Bhagirathpura Contaminated Water: शहर के भागीरथपुरा क्षेत्र में दूषित पानी पीने से मचे हाहाकार और मौतों के मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने बेहद सख्त रुख अख्तियार किया है. शहरवासियों की जान से हो रहे खिलवाड़ पर नाराजगी जताते हुए माननीय न्यायालय ने प्रदेश सरकार को स्पष्ट आदेश दिया है कि इस त्रासदी से प्रभावित होने वाले सभी मरीजों का इलाज पूरी तरह मुफ्त किया जाए. कोर्ट ने साफ कर दिया है कि नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
सुबह याचिका, दोपहर में फैसला
भागीरथपुरा की इस दर्दनाक घटना को लेकर इंदौर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रितेश इनानी ने आज सुबह ही एक जनहित याचिका (PIL) दायर की थी. मामले की गंभीरता और इंसानी जानों पर मंडराते खतरे को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने तत्काल सुनवाई की. याचिका में मांग की गई थी कि इंदौर जैसे महानगर में नागरिकों को साफ और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है, जिसमें विभाग बुरी तरह विफल रहा है.जिसके बाद कोर्ट ने इस पर त्वरित निर्णय देते हुए प्रशासन की जवाबदेही तय कर दी है.

इंदौर में दूषित पानी कांड के बाद मंत्री कैलाश विजयवर्गीय मौके पर कैंप किए हुए हैं.
2 जनवरी तक सरकार को देनी होगी 'स्टेटस रिपोर्ट'
अहम ये भी है कि हाईकोर्ट ने केवल मुफ्त इलाज के आदेश ही नहीं दिए, बल्कि मौतों के आंकड़ों और वर्तमान स्थिति पर प्रदेश सरकार से जवाब भी तलब किया है. अदालत ने सरकार को आदेश दिया है कि वह 2 जनवरी तक इस पूरे मामले की विस्तृत 'स्टेटस रिपोर्ट' पेश करे. इसमें यह स्पष्ट करना होगा कि दूषित पानी के कारण कितने मरीजों की मौत हुई है, कितने अभी अस्पतालों में भर्ती हैं और प्रशासन ने इस संक्रमण को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए हैं? इसके अलावा प्रशासन ने भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या पुख्ता इंतजाम किए हैं इसकी जानकारी भी देनी होगी.
111 अब भी अस्पताल में भर्ती
बता दें कि इंदौर में दूषित पानी पीने से 7 लोगों की मौत हो गई. इंदौर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव इसकी पुष्टि की है. वहीं, दूषित पानी पीने से बीमार हुए 111 मरीज अब भी अस्पताल में भर्ती है, जबकि 18 मरीज स्वस्थ होकर अपने घर लौट चुके हैं. प्रशासन की ओर से भागीरथपुरा क्षेत्र के 2703 घरों का सर्वे किया गया है, जिनमें 12000 लोगों की जांच हुई है. 1146 मरीजों का मौके पर ही प्राथमिक उपचार किया गया. दरअसल यह याचिका शहर के उन हजारों लोगों की आवाज बनकर सामने आई है जो नगर निगम और जल संसाधन विभाग की लापरवाही का दंश झेल रहे हैं. याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सामने स्पष्ट रूप से स्वच्छ पानी को नागरिकों का मौलिक अधिकार बताया है. जिस तेजी से हाईकोर्ट ने इस मामले में दखल दिया है, उसने सरकारी महकमों में हड़कंप मचा दिया है. अब सबकी नजरें 2 जनवरी को पेश होने वाली सरकार की रिपोर्ट पर टिकी हैं कि प्रशासन अपनी विफलताओं पर क्या दलील देता है.
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