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रावण भक्त लंकेश का निधन, आखिरी बार दशानन की मूर्ति भी नहीं कर सके विसर्जित, जानिए संतोष नामदेव की कहानी

Jabalpur Lankesh Hindi News: संतोष का तर्क था कि रावण में भले की बुराई थी, लेकिन मैं उनकी अच्छाइयों को आगे बढ़ा रहा हूं। मुझे जो भी मिला उनकी भक्ति से ही मिला है, मेरी हर मनोकामना पूरी हुई है।

रावण भक्त लंकेश का निधन, आखिरी बार दशानन की मूर्ति भी नहीं कर सके विसर्जित, जानिए संतोष नामदेव की कहानी

Jabalpur Lankesh Passes Away: मध्‍य पद्रेश के जबलपुर जिले की पाटन तहसील के बाजार वार्ड में रहने वाले संतोष नामदेव (मुन्ना टेलर मास्टर) का शनिवार को निधन हो गया. 68 वर्ष साल के मुन्ना का जीवन साधारण नहीं था. वे पूरे क्षेत्र में “लंकेश” के नाम से जाने जाते थे. पिछले पचास वर्षों से वे रावण को अपना आराध्य मानते थे और उसकी पूजा करते थे. रावण की यही भक्ति उनकी एक अलग पहचान बन गई थी. लोग जब भी उन्‍हें मिलते जय कहकर ही पुकारते थे.

नवरात्रि के दौरान “लंकेश” (संतोष नामदेव) हर साल रावण की भव्य प्रतिमा स्थापित करते थे, जिसे देखने दूर-दूर से श्रद्धालु आते थे. उनके इस आयोजन में आसपास के ग्रामवासी और परिवारजन भी पूरे मन से सहयोग करते थे. विजयादशमी के दिन नगर में रावण के पुतले का दहन होता था, उसके अगले द‍िन “लंकेश” उन अवशेषों को एकत्रित कर शरद पूर्णिमा पर विधिवत पूजन के साथ जल में विसर्जित करते थे. साथ ही स्‍थापित की गई रावण की प्रतिमा भी विसर्जित थे. यह परंपरा वर्षों से चल रही थी. लेकिन इस बार विसर्जन से पहले ही संतोष नामदेव ने देह त्याग दी. उनकी मृत्यु से रावण की वह प्रतिमा अपने स्थान पर अधूरी श्रद्धा के प्रतीक के रूप में रह गई. संतोष नामदेव के दोस्‍त और नगर पार्षद दीपक जैन ने बताया कि मुन्ना भैया की अंतिम इच्छा देहदान की थी. लेकिन पर‍िवार की अनुमति नहीं म‍िलने के कारण ऐसा नहीं हो सका.

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कैसे बने रावण के भक्‍त

जलबपुर के पाटन गांव में रहने वाले संतोष उर्फ लंकेश पेशे से टेलर थे. वह बचपन में रामलीला देखने जाया करते थे। कुछ समझदार होने पर उन्हें रामलीला में सैनकि बनने का मौका मिला। इसके कुछ साल बाद वे रावण का किरदार न‍िभाने लगे, उनका यह किरदार इलाके में चर्चित हो गया. इसी दौरान संतोष ने रावण के बारे में जाना तो उससे प्रभावित हो गए और फिर उसकी भक्ति में जुट गए. इसके बाद उन्‍होंने अपने दोनों बेटों के नाम मेघनाथ और अक्षय रख दिए। यही नाम रावण के बेटों के भी थे।

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रावण को लेकर देते थे यह तर्क

रावण को लेकर संतोष का तर्क अलग था. वे कहते थे- “जिस रावण को मारने के लिए स्वयं भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा, वह कितना तेजस्वी, ज्ञानी और बलशाली रहा होगा.” रावण में भले की बुराई थी, लेकिन मैं उनकी अच्छाइयों को आगे बढ़ा रहा हूं। मुझे जो भी मिला उनकी भक्ति से ही मिला है, मेरी हर मनोकामना पूरी हुई है। लंकाधिपति रावण ने जो किया वह अपने राक्षस कुल को तारने के लिए किया था। उन्होंने माता सीता का अपहरण किया, लेकिन उन्हें उस अशोक वाटिका में रखा, जहां नर और राक्षस ही नही पशु-पक्षी को भी जाने की अनुमति नहीं थी।

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