Gwalior Mela 2025: मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) चौथी बार सत्ता पर काबिज हो चुकी है, लेकिन निगम मंडलो के साथ-साथ पिछले एक दशक से देश भर में ख्याति प्राप्त ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण (Gwalior Vyapar Mela Pradhikaran) में नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं. ऐसे में प्रशासन के भरोसे असमंजस और कछुआ चाल से मेले का संचालन होता आ रहा है. अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जब सत्ता पक्ष के लिए माकूल वातावरण है तो फिर नियुक्तियों में देरी किस बात की? मेला प्राधिकरण में नियुक्तियां अब नहीं तो कब? जबकि साल 2024-25 का मेला 25 दिसंबर से शुरु होने जा रहा है, लेकिन बोर्ड न होने से मेला अफसरों के हवाले है और इसका स्तर साल दर साल गिर रहा है.
सवाल तो ये भी हैं
- आखिर सत्ता और संगठन ने क्यों लगा रखा है नियुक्तियों पर बैन?
- BJP के सत्ता में रहते हुए भी ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण में राजनीतिक नियुक्तियों पर क्यों चला आ रहा है बैन?
- साल 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की पहल परनियुक्तियां हुई थीं. 15 माह में ही कांग्रेस सरकार के धराशायी होने पर प्राधिकरण हुआ था भंग इसके बाद साल 2020 में फिर जागी उम्मीद लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
सिंधिया रियासत से चला आ रहा ग्वालियर मेला
देश के सबसे बड़े मेलों में शुमार ग्वालियर मेले की शुरुआत सिंधिया रियासत काल मे हुई थी. पशु मेले के रूप में इसकी शुरुआत हुई थी. धीरे-धीरे परवान चढ़ते हुए मेले ने अपना शताब्दी वर्ष भी मनाया और इस मेले ने ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण बनने तक का सफर भी तय किया. मेले के सफल संचालन के लिए "व्यापार मेले बोर्ड" का गठन भी किया गया. इसके लिए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संचालकों की प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्तियां की गई, लेकिन पिछले एक दशक से सरकार द्वारा "व्यापार मेला बोर्ड" में नियुक्तियां नहीं की गईं हैं. इसका असर साफ तौर पर "व्यापार मेले" की व्यवस्थाओं पर देखा जा रहा है.
साल 2018 में कांग्रेस की अल्पकालिक सरकार में उसे वक्त कांग्रेस पार्टी में रहे वर्तमान में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रयास से ग्वालियर व्यापार मेला बोर्ड में जरूर नियुक्तियां की गई थी, लेकिन वह सरकार ही गिर गई. फिर आई बीजेपी सरकार ने उन्हें हटा दिया और नई नियुक्तियां की नहीं. अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जब सत्ता पक्ष के लिए सभी ओर माकूल वातावरण है फिर नियुक्तियों में देरी किस बात? मेला प्राधिकरण में नियुक्तियां अब नहीं तो कब?
किसने क्या कहा?
मेला प्राधिकरण के सचिव रहे और अभी मप्र चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष डॉ प्रवीण अग्रवाल मानते है कि राजनीतिक नियुक्तियां न होने से मेले के आयोजन पर विपरीत असर पड़ रहा है. इसकी वजह ये है कि अनेक निर्णय जो त्वरित लेने होते हैं, वे अफ़सर नहीं ले पाते, इससे व्यापारी से लेकर प्राधिकरण सबको दिक्कत होती है. जिसका असर मेले की भव्यता और गरिमा पर पड़ रहा है, जिसे हर कोई महसूस भी कर रहा है. बीते एक दशक से बोर्ड नहीं होने से मेला संचालन की व्यवस्था प्रशासनिक अधिकारियों के हाथों में है इसलिए उसकी हालत बद से बदतर होती जा रही है. अगर समय रहते व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संचालकों की नियुक्तियां हो जाती हैं तो सुधार की संभावना है.
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