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उपेक्षा और गुमनामी में जीने को मजबूर कारगिल युद्ध के शहीद के परिजन, जवान की पत्नी का छलका दर्द

Dindori News: डिंडोरी जिले में कारगिल युद्ध में शहीद एक जवान के ऐसे परिजन हैं, जो आज भी उपेक्षा और गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं. आइए आपको इनके बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.

उपेक्षा और गुमनामी में जीने को मजबूर कारगिल युद्ध के शहीद के परिजन, जवान की पत्नी का छलका दर्द
कारगिल में शहीद जवान के परिवार को नहीं मिल रही सुविधाएं

Kargil Martyr Family: एक ओर जब पूरा देश कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas 2025) की 26वीं वर्षगांठ पर अपने शहीदों को नमन कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के डिंडोरी (Dindori) जिले से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जो हमारे सिस्टम की संवेदनहीनता को उजागर करती है. जिले के कोहानी देवरी गांव में कारगिल शहीद बिहारी सिंह मार्को का परिवार आज भी गुमनामी और उपेक्षा के साये में जीने को मजबूर है. कारगिल विजय दिवस के इस पावन दिन पर भी, न कोई अधिकारी और न कोई जनप्रतिनिधि शहीद के परिजनों का हालचाल लेने पहुंचा.

कारगिल युद्ध में शहीद जवान का परिवार उपेक्षा में

कारगिल युद्ध में शहीद जवान का परिवार उपेक्षा में

क्या कहती है शहीद की पत्नी?

शहीद की पत्नी जानकी बाई कहती हैं कि उन्हें गर्व है कि उनके पति ने देश के लिए जान दी. लेकिन, सरकार द्वारा वादे के बावजूद परिवार के किसी भी सदस्य को अब तक नौकरी नहीं मिल सकी. तीन साल पहले गांव में पूर्व विधायक भूपेंद्र मरावी द्वारा जो स्मारक बनवाया गया था, वह आज भी अधूरा पड़ा हुआ है. न लोकार्पण हुआ, न देखरेख...

पेंशन की राशि से गुजारा है मुश्किल

शहीद बिहारी सिंह की पत्नी जानकी बाई ने बताया कि उन्हें 13 हजार रुपये हर महीने पेंशन की राशि मिलती है, जिससे गुजारा नहीं हो पाता है. उन्होंने बताया कि वे किसी तरह मेहनत मजदूरी करके अपनी बेटी की शादी कराई हैं और कर्ज लेकर घर बनाया है. लेकिन, उनका बेटा आज भी बेरोजगार है. बेटे को सरकारी नौकरी दिलाने के लिए उन्होंने कई बार अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से गुहार भी लगाई है, लेकिन किसी ने भी उनकी सुध नहीं ली है.

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स्थानीय लोगों में आक्रोश

स्थानीय ग्रामीण महिला सीता राय बताती हैं कि बिहारी सिंह उनके गांव की शान थे. देश की रक्षा के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, लेकिन उनके परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है. हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर अधिकारी आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं और आश्वासन देकर लौट जाते हैं. लेकिन, जमीनी हकीकत नहीं बदलती.

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