Madhya Pradesh News: एक तरफ किसान दिल्ली- बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं. वहीं बिजली बिलों में पक्षपात के खिलाफ ग्वालियर (Gwalior) में किसान ऊर्जामंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के रेसकोर्स रोड स्थित बंगले के बाहर आंदोलन कर रहे हैं. उनका आरोप है कि पूरे प्रदेश में किसानों को फ्लेट रेट पर बिजली मिलती है लेकिन कुछ साल पहले ग्वालियर दक्षिण विधानसभा इलाके के वीरपुर - अजयपुर सहित आसपास के गांव के किसानों को यूनिट के आधार पर बिजली के बिल भेजना शुरू कर दिया. किसानों ने इसके खिलाफ कोशिश की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. अब तो उनके कनेक्शन तक काट दिए गए हैं.
ऊर्जा मंत्री के आवास पर किया प्रदर्शन
जिसके बाद सैकड़ो की संख्या में किसान इकट्ठे होकर ऊर्जामंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के ग्वालियर रेसकोर्स रोड स्थित सरकारी आवास पर पहुंचे और जोरदार प्रदर्शन किया. जब किसानों ने वहां दस्तक दी तब ऊर्जामंत्री बंगले पर नहीं थे, किसानों ने ऐलान कर दिया कि इस बार वे मंत्री से मिले बगैर नही जाएंगे. इसके बाद उन्होंने वहीं बैठकर नारेबाजी करने लगे.
क्या है पूरा मामला
किसानों की नाराजगी की वजह यह है कि पूरे प्रदेश से अलग उन्हें फ्लेट दर की जगह यूनिट के आधार पर बिल दिए जाने से उनपर ड्यूज बढ़ गया जिसके बाद उनके कनेक्शन काटे जा रहे हैं. किसान संगठन के नेता अखिलेश यादव ने बताया कि समस्या विकराल है. किसानों पर लाखों रुपये के ड्यूज निकाल दिए गए हैं जिससे उन्हें रात- दिन नींद नहीं आ रही है. अनेक किसानों के पम्प के कनेक्शन काट दिए गए हैं जिससे उनकी खेती सूख रही है. यादव का कहना है कि 2016 से बगैर पूछे और बताए अजयपुर ,वीरपुर और आसपास के गांव के किसानों को फ्लेट रेट की जगह यूनिट रेट के आधार पर बिल भेजना शुरू कर दिए. यह अन्याय ही नही अवैधानिक काम है. इसके खिलाफ हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं. उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही उल्टे किसानों के कनेक्शन काटना शुरू हो गए.
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कैबिनेट मंत्री के इलाके के किसान हैं परेशान
किसानों का नेतृत्व कर रहे किसान नेता सुग्रीव सिंह कुशवाह का कहना है कि यह मामला अजयपुर, वीरपुर, हारकोटा सीर और बेलदारपुरा और गिरबाई के किसानों का है. इसी से लगे इलाके में प्रदेश के कैबिनेट मंत्री नारायण सिंह कुशवाह भी रहते हैं. पूरे प्रदेश में कई साल से फ्लेट रेट पर बिजली मिलती है. इन्हें भी मिल रही थी लेकिन 2016 से अचानक इन्हें यूनिट के आधार पर बिल भेजे जाने लगें, जिनको चुकाने की उनकी हैसियत नहीं है. तभी से किसान संघर्ष कर रहे हैं.
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