Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने केवल सामान्य वर्ग के गरीबों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) प्रमाणपत्र दिए जाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है. जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से पूछा है कि जब गरीबी सभी जाति और वर्गों में है, तो सिर्फ सामान्य वर्ग को ही ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र क्यों जारी किया जा रहा है? अदालत ने राज्य सरकार को 30 दिनों के अंदर इस संबंध में अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.
ये है मामला
यह याचिका 'यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस' नाम की संस्था की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने दायर की है. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 2 जुलाई 2019 को जारी मध्य प्रदेश सरकार की ईडब्ल्यूएस नीति संविधान के अनुच्छेद 14, 15(6) और 16(6) के प्रावधानों के खिलाफ है. याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के तहत ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र सभी वर्गों के गरीबों को दिया जाना चाहिए, लेकिन सरकार ने इसे केवल उच्च जातियों तक सीमित कर दिया है. ओबीसी, एससी और एसटी वर्गों को इससे बाहर रखा गया है, जो कि असंवैधानिक है.
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सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने पहले ही ईडब्ल्यूएस आरक्षण से संबंधित मुद्दों का समाधान कर दिया है. हालांकि याचिकाकर्ताओं ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जिस मामले का हवाला दिया गया है, वह संविधान के 103वें संशोधन की वैधता पर आधारित था. जबकि इस याचिका में उठाए गए मुद्दों पर वह निर्णय लागू नहीं होता.
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