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इलाज का ये इंतजार नहीं हो रहा खत्म... हड्डी शल्य चिकित्सा के लिए महीनों की वेटिंग, जबलपुर जिला अस्पताल में बुरा हाल!

Jabalpur District Hospital Bad Conditions: जबलपुर के जिला अस्पताल में हड्डी का इलाज कराना बेहद मुश्किल हो रहा है. यहां मरीज हड्डी की सर्जरी के लिए अस्पताल में भटक रहे हैं. अस्पताल में इलाज के बाद सर्जरी के लिए महीनों का वेटिंग पीरियड मरीज के दर्द को और बढ़ा रहा है.

इलाज का ये इंतजार नहीं हो रहा खत्म... हड्डी शल्य चिकित्सा के लिए महीनों की वेटिंग, जबलपुर जिला अस्पताल में बुरा हाल!

Jabalpur District Hospital Bad Conditions: जबलपुर में महाकोशल अंचल का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल (जिला अस्पताल जबलपुर) इन दिनों ऑर्थोपेडिक (हड्डी) शल्य चिकित्सा को लेकर गंभीर चुनौती से जूझ रहा है. यहां न केवल जबलपुर, बल्कि कटनी, डिंडोरी, मंडला, नरसिंहपुर, बालाघाट और सिवनी जैसे जिलों से भी रोजाना बड़ी संख्या में मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, लेकिन अब यहां हड्डी की सर्जरी के लिए मरीजों को दो से तीन महीने तक इंतजार करना पड़ रहा है, जिससे सैकड़ों मरीज मानसिक, शारीरिक और आर्थिक पीड़ा झेल रहे हैं.

ऑपरेशन के लिए 10 दिन से भर्ती मरीज सिकंदर

NDTV से बातचीत में 10 दिन से भर्ती मरीज सिकंदर ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा, 'मैं रोज सुनता हूं कि आज ऑपरेशन होगा, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. मैं ठेला लगता हूं और रोज दो-ढाई सौ रुपये कमाता था. अब ऑपरेशन की वजह से काम पर नहीं जा पा रहा हूं, जिससे घर की हालत बिगड़ती जा रही है. मैं अकेला कमाने वाला हूं, ऐसे में जल्दी ऑपरेशन होना जरूरी है.'

मरीजों को लंबे समय तक करना पड़ रहा है इंतेजार

सिकंदर अकेला ऐसा मरीज नहीं है. अस्पताल में कई ऐसे केस सामने आ रहे हैं, जिनमें मामूली चोट के बावजूद समय पर ऑपरेशन न हो पाने के कारण मरीजों को लंबे समय तक दर्द और असहायता झेलनी पड़ रही है.

इस संबंध में जब मुख्य चिकित्सा व स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. संजय मिश्रा से बात की, तो उन्होंने बताया, 'हड्डी की सर्जरी से पहले कई चीजें देखना जरूरी होता है. जैसे मरीज की ब्लड प्रेशर और शुगर की स्थिति, ऑपरेशन थिएटर की उपलब्धता और डॉक्टरों की संख्या. अस्पताल में एक दिन में अधिकतम पांच ऑपरेशन किए जा सकते हैं. यदि संख्या अधिक हो जाती है, तो मरीजों को प्रतीक्षा करनी पड़ती है. कुछ मरीजों की हालत ऐसी होती है कि ऑपरेशन तुरंत करना संभव नहीं होता, ऐसे मामलों में स्थिति सामान्य होने पर ही ऑपरेशन किया जाता है. चिकित्सकीय प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लिया जाता है कि किसे पहले ऑपरेशन की आवश्यकता है.'

देरी होने पर मरीजों को होता है ये नुकसान

विशेषज्ञों का कहना है कि आमतौर पर टूटी हड्डियां 20 से 40 दिनों में अपने आप जुड़ जाती हैं, लेकिन यदि सर्जरी आवश्यक हो और उसमें देरी हो, तो न केवल शरीर की बनावट प्रभावित होती है, बल्कि भविष्य में स्थायी विकलांगता की आशंका भी बढ़ जाती है. मरीजों की बढ़ती संख्या, डॉक्टरों की कमी और संसाधनों की सीमित उपलब्धता इस स्थिति को और जटिल बना रही है. इस बीच स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर स्थानीय जनता और सामाजिक संगठनों में रोष भी पनपने लगा है. उनका कहना है कि जब सामान्य नागरिकों को सरकारी अस्पताल में समय पर इलाज नहीं मिलेगा, तो उन्हें प्राइवेट अस्पतालों में ऊंची कीमत पर इलाज कराना मजबूरी बन जाएगी.

सरकार और स्वास्थ्य विभाग से मांग की जा रही है कि जिला अस्पताल में अतिरिक्त ऑपरेशन थिएटर, सर्जन और संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाई जाए ताकि गरीब और जरूरतमंद मरीजों को समय पर राहत मिल सके.

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