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Teachers' Day Special: गरीब बच्चों को सड़क किनारे पढ़ाकर बना दिया टॉपर, ग्वालियर के ओपी सर की कहानी सबके लिए प्रेरणात्मक

Gwalior Special Teacher: ग्वालियर में सड़क के किनारे मजदूरों के बच्चों को खेलते देखा, तो वहीं पर साक किनारे शुरू उनकी क्लास शुरू कर दी. ओपी सर का जुनून देख फ्री पढ़ाने वालों की लंबी कतार लग गई. आइए आपको इनकी प्रेरणात्मक कहानी के बारे में विस्तार से बताते हैं.

Teachers' Day Special: गरीब बच्चों को सड़क किनारे पढ़ाकर बना दिया टॉपर, ग्वालियर के ओपी सर की कहानी सबके लिए प्रेरणात्मक
ग्वालियर के ओपी सर की चर्चा पूरे एमपी और यूपी में

Teachers' Day 2025: अगर जुनून हो तो उम्र महज एक आंकड़ा बनकर रह जाती है और वैसे भी इतिहास रचने की कोई उम्र नहीं होती है. ऐसे ही एक शख्स की कहानी मध्य प्रदेश के ग्वालियर में चर्चा का विषय रहती है. एक ऐसे शिक्षक, जो शिक्षा देने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. इनका नाम है ओपी दीक्षित सर. 70 साल से अधिक उम्र के ओपी सर की कहानी आज शिक्षक दिवस पर खास मायने रखती है. ये एक ऐसे शिक्षक है, जिन्होंने सड़क के किनारे एक नहीं, बल्कि अनेक स्थानों पर अपने स्कूल की शाखाएं खोल रखी हैं. इनमें कुल 700-800 स्टूडेंट पढ़ते हैं. इन ज्यादातर बच्चों के पास न घर है, न पहनने को यूनिफॉर्म, कॉपी - किताबें खरीदने के लिए पैसे भी नहीं है. लेकिन, इसकी चिंता उन्हें करने की जरूरत भी नहीं है. ओपी सर और अन्य लोग इन सबकी चिंता करते हैं.

बच्चों को पढ़ाने के लिए खास पहल

बच्चों को पढ़ाने के लिए खास पहल

कैसे शुरू हुआ ये सफर

ओपी दीक्षित 71 साल के हैं. मूलतः टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर से रिटायर होने के बाद वे आराम से अपना जीवन बसर कर रहे थे. रोज सुबह विवेकानंद नीडम की पहाड़ियों पर सैर करने जाते थे. आते - जाते उन्होंने देखा कि कुछ बच्चे वही खेलते रहते थे. दरअसल, वे झोंपड़ियों में रहने वाले सहरिया आदिवासियों के बच्चे थे. दीक्षित ने एक दिन उनके पास जाकर बातचीत की. उनसे पूछा कि वे स्कूल जाते है? बच्चों ने हंसते हुए न कहने के लिए मुंडी हिलाई और भाग गए. बुजुर्ग फिर रोज उन्हें इकट्ठा करते और  बातें करते. कभी उनके लिए टॉफी ले जाते तो कभी बिस्कुट. यह सिलसिला कुछ दिन चला. एक दिन वे अपने घर से जमीन पर बिछाने के लिए कुछ बोरियां भी ले गए. उन्होंने नीडम पर इन्हें बिछाया और चार-पांच बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया. ये वर्ष 2020 की बात है.

बच्चों की संख्या में हुई वृद्धि

खुले आसमान के नीचे लगने वाली उनकी कक्षाओं में पढ़ने वाले गरीब बच्चों की संख्या बढ़ने लगी, तो मॉर्निंग वॉक में आने वाले अन्य बुजुर्ग भी बच्चों को पढ़ाने लगे. इनमें महिलाएं भी शामिल थी और फिर कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियां भी इन्हें पढ़ाने के लिए पहुंचने लगे. दीक्षित सर की क्लास की चर्चा घरों से लेकर दफ्तरों तक में होने लगी. लोग अपने बच्चों की पुरानी किताबें, बस्ते, ड्रेस, स्टेशनरी देने के लिए पहुंचने लगे और फिर लोग मदद के लिए आगे आने लगे कि वे उनके क्षेत्र के स्ट्रीट चिल्ड्रन के लिए भी ऐसा स्कूल खोलें इसके लिए जगह भी उपलब्ध कराने लगे.

एक से 11 हो गई कक्षा की संख्या

दीक्षित सर ने एनडीटीवी से बात करते हुए बताया कि अब उनकी क्लासेस ग्वालियर शहर में एक-दो नहीं, बल्कि पूरे 11 जगहों पर चलती हैं. वे बच्चों के समय के हिसाब से लगती हैं, क्योंकि कई बच्चे काम भी करते है. उन्होंने बताया, 'हम सुबह 6 से 9 और शाम 5 से 7 तक क्लास लगाते हैं. अब तक 6 वर्ष में इन कक्षाओं में दस हजार बच्चे पढ़ चुके हैं. भिंड रोड, मुरार, विवेकानन्द नीडम, सिकन्दर कम्पू और बेटी बचाओ चौराहा में लगने वाली कक्षाओं मे बच्चे पढ़ते हैं.'

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अन्य जिलों तक पहुंची दीक्षित सर की क्लास

दीक्षित सर की यह मुहिम इतनी रंग लाई कि ग्वालियर में अब उनके साथ पढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में पुरुष और महिला टीचर निशुल्क सेवा दे रहे हैं. साथ ही, ये खास कक्षा डबरा के अलावा, भिण्ड जिले के गोहद और शिवपुरी जिले के करेरा में भी लग रही है. यूपी में झांसी में भी क्लास संचालित हो रही है. इनमें लगभग चालीस युवक-युवतियां और सभी उम्र के लोग निशुल्क अपनी सेवाएं दे रहे हैं.

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