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Farming: इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग से लाखों की कमाई, जानिए कैसे मुनाफे की खेती कर रहे हैं दो भाई

Integrated Organic Farming: गजानंद कुशवाह अन्य किसानों के लिए मिसाल है कि जिस तरह मेहनत और लगन से उन्होंने इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग ने हाथ आजमाया और सफलता पाई अन्य किसान भी इस तरह खेती ने नए आयाम बना सकते है.

Farming: इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग से लाखों की कमाई, जानिए कैसे मुनाफे की खेती कर रहे हैं दो भाई
Integrated Organic Farming: किसान नंबर वन

Integrated Farming in Agar Malwa: आगर मालवा में खेती किसानी में एक नया अध्याय जुड़ गया है. ऑर्गेनिक फार्मिंग यानी जैविक खेती से आगे बढ़कर अब इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग का चलन शुरू हो गया है. आगर मालवा जिले के सोयत के किसान गजानंद कुशवाह ने इस फार्मिंग पद्धति में नई कहानी लिख डाली है. 11 बीघा जमीन के मालिक कुशवाह खेती से सालाना बारह लाख रुपए कमा रहे हैं. इतना ही नहीं वे जैविक मुर्गा पालन और जैविक मछली पालन का कारोबार भी बिना किसी अतिरिक्त खर्च के कर रहे है, इससे भी वे लाखों रुपए की कमाई कर रहे है. देखिए आगर मालवा से एनडीटीवी की एक्सक्लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट.

खेती को बनाया लाभ का धंधा

गजानंद कुशवाह ने यह सब कर दिखाया महज दस सालों की मेहनत से. कुशवाह अब दूसरे किसानों को भी प्रशिक्षित कर रहे है साथ ही नई पीढ़ी को इसके लाभ बता कर उन्हें भी लाभ समझा रहे है. कुशवाह का कृषि फार्म बायो डायवर्सिटी का जीता जागता उदाहरण बन गया है जहां गौवंश पालन से खेती की मुनाफे का धंधा बना लिया. बर्मी कम्पोस्ट खाद और जीव अमृत के लिए सुबह से ही ग्राहक आने लगते है. जैविक अनाज, सब्जियां और फलों का उत्पादन करने वाले इस किसान ने अपने लिए बड़े ग्राहक भी तलाश कर लिए है, जो प्रोडक्ट का बेहतरीन दाम दे सकें. जैविक और प्राकृतिक तरीके से पकाए गए दशहरी आम की कीमत डेढ़ सौ रुपए किलो उन्हें मिल रही है. कभी खुद दूसरों की मजदूरी करने वाले गजानंद अब अपने यहां मजदूरों को रोजगार देने लगे है.

Integrated Organic Farming: किसान गजानंद

Integrated Organic Farming: किसान गजानंद

क्या है इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग?

इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग आखिर क्या है और ये कैसे काम करती है. इस बात को देखने समझने के लिए लिए एनडीटीवी ने आगर मालवा जिला मुख्यालय से करीब पचहत्तर किलोमीटर दूर सोयत का रुख किया. इंदौर और दिल्ली को जोड़ने वाले नेशनल हाइवे से थोड़ा सा अंदर जाकर हम पहुंचे गजानंद कुशवाह के फार्म हाउस पर पहुंचे. गजानंद कहते हैं कि ऑर्गेनिक फार्मिंग की इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग में तब्दील करने के प्रयास में वे अपने भाई देव शंकर के साथ महाराष्ट्र के नागपुर तक चले गए. जहां उन्होंने अलग अलग तरह के प्रशिक्षण प्राप्त किए जो खेती में इस्तेमाल हो सकते है. 

Integrated Organic Farming: प्राकृतिक खेती

Integrated Organic Farming: प्राकृतिक खेती

गजानंद ने कहा कि करीब ग्यारह साल पहले कृषि विभाग के कुछ अधिकारियों के साथ हम नागपुर गए. यहां प्राकृतिक खेती की तकनीक और फायदे को समझा. तब हम भाइयों ने इरादा किया कि इस तकनीक का इस्तेमाल कर हम अपनी खेती उन्नत बना सकते है. ये वो वक्त था जब खुद किसी और के यहां मजदूरी करता था. ग्यारह सालों में जैविक खेती ने मेरी जिंदगी बदल दी है. अब मेरे खेत पर दस मजदूर काम करते है. 

इन्होंने मलचिंग और ड्रिप सिंचाई पद्धति से जमीन के एक हिस्से में करेला, बैंगन और लौकी लगाया हुआ है. खेत में सब्जियों के पौधों को सहारा देने के लिए थोड़ी थोड़ी दूरी पर बांस लगाए हुए थे और उनमें धागे से जाल बनाया हुआ है. पूछने पर गजानंद ने कहा कि ये धागे की जाल पौधों से निकलने वाली बेल और उन पर लगने वाली सब्ज़ी के वजन को बैलेंस करती है. ये पौधे नाजुक होते हैं और सब्जियों का वजन सहन नहीं कर पाते हैं. हम खेती के लिए सिर्फ जैविक खाद का इस्तेमाल करते है जिससे उत्पादन ज्यादा होता है. ज्यादा सब्जियां लगती है तो जो धागे की जाल बनाई ही है उसे पर इसका लोड आ जाता है और सब्जियां जमीन कर गिरकर खराब नहीं होती. 

देवशंकर बीच में बोल उठते हैं कि ये जो हमारे खेतों में सब्जियां लगी हुई आप देख रहे हो ये सब जैविक है. खाने में स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिए थोड़ा भी नुकसान नहीं करती .  हम रासायनिक खाद का बिल्कुल भी उपयोग नहीं करते है. क्योंकि रसायन हमारे शरीर के लिए खतरनाक है, महंगे भी होते है. जैविक खाद के उपयोग से पैसा भी कम लगता है और शरीर भी स्वस्थ रहता है. 

तभी गजानंद कहते है कि जितना भी जैविक खाद हमको जरूरत रहती है. वो सब हम बाजार नहीं खरीदते बल्कि खुद ही यही तैयार कर लेते है.

Integrated Organic Farming: जैविक खाद

Integrated Organic Farming: जैविक खाद

खुद से बनाते हैं जैविक खाद

दोनों भाई हमें जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया दिखाने के लिए खेत के एक तरफ बने खाद बनाने वाली जगह पर ले गए. वे कहते हैं कि जमीन को रसायन से मुक्त करने के लिए जरूरी था कि इसके लिए जैविक खाद तैयार किया जाए. उन्होंने खेत के एक हिस्से में वर्मी कम्पोस्ट का प्लांट ही बना लिया. जहां वे खुद अपने हाथों से जैविक खाद तैयार करते है. उन्होंने बताया कि जैविक खाद बनाने के लिए अतिरिक्त राशि खर्च नहीं करनी पड़ती. जैविक खाद बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है गाय का गोबर जो हमारे द्वारा पाले गए गौवंश से रोज मिल जाता है. इस गोबर को एक निश्चित प्रक्रिया में  केंचुए की मदद से जैविक खाद बनाने में उपयोग किया जाता है. यह जैविक खाद हमारी खेती में तो काम आता ही है हम इसको बेचकर साल के लाखों रुपए कमा भी लेते है.

तभी एक किसान अपना लोडिंग टेम्पो लेकर जैविक खाद लेने के लिए पहुंच गया और दस बोरिया जैविक खाद की गजानंद से खरीदी जिसकी कीमत लगभग पांच हजार रुपए थी. नोट गिनते हुए गजानंद के चेहरे की खुशी बता रही थी कि ये उनकी अतिरिक्त कमाई है.  

देवशंकर कहते हैं कि हम गौवंश के पालन से साल के दो लाख रुपए बचा लेते है. वर्मी कम्पोस्ट से निकलने वाली खाद हर हर महीने लगभग एक लाख रुपए की अतिरिक्त कमाई देती है, जिसमें लागत लगभग नगण्य है. आसपास के किसान आते है और अपने साधनों से खुद ही ढो कर ले जाते है. जैविक खाद के उपयोग से जमीन की न्यूट्रीशनल वैल्यू और उत्पादक क्षमता बढ़ जाती है. इससे होने वाला उत्पादक  जो स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित रहता है.

गजानंद के पास ग्यारह बीघा जमीन है. जमीन के हर हिस्से में जहां भी नमी है वहां थोड़ा सा हथिया मिट्टी हटाने पर ही केंचुए निकल आते है. जो इस बात का प्रमाण है कि पूरी जमीन को जैविक उत्पादक क्षमता वाली जमीन बनाने की मेहनत सालों से की जा रही है. 

गजानंद कुशवाह के कृषि फार्म पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो यहां लगभग हर तरह के फलों के पेड़ दिखाई देंगे.

Integrated Organic Farming: फलदार पौधे

Integrated Organic Farming: फलदार पौधे

ये पौधे लगे हैं इनके फार्म में 

आम, चीकू, जामफल, केला, पपीता , सीताफल , जामुन और हां इनके पेड़ों पर लगा दशहरी आम तो पकने से पहले ही बिकने के लिए ग्राहक बुकिंग करा लेते है. आम को पकाने के लिए केमिकल के बजाय पलाश के पत्ते और हल्दी का प्राकृतिक पद्धति से उपयोग करते हैं. हमने आम को पकाने की देसी और पुरानी तरीके को देखने की इच्छा जताई तो गजानंद हमे एक कमरे के अंदर ले कर गए जहां प्याज , लहसुन और दूसरी फसल बोरो में भरकर रखी हुई थी जो पूरी तरह से जैविक है. कमरे के एक कोने में एक बड़ा सर ढेर दिखाई दिया जो रजाई गद्दे से ढंका हुआ था. उपरी सतह के एक हिस्से पर रखी गद्दे हटाते ही पलाश के पत्ते दिखाई दिए और इसके बीच में से धीरे से गजानंद ने आम का ढेर दिखाया. आम के ऊपर हल्दी का छिड़काव था. आमों को पलाश के पत्ते की जमीन बना कर उस पर रखा हुआ था और ऊपर से भी पलाश के पत्ते उन्हें ढंक रखे थे. यानि ऐसा इंतजाम था कि बाहर की हवा आम को नहीं लग पाए और अंदर हल्दी की प्राकृतिक गर्मी से आम पाक जाएं. गजानंद ने बताया कि बाजार में उपलब्ध आम रसायन की मदद से पकाए जाते है. हमारे देसी तकनीक से पकाए आम की बहुत डिमांड है. इनका दाम भी हमको ज्यादा मिलता है.

Integrated Organic Farming: मुर्गा पालन

Integrated Organic Farming: मुर्गा पालन

मुर्गा और मछली पालन भी

इन्होंने जमीन को सिर्फ अनाज और सब्जियों के उत्पादन तक सीमित नहीं रखा बल्कि इसका एक एक इंच का इस्तेमाल करने की ठान ली. इसीलिए उन्होंने जैविक मुर्गा पालन और जैविक मछली पालन की दिशा में भी कदम बढ़ा दिए. उन्होंने देशी और कड़कनाथ किस्म के मुर्गे पालने का फार्म भी जमीन के एक हिस्से में डाल लिया. इन मुर्गों को जल्दी बड़ा करने वाले रसायनयुक्त दाना खिलाने के बजाय खेतों से निकलने वाली खरपतवार और रसायनमुक्त दाना खिलाने का इंतजाम कर रखा है. यानि इस फॉर्म पर मिलने वाला मुर्गा भी जैविक है. और इसकी कीमत भी बाजार मूल्य से कई ज्यादा इनको मिलती है. फार्म पर जो मुर्गे और उनमें देसी और कड़कनाथ वैरायटी के हैं. खेत से निकलने वाले कचरे में थोड़ा भी रसायन नहीं होता है. मुर्गे इसका सेवन करते है तो उनको जो पोषक तत्व मिलते है उससे उनका स्वास्थ्य भी खराब नहीं होता. देसी और कड़कनाथ मुर्गे के शौकीन लोग दूर दूर से आते है और मुंह मांगी कीमत से जाते है. 

गजानंद बताते हैं कि हर महीने एक लाख रुपए के मुर्गे और हर रोज लगभग डेढ़ हजार रुपए के देसी अंडे हम बेच देते है. अंडे से चूजों निकालने वाली मशीन महंगी कीमत की आती है. तो मैने देसी जुगाड से एक हेचरी बना ली है. थर्माकोल के एक खाली डब्बे के अंदर निचली सतह में पानी और इसके बीच में एक जाली लगाकर इस पर अंडे रख देते है. डब्बे के बाहर एक टेंपरेचर मॉनिटर लगा दिया है साथ इसको कंट्रोल करने वाला यूनिट भी लगा हुआ है. अंडे से चूज़े निकालने के लिए पर्याप्त तापमान को मेनटेन करता है और इसमें से सही वक्त पर मुर्गी के चूज़े निकल आते है. अब हमारे मुर्गा फार्म पर करीब तीन देसी और कड़कनाथ मुर्गे और मुर्गियां मौजूद है. ये हमारे लिए कमाई का एक अलग जरिया बन गया है.
Integrated Organic Farming: मछली पालन

Integrated Organic Farming: मछली पालन

अभी गजानंद यही नहीं रुकने वाले थे. मुर्गा पालन में रोज बहुत सारी बीट निकलती है. इसको वे कैसे वेस्ट होने देते. उन्होंने खेत कर ही ग्यारह-ग्यारह हजार स्क्वायर फीट के दो बड़े तालाब उन्होंने बना लिए और इसमें उन्होंने मछली पालन करना शुरू कर दिया. इस तालाब में रोहू, कतला और समल प्रजाति की मछली गजानंद और उसके परिवार के लिए नया आर्थिक संबल बन गई. मुर्गों की बीट को तालाब के पानी में डाल देते है और जो इसमें पूरी तरह से घुल मिल कर खाद का रूप ले लेता है. इसी पानी को सिंचाई में इस्तेमाल कर लेते है जो ड्रिप पद्धति से खेतों में लगी सब्जियों तक पहुंचता है. जिससे सब्जियों और फलों का उत्पादन भी ज्यादा हो जाता है और उत्पाद स्वास्थ्य के लिए किसी भी तरह से नुकसानदायक नहीं रहता. तालाब के पानी को लगातार स्वच्छ और चलायमान बनाने में मछलियां अपना योगदान देती ही है. एक मोटर की मदद से तालाब के पानी को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करने की जुगाड भी तालाब की पाल पर ही की है. ताकि पानी ने मच्छर ना पनपे. तालाब में पालने वाली मछलियां इंदौर, उज्जैन और कोटा जैसे बड़े शहरों में सीधी सप्लाई हो जाती हैं. ये मछलियां बाजार मूल्य से ज्यादा कीमत पर बिकती हैं. मछली पालन से खेती की सिंचाई और अतिरिक्त आमदनी ने गजानंद और उनके परिवार को और भी ज्यादा आर्थिक मजबूत बनाने में महती भूमिका निभाई है.

गजानंद और उसके परिवार को खेती की इस नई और ज्यादा लाभकारी तकनीक के लिए प्रेरित करने में जिला प्रशासन और कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी अपनी भूमिका निभाई है.

कृषि विभाग ने उपसंचालक विजय चौरसिया ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि ये जरूरी है कि किसानों को जैविक खेती के फायदों से अवगत करा कर उन्हें इसके लिए प्रशिक्षित किया जाए. यह प्रक्रिया नियमित चलने वाली है. रासायनिक खाद के उपयोग ने जमीन की न्यूट्रीशनल वैल्यू को लगभग समाप्त कर दिया है. अब इसको छोड़ कर देसी प्राकृतिक पद्धति की तरफ वापस लौटना होगा.  तभी किसानों की समृद्धि ही सकेगी.

कलेक्टर ने की तारीफ

कलेक्टर राघवेंद सिंह ने कहा कि यह युग खेती को व्यवसाय के रूप ने विकसित करने का युग है. केवल एक या दो फसल पर ही किसान निर्भर नहीं रहे बल्कि जैविक खेती के एडवांस स्वरूप यानी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग को अपनाए जिसमे किसानों को बाजार कर ज्यादा निर्भर रहने की जरूरत नहीं पड़ती है. वे अपनी जमीन पर ही गौ पालन कर वर्मी कम्पोस्ट से देसी खाद बना सकते है और पोषक अनाज, सब्जियां उगा सकते हैं. अपनी जमीन पर मुर्गा पालन और मछली पालन से अतिरिक्त आय कर सकते है. हम किसानों के साथ लगातार संवाद कर उन्हें इसके लिए प्रेरित कर रहे है. खासकर ग्रामीण इलाकों ने किसानों को प्रशिक्षण के लिए कृषि वैज्ञानिकों की टीम उपलब्ध. साथ ही इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए किसानों को शासन की विभिन्न योजनाओं का लाभ भी दिया जा रहा है. अब हम इस दिशा में काम कर रहे है कि जिले में जैविक खेती का रकबा पांच गुना तक बढ़ाया जाए.

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