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This Article is From Mar 11, 2025

Holi Special: महिला के वेश में पुरुष यहां करते है नृत्य, बैतूल में सप्ताह भर पहले शुरू हो जाता है यदुवंश समाज का फाग

Baitul Faag Gayan: होली त्योहार से एक सप्ताह पूर्व शुरू होने वाले पारंपरिक फाग गायन की परंपरा बैतूल जिले में आज भी कामय है, जहां बैतूल का यदुवंशी (ग्वाल) समाज ने आज भी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का संजोए रखा है. फाग गायन के अलावा बैतूल विशाल होलिका दहन के लिए भी प्रसिद्ध है.

Holi Special: महिला के वेश में पुरुष यहां करते है नृत्य, बैतूल में सप्ताह भर पहले शुरू हो जाता है यदुवंश समाज का फाग
Tradional Betul Holi Faag gayan

Holi Festivel 2025: होली का त्योहार पूरे देश में 14 तारीख को मनाया जा रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में होली का त्योहार की शुरूआत फाग गायन से शुरू हो चुकी है. होली से एक सप्ताह पहले शुरू होने वाले फाग गायन में पारंपरिक रूप से यदुवंशी समाज के लोग शामिल होते हैं और महिलाओं के वेश में ढोल व मंजीरे की थाप पर नृत्य करते हैं. 

होली त्योहार से एक सप्ताह पूर्व शुरू होने वाले पारंपरिक फाग गायन की परंपरा बैतूल जिले में आज भी कायम है, जहां बैतूल का यदुवंशी (ग्वाल) समाज आज भी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का संजोए रखा है. फाग गायन के अलावा बैतूल विशाल होलिका दहन के लिए भी प्रसिद्ध है.

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सप्ताह भर पहले ही बैतूल में बिखरने लगते हैं फाग के रंग

लगभग 2000 आबादी वाली यदुवंशी समाज की बस्ती में होली त्योहार के सप्ताह भर पहले फाग का रंग लोगों पर चढ़ जाता है. पारंपरिक रीति-रिवाजों को संजोए यदुवंशी समाज पूरे झुंड में पारंपरिक फाग गायन का आयोजन प्रत्येक शाम को करते हैं., जहां ढोलक, झाल और मंजीरों की धुन पर महिला के वेश में पुरुष नृत्य करते हैं. 

फाग गायन के जरिए समाज को जोड़ने वाले की परंपरा सदियों पुरानी है. होली के सात दिन पहले शुरू होने वाले फाग गायन की शुरूआत मां सरस्वती, मां शारदा और गणेश की आह्वान से शुरु होती है. सातों दिन हर शाम को पुरुष और युवा नृत्य करते हुए होली के गीत गाते हैं.

महिला के वेश में भगवान राम से लेकर कृष्ण जन्म की लीलाएं गाते हैं

फाग गायन में नृत्य करने वाले पुरुष महिलाओं के वेश में भगवान राम के जन्म से लेकर कृष्ण जन्म की लीलाएं करते हुए उनके धार्मिक चरित्र गाते हैं. हालांकि आधुनिकता की दौड़ में नई पीढ़ी की रुचि फाग गायन में कम हो गई है, लेकिन आज भी यदुवंशी समाज के लोगों ने इसे जीवंत बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं.

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