हमने सबको बता दिया. सरपंच को हम वोट देते हैं, विधायक को भी वोट दिया, सांसद को भी वोट दिया, मगर वोट लेने के बाद कोई नहीं आता.

महिलाओं ने बताया कि नेताओं पर भरोसा नहीं रहा. हमारा जो भी काम है प्रभु शर्मा करते है. प्रभु शर्मा गांव के सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो गांव की समस्या को उठाते रहते हैं. प्रभु शर्मा ने एनडीटीवी को बताया कि पानी भरना हमारे गांव में एक काम है. महिला पुरुष सबके लिए रोज एक ड्यूटी है, जिस तरह ऑफिस में काम के लिए जाते है वहां हाजिरी जरूरी होती है. वैसे ही इस गांव में रोज करीब दो किलोमीटर दूर से पानी लाना ड्यूटी है. इस ड्यूटी की महिला , पुरुष , बच्चे और बुजुर्ग सब निभाते हैं. जल संकट के चलते गांव की आर्थिक स्थिति भी खराब हुई है. केवल पीने का पानी नहीं यहां सिंचाई के लिए भी पर्याप्त पानी नहीं रहता है, जिसके चलते किसानों को उत्पादन पूरा नहीं मिलता. फसल की क्वालिटी भी अच्छी नहीं होती और इस कारण दाम भी अच्छा नहीं मिलता.

प्रभु ने आगे बताया कि हमने पानी के लिए जल सिंचाई आंदोलन भी किया था.  इस आंदोलन में आसपास के करीब अस्सी गांव के लोग एक साथ जमा हुए थे. मगर इस आंदोलन का सरकार पर कोई असर नहीं हुआ. आसपास के जितने भी गांव सभी जगह से पांच-पांच युवा अपने खून से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखेंगे और हमारी समस्या से अवगत कराएंगे. शायद पीएम मोदी हमारी सुन लें और समाधान करवा दें.

पेयजल संकट के चलते गांव में सबसे ज्यादा परेशानी यहां के युवाओं की हुई है. गांव में कोई भी अपनी लड़की नहीं देना चाहता है. हालात यह हैं कि करीब दो हजार की आबादी वाले इस गांव में 120 से ज्यादा युवा कुंवारे है, जो अपनी शादी का इंतजार कर रहे हैं.

गांव की 55 वर्षीय माना बाई ने बताया कि उनके तीन बेटे हैं. एक 18, दूसरा 25 और तीसरा 30 का है. तीनों कुंवारे हैं. गांव में पानी की समस्या के कारण कोई लड़की नहीं दे रहा है. कोई नहीं चाहता कि उनकी लड़की गांव से इतनी दूर पानी लेने के लिए जाए. मैं बहुत परेशान हूं.

जलसंकट के कारण नहीं हो पा रहा रिश्ता

वहीं, पानी भरने आए नारायण सिंह ने कहा कि पानी लेने आना उनके लिए सामान्य बात है. मगर तीस साल की उम्र हो गई, मेरी शादी नहीं पाई. कोई भी रिश्ता करने आता है तो गांव में पानी की समस्या देख कर वापस चल जाता है. मेरे करीब तीस दोस्त हैं. गांव में जो अभी तक कुंवारे हैं. सभी का रिश्ता जल संकट के कारण नहीं हो पाया.

ईश्वर सिंह भी कुएं पर मौजूद थे. उन्होंने अपनी उम्र 25 वर्ष बताई. उन्होंने कहा कि जमीन जायदाद है, घर की हालत भी ठीक है, मगर जो भी रिश्ते के लिए आता है, गांव में पानी की कमी के कारण वापस चला जाता है. सिंचाई का पानी भी नहीं है हमारे गांव में. शंकर उदास चेहरा लिए कहते है कि कई बार रिश्ते के लिए लोग आए, लेकिन पानी की कमी कारण छूट जाता है.

लोग पानी लाने के लिए बैलगाड़ी का भी इस्तेमाल करते हैं, जिससे ड्रम भरकर पानी ले जाते हैं. मोटरसाइकिल, साइकिल से लोग पानी घर के लिए ढोने को मजबूर हैं.

इस गांव में तीस से ज्यादा सरकारी ट्यूबवेल, करीब दर्जन भर हैंडपंप और बीस साल पहले बनाया गया तालाब मौजूद है. मगर पानी किसी में भी नहीं है. जलस्तर नीचे जाने के कारण ट्यूबवेल और हैंडपंप में पानी नहीं आता. वहीं, तालाब के निर्माण में हुई तकनीकी गड़बड़ी के चलते इस बड़े सारे तालाब का सारा पानी बहकर चला जाता है. बड़ी स्टोरेज क्षमता के बावजूद इस तालाब का पानी ग्रामीणों के लिए ना तो सिंचाई में काम आता है और ना ही पीने के काम आता है.

नल जल योजना के तहत इस गांव के ऊपरी हिस्से में करीब दो लाख लीटर की टंकी निर्माण हो चुका है. मगर इसमें पानी की सप्लाई का कोई इंतजाम अभी तक नहीं हो सका है. कुंडलियां डैम पानी की पाइपलाइन जोड़ने की योजना तो है मगर कब तक इसका कोई जवाब नहीं है. गांव में हर घर के बाहर नल जल योजना की पाइपलाइन पहुंच गई मगर अभी तक नहीं पहुंचा. गांव के लोग घर के अंदर पानी का स्टॉक करके रखते है. इस पानी में कचरा और कीड़े हो जाते है जिसके चलते बीमारी का खतरा भी बना रहता है.

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