
MP Flood News Today: भिंड ज़िले में लगातार हो रही बारिश और डैमों से छोड़े गए पानी ने एक बार फिर तबाही मचा दी है. दरअसल, चंबल, क्वारी और सिंध ये तीनों नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. इनमें से सबसे ज्यादा तबाही सिंध नदी के उफान से देखने को मिल रही है.
सिंध का जलस्तर उतरे अभी कुछ घंटे ही हुए हैं, लेकिन इसके पीछे जो मंजर छोड़ा है, वह दिल दहला देने वाला है. मड़ीखेड़ा और मोहिनी डैम से छोड़ा गया पानी ऊमरी थाना क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक गांवों में घुस आया. खेरा श्यामपुरा गांव में रात के अंधेरे में जब पानी चुपचाप आया, तो लोगों को भागने तक का मौका नहीं मिला. बच्चे गोद में थे, बुजुर्ग सहमे हुए, कोई अनाज बचा रहा था, तो कोई मवेशियों को खोलने की कोशिश में लगा था. तीन दिन तक लोग डाक बंगले और स्कूलों में जैसे-तैसे शरण लेकर भूखे-प्यासे पड़े रहे.
ऐसा है गांवों का मंजर
पानी वापस उतरने के बाद भयानक मंजर देखने को मिला. हर तरफ टूटी हुई दीवारें, बिखरी गृहस्थी, कीचड़ से पटे पड़े आंगन, गिरा हुआ छप्पर और मलबे में तब्दील हुए कच्चे घर. गांव के कम से कम 12 से 15 परिवारों के मकान पूरी तरह ढह चुके हैं. लोगों के पास अब न छत है, न बिस्तर, न खाना. बच्चों की किताबें, कपड़े, खाने का अनाज, रजाई-गद्दे – सब कुछ सिंध की लहरें बहा ले गईं. मवेशियों के चारे तक का नामोनिशान नहीं बचा.
नेताओं पर फूटा लोगों का गुस्सा
अब जब पानी उतर गया है, तो नेताओं का आना-जाना शुरू हो गया है. मगर इस बार गांव वालों के सब्र का बांध टूट चुका है. जब भिंड-दतिया सांसद संध्या राय गांव पहुंचीं, तो गुस्साए ग्रामीणों ने सवाल दाग दिए. जब हम भूख से तड़प रहे थे, तब कोई नहीं आया, अब फोटो खिंचवाने क्यों आए हैं. कैलाश प्रजापति, रमेश बघेल जैसे ग्रामीणों ने खुलकर कहा –हम गरीब हैं, घूस नहीं दे सकते, इसलिए आज तक पक्का मकान नहीं मिला. हमारे बच्चों की पढ़ाई छिन गई, हम रात भूखे बिताने को मजबूर है, लेकिन अफसर सिर्फ जांच की बात कहकर चले जाते हैं.
गुस्साए लोगों ने दी आंदोलन की चेतावनी
गांव वालों का कहना है कि पिछले पांच साल में ये तीसरी बार है, जब उन्होंने बाढ़ की मार झेली है. हर बार अफसर और नेता आते हैं, सर्वे होता है, आश्वासन मिलते हैं और फिर सब भूल जाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि हमारे गांव को बसाने की जगह चाहिए. अब अगर सिर्फ घोषणाएं मिलीं तो हम सड़क पर उतरेंगे और अपना हक छीनकर लेंगे. यह बात गांव के हर बुजुर्ग, हर महिला और हर युवा के चेहरे पर साफ दिखती है. लोगों का कहना है कि प्रशासन ने न तो समय रहते चेतावनी दी, न ही बाढ़ के वक्त मदद पहुंची.
भिंड जिले की नदियां हर साल उफान पर आती हैं, और हर बार पीछे सिर्फ तबाही छोड़ जाती हैं. लेकिन जो पीछे छूट जाता है, वो है लोगों की जिंदगी की जद्दोजहद, गरीबी की मार, और प्रशासन की बेरुखी. खेरा श्यामपुरा जैसे गांव अब वादों से नहीं, कार्यवाही से राहत चाहते हैं. क्या इस बार कुछ बदलेगा? या फिर यह बाढ़ भी बीते सालों की तरह सिर्फ एक और सरकारी "फाइल" बनकर रह जाएगी?