जानिए मध्य प्रदेश में क्या हैं बीजेपी की चुनौतियां
Madhya Pradesh Elections: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Assembly Elections) में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के समक्ष कई अहम चुनौतियां होंगी. भाजपा को चुनावों में कांग्रेस (Congress) को रोकने के लिए सत्ता विरोधी लहर से लड़ना होगा, अंदरूनी कलह से उबरना होगा और 16 साल से अधिक समय के दौरान राज्य नेतृत्व के प्रति अरुचि के बीच मतदाताओं का सामना करना होगा. प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद, भाजपा 2018 में कांग्रेस से हार गई थी लेकिन मार्च 2020 में कमलनाथ (Kamalnath) के नेतृत्व वाली सरकार गिरने के बाद सत्ता में वापस आने में कामयाब रही. आज नजर डालेंगे मध्य प्रदेश में बीजेपी के एक आकलन (ताकतें, कमजोरियां, अवसर, खतरे) पर, जहां भगवा पार्टी और कांग्रेस पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी हैं.
क्या है ताकत?
भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की व्यापक अपील पर बहुत अधिक भरोसा कर रही है, जो एक ओबीसी नेता हैं और अपनी ज़मीन से जुड़ी छवि के लिए जाने जाते हैं.सत्तारूढ़ पार्टी महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए अपनी पहुंच पर भरोसा कर रही है और उसने 'लाडली बहना योजना' जैसी समर्पित योजनाएं शुरू की हैं. इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को 1,250 रुपए प्रति माह मिलते हैं और सरकार ने इस राशि को 3,000 रुपए प्रति माह तक बढ़ाने का वादा किया है.एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा जो पूरे वर्ष चुनावी ढंग में रहता है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मप्र में पार्टी संगठन को देश में सर्वश्रेष्ठ में से एक करार दिया है.भाजपा भी हिंदुत्व, विकास और डबल इंजन विकास के मुद्दे पर भरोसा कर रही है. एक कुशल रणनीतिकार माने जाने वाले शाह तैयारियों की निगरानी कर रहे हैं.राज्य से आने वाले अपने कुछ सांसदों और कुछ केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारे जाने के बाद सत्ताधारी दल व्यापक अपील का लाभ उठाना चाहता है.भगवा पार्टी ने अपने राष्ट्रीय महासचिव और भीड़ खींचने वाले कैलाश विजयवर्गीय को भी टिकट दिया है.ये हैं कमजोरियां :
संभावित सत्ता विरोधी लहर, क्योंकि दिसंबर 2018 से मार्च 2020 तक एक संक्षिप्त झटके को छोड़कर, भाजपा पार्टी 2003 से राज्य में शीर्ष पर है.भाजपा को संगठन में उथल-पुथल का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कई नेता जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए थे, वे अपनी मूल पार्टी कांग्रेस में लौट गए हैं.18 साल से सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री चौहान के खिलाफ निरूत्साह का माहौल बन रहा है. मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हैं.कांग्रेस ने कथित भ्रष्टाचार, महिलाओं के खिलाफ अपराध में वृद्धि, दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी समेत अन्य मुद्दों के खिलाफ कड़ा अभियान चलाया है.अवसर :
लगभग दो दशकों तक सत्ता में रहकर, भाजपा ने कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से महिला मतदाताओं और अन्य वर्गों से किए गए कई वादों को लागू किया है.विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के सहयोगी दल कांग्रेस, आप और समाजवादी पार्टी के अलग-अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में, ऐसा घटनाक्रम भाजपा के पक्ष में होगा.सनातन धर्म पर विवाद भाजपा की हिंदुओं के रक्षक की छवि को मजबूत करने के काम आता है. हाल ही में जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान डीएमके नेताओं की टिप्पणियों को भाजपा ने खूब उछाला।.परंपरागत रूप से, कांग्रेस को छोड़कर सपा, बसपा और अन्य दल मध्य प्रदेश की राजनीति में सीमांत खिलाड़ी हैं.क्या हैं चुनौतियां?
मजबूत केंद्रीय नेतृत्व के कारण भाजपा के भीतर अंदरूनी कलह को काफी हद तक छुपा कर रखा गया है, लेकिन हार से दरारें खुलकर सामने आ सकती हैं.त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में, भाजपा को बहुमत जुटाने के लिए सहयोगी ढूंढना मुश्किल हो सकता है.कांग्रेस ने 2003 के बाद से अधिकांश खोई हुई जमीन हासिल कर ली है. 2003 में उसने सिर्फ 38 सीटें जीती थीं, लेकिन 2018 में 114 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल करके वापसी की.2003 में, भाजपा ने 173 सीटें जीतीं, लेकिन 2008 में इसकी संख्या घटकर 143 रह गई. 2013 में, भाजपा ने 165 सीटें हासिल की, लेकिन 2018 में उसने बहुमत खो दिया जब उसकी संख्या 109 तक गिर गई.भाजपा के कई नेता, जिनमें से कुछ संघ की विचारधारा के प्रति समर्पित हैं, कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. संघ के कुछ पुराने चेहरों ने नई पार्टी बना ली.कांग्रेस ने कृषि ऋण माफी, पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करने और 100 यूनिट तक मुफ्त बिजली जैसी कई 'गारंटियों' का आश्वासन दिया है.
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