Kartik Purnima 2025: आज कार्तिक पूर्णिमा का पावन दिन है. भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र तथा प्रथम देव गणेश के भाई भगवान कार्तिकेय स्वामी की आराधना का दिन. मान्यता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. लेकिन भगवान कार्तिकेय के दर्शन पाना आसान नहीं है, क्योंकि देश का सबसे प्राचीन मंदिर जो ग्वालियर में स्थित है, उसके पट साल में केवल एक दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर ही खुलते हैं.
देश का सबसे प्राचीन कार्तिकेय मंदिर
ग्वालियर के जीवाजी गंज क्षेत्र में स्थित भगवान कार्तिकेय मंदिर उत्तर भारत का सबसे प्राचीन और दुर्लभ मंदिर माना जाता है. यह मंदिर करीब चार सौ वर्ष पुराना है. मंदिर के पुजारी पंडित जमुना प्रसाद शर्मा बताते हैं कि इसकी स्थापना का कोई सटीक लेख नहीं है, लेकिन सिंधिया शासकों के काल में इसका जीर्णोद्धार कराया गया था. तब से लेकर आज तक यहां पूजा-अर्चना निरंतर जारी है.
साल में सिर्फ एक बार खुलते हैं पट
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मंदिर के द्वार साल में केवल एक बार, कार्तिक पूर्णिमा की मध्यरात्रि को खुलते हैं. बाकी पूरे साल मंदिर के पट बंद रहते हैं. जैसे ही घड़ी में बारह बजते हैं, पुजारी परंपरानुसार भगवान का अभिषेक और आरती करते हैं और दर्शन के लिए द्वार खोल दिए जाते हैं. उस क्षण मंदिर में मौजूद हर व्यक्ति के मन में श्रद्धा और आस्था का अनोखा संगम देखने को मिलता है.
देशभर से उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़
इस दिव्य दर्शन का सुख पाने के लिए भक्त केवल ग्वालियर या मध्यप्रदेश से ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों से भी यहां आते हैं. मंदिर में आधी रात से ही लंबी कतारें लग जाती हैं. श्रद्धालु मानते हैं कि भगवान कार्तिकेय के दर्शन करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
प्रसाद बांटने की परंपरा और भक्तों की आस्था
मंदिर में प्रसाद वितरण करने वाले राजेंद्र शिवहरे बताते हैं कि वे पिछले 21 वर्षों से यहां प्रसाद बांट रहे हैं. उन्होंने कहा कि “जब मेरी पहली मनोकामना पूरी हुई थी, तब मैंने 5 किलो प्रसाद चढ़ाया था. हर साल मेरे जीवन में खुशियां बढ़ीं और अब मैं एक क्विंटल 11 किलो का प्रसाद चढ़ा रहा हूं.
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क्यों सिर्फ एक दिन ही मिलते हैं दर्शन?
भगवान कार्तिकेय के दर्शन साल में केवल एक बार ही क्यों होते हैं, इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है. पुजारी जमुना प्रसाद शर्मा बताते हैं कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय से कहा कि जो ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सबसे पहले लौटेगा, उसी का विवाह पहले करेंगे.
भगवान कार्तिकेय अपने वाहन पर निकल पड़े, जबकि गणेश जी ने बुद्धिमानी दिखाते हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा की और पहले लौट आए. परिणामस्वरूप गणेश जी का विवाह हो गया. जब कार्तिकेय को यह पता चला तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने श्राप दिया कि जो भी उनके दर्शन करेगा, वह सात जन्मों तक नरक भोगेगा. माता-पिता के समझाने पर उन्होंने यह श्राप बदलकर वरदान दे दिया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो भी उनके दर्शन करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.
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आस्था, परंपरा और अध्यात्म का संगम
हर कार्तिक पूर्णिमा को ग्वालियर का यह मंदिर भक्ति, विश्वास और अध्यात्म का केंद्र बन जाता है. एक दिन के दर्शन के लिए हजारों लोग सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करते हैं. मंदिर की दीवारों पर घंटियों की गूंज, दीपों की रोशनी और “ॐ कार्तिकेयाय नमः” के जयकारे पूरे वातावरण को दिव्यता से भर देते हैं.