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गणेश चतुर्थी पर महंगाई से छलका मूर्तिकारों का दर्द... मिट्टी, बांस से लेकर सुतली तक महंगी हुई प्रतिमा बनाने की सामग्री

Ganesh idols inflation: गणेश चतुर्थी को देखते हुए मूर्तिकार गणेश प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं, लेकिन इस बार महंगाई की मार मूर्तियों पर भी पड़ रही है. मूर्तिकारों का कहना है कि प्रतिमा बनाने वाली हर चीज महंगी है. इसलिए इस बार मूर्तियां भी महंगी पड़ेंगी, लेकिन ग्राहक पूरा पैसा नहीं देते हैं.  

गणेश चतुर्थी पर महंगाई से छलका मूर्तिकारों का दर्द... मिट्टी, बांस से लेकर सुतली तक महंगी हुई प्रतिमा बनाने की सामग्री

Eco friendly Ganesh ji: आनंद और आराध्य के प्रतीक गणेश की प्रतिमाएं गणेशोत्सव यानी गणेश चतुर्थी पर स्थापित की जाएगी. हालांकि इससे पहले प्रतिमा निर्माण करने वाले कारीगर परेशान है. उनकी परेशानी का दो कारण है. एक तो कच्चे माल में महंगाई और दूसरी प्लास्टर ऑफ पेरिस पर प्रतिबंध की सूचना. वहीं मिट्टी और गोबर के गणेश भी बाजार में आ गए हैं. साथ ही अयोध्या के रामलला वाली गणेश की प्रतिमा से बाजार गुलजार कर रही है.

आगर मालवा जिला मुख्यालय पर स्थित रातडिया तालाब के किनारे मूर्ति कारखाने में रंग बिरंगी गणेश की मूर्तियां बन रही है. अलग-अलग मुद्राओं में विघ्नहर्ता कहे जाने वाले गणेश की जितनी मूर्तियां उतने ही रूप और उतने ही रंग है, लेकिन इन मूर्तियों पर चढ़े इन रंगों के पीछे कई  बेरंग कहानी छुपी हुई है. 

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मूर्तिकारों की जिंदगी बसर बहुत कठिन

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 200 किलोमीटर दूर आगर मालवा में सुरेश ननवाना गणेश प्रतिमा को अंतिम रूप देने से पहले उसकी सफाई करते हुए नजर आए. करीब 50 साल की उम्र और परिवार में लगभग आधा दर्जन लोगों का बोझ सुरेश के हाथों से चल रहे ब्रश के सहारे ही है. लगभग पच्चीस सालों से सुरेश का परिवार का गुर्जर बसर प्रतिमा निर्माण से ही होता है. कभी गणेश जी की प्रतिमा तो कभी दुर्गा जी की प्रतिमाओं का निर्माण. प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी हुई दूधिया सफेद रंग की  मूर्ति सुरेश के चेहरे का रंग फीका कर रही है. कहां जा रहा है कि अब प्लास्टर ऑफ पेरिस से मूर्तियों का निर्माण नहीं होगा. प्लास्टर ऑफ पेरिस से ही सारी मूर्तियां बनती है. ऐसे में सुरेश के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है.

सुरेश ननवाना ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि अगर प्लास्टर ऑफ पेरिस से मूर्तियां बनना बंद हो गई तो हमारे लिए मुश्किल खड़ी हो जायेगी. POP से मूर्ति बनाने में आसानी होती है. मिट्टी से मूर्ति तैयार करने में काफी समय लगता है. हम लोग परिवार कैसे चलाएंगे? हमारे पास जो सांचे बने हुए है वो सब POP के हैं. ये बंद हुआ तो हमारा चूल्हा कैसे जलेगा?

प्रतिमा बनाने वाली हर चीज महंगी 

उदास चेहरे से सुरेश ननवाना ने आगे कहा कि सात-आठ फीट वाली मूर्तियां बनाने में करीब पांच हजार रुपये की लागत आती है. ग्राहक पूरा पैसा नहीं देते हैं. निर्माण सामग्री भी महंगी हो गई है. सब कुछ महंगा है, लेकिन मूर्ति का दाम नहीं बढ़ रहा है.

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 इसी मूर्ति कारखाने के थोड़ी दूरी पर सरिता ननवाना मूर्तियों में रंग भरती दिखी. मूर्ति निर्माण सरिता का पारिवारिक पेशा है और इसी से घर चलता है. सालों से मूर्ति निर्माण कर रही सरिता मूर्ति निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री में दाम बढ़ने से परेशान है.

कत्था, कलर से सजावट तक 20 फीसदी तक बढ़ गए दाम

सरिता कहती है कि निर्माण सामग्री जैसे POP, कत्था, कलर, सजावट का सामान और मजदूरी में करीब 15 से 20 फीसदी तक दाम बढ़ गए हैं. इसलिए मूर्तियों की लागत भी बढ़ गई है, लेकिन ग्राहक पूरी कीमत देने को तैयार नहीं हैं. अगर कम दामों में मूर्तियां बेची तो मुनाफा नहीं होगा. ज्यादा दाम में किया तो माल बच जाएगा. उसका कोई खरीदार नहीं होगा जिसका नुकसान उन्हें पूरा साल उठाना पड़ेगा. 

सरिता बनवाना ने बताया कि आप जो रंग देख रहे हैं इसमें पिछले साल के मुकाबले चालीस रुपये किलो बढ़ गया है. कत्था भी महंगा हो गया. प्लास्टर ऑफ पेरिस के कट्टे पर भी लगभग पचास रुपये ज्यादा हो गया है. मजदूरी को जो दो सौ रुपये हम देते थे अब वो भी तीन सौ रुपये से कम नहीं ले रहे हैं. हर चीज महंगी है. हम मूर्ति बना कर ही घर चलाते हैं. हमारे लिए कोई खास योजना भी सरकार नहीं चलाती है, जिससे हमको मदद मिल सके.

राजस्थान तक अपना परचम लहराती है आगर मालवा की मूर्तियां

आगर मालवा की मूर्तियां केवल मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि राजस्थान तक अपना परचम लहराती है. इस बार कलाकारों ने गणेश प्रतिमा में अयोध्या के रामलला को भी विराजित कर दिया है. इससे इन मूर्तियों  की मांग खासी बढ़ गई है. पीयूष उत्साहित है कि इस तरह की मूर्तियों की डिमांड करीब 4 महीने पहले से ही शुरू हो गई और इस बार उन्होंने काफी सारी मूर्तियां बनाई है.

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पीयूष उत्साह भरे चेहरे के साथ कहते हैं कि 22 जनवरी को जब अयोध्या में रामललला स्थापित हुए उसके बाद से सोशल मीडिया कर उनकी तस्वीरें वायरल होने लगी और लोग हमको फोटो भेजने लगे कि रामालला के साथ गणेश विराजमान हो ऐसी मूर्ति बनवानी है. तब से ही हम इस काम में लग गए. इन मूर्तियों की इतनी मांग हम पूरी नहीं कर पा रहे हैं. मूर्ति बनाने का कच्चा माल महंगा जरूर हुआ है, लेकिन बाजार में मांग अच्छी है. 

राजस्थान से मुर्ति खरीदने पहुंच रहे हैं आगर मालवा

राजस्थान के डग से आए खरीददार परीक्षित भावसार काफी उत्साहित नजर आए. उन्होंने कई किलोमीटर का फासला तय करके आगर मालवा में हमेशा की तरह आठ फीट ऊंची प्रतिमा उन्होंने खरीदी. परीक्षित ने कहा कि आगर मालवा में बनी हुई मूर्तियां हमें हर साल आकर्षित करती है. हम हर साल यहीं मूर्ति लेने आते हैं. कला के साथ रंगों का अद्भुत संगम और शानदार नक्काशी. ये सब यहां मिल जाता है वो भी कम दामों पर. हमको मूर्ति खरीदने के लिए इतना लंबा सफर करना मुश्किल नहीं लगता, जब हमारी हर जरूरत यहां पूरी हो जाती है.

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मिट्टी और गोबर से निर्मित प्रतिमा को खरीदने के लिए दूसरे को प्रेरित कर रही थी रीना

बाजार मूर्तियों से सज कर पूरी तरह तैयार है और लोग अपनी-अपनी पसंद के गणेश जी घर ले जा रहे हैं. रीना शर्मा बाजार में आई तो उन्होंने मिट्टी से निर्मित गणेश प्रतिमा को पसंद किया. पिछले दस सालों से वो मिट्टी की प्रतिमा ही स्थापित करती हैं. रीना का मानना है कि मिट्टी और गोबर से निर्मित प्रतिमाएं प्रदूषण नहीं फैलाती. वहीं उनके आराध्य का अनादर भी नहीं होता. वो दूसरे लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करती दिखी.   

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रीना शर्मा कहती है कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति पानी में प्रदूषण फैलाती है, जबकि मिट्टी या गोबर से बनी प्रतिमा घुलनशील होती है. POP की मूर्ति जलाशयों में तैर कर वापस ऊपर आ जाती है जिससे उनका अनादर होता है. मिट्टी की मूर्ति का उपयोग मैं पिछले दस सालों से कर रही हूं. दूसरों को भी यही उपयोग करना चाहिए.  भक्ति के साथ पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा.

बाजार में मिट्टी और गोबर से बनी मूर्तियों में पीपल और तुलसी के बीज डाले गए हैं, ताकि लोग जब इन मूर्तियों का विसर्जन घर के अंदर ही किसी बर्तन में पानी भर कर कर सके और इस पानी को घर या आसपास किसी क्यारी में डाल सके और वे पौधे की शक्ल ले ले. बता दें कि शनिवार को गणेश जी स्थापना के साथ दस दिवसीय गणेशोत्सव शुरू हो जाएंगे.

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