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Devgarh Fort: 400 साल पुरानी गढ़काली और वज्र तोपों के लिए राजवंश व सेना की बीच 'जंग', आर्मी ने दिया ये जवाब

Devgarh Fort Gwalior: डॉ सीताराम खुद को राज परिवार का वंशज बताते हैं, उन्होंने बताया कि वे लगातार कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें यह तोपें वापस दिलाई जाएं और इन्हें देवगढ़ किले पर स्थापित किया जाये, क्योंकि यह अंचल के शौर्य का प्रतीक हैं. इनके हटने से अंचल की शौर्यगाथा विलुप्त हो जाएगी. पहले उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया, लेकिन उसने गेंद सेना के पाले में डाल दी.

Devgarh Fort: 400 साल पुरानी गढ़काली और वज्र तोपों के लिए राजवंश व सेना की बीच 'जंग', आर्मी ने दिया ये जवाब
Devgarh Fort: 400 साल पुरानी गढ़काली और वज्र तोपों के लिए राजवंश व सेना की बीच 'जंग', आर्मी ने दिया ये जवाब

Gwalior Devgarh Fort: जिन राज परिवारों की स्वतंत्रता से पहले तूती बोलती थी, उनमें से एक ग्वालियर जिले के देवगढ़ राजवंश के लोग अपने परिवार की आन-बान और शान की प्रतीक तोपों को सेना से हासिल करने के लिए भटक रहे हैं. देवगढ के किले पर रखीं क्षत्रिय गढ़रियार राजवंश की दो ऐतिहासिक तोप वज्र और गढ़काली को सेना ने 12 साल पहले अपने कब्जे में ले लिया. इनमें से एक तोप मुरार केंट में एमएच चौराहा के गेट पर तो दूसरी को कैंट एरिया के अंदर ले जाकर स्थापित कर दिया गया है. उसके बाद से इस किले से जुड़ा राज परिवार तोप वापस लेने के लिए लगातार पत्राचार कर रहा है. तभी से दशहरा और दिवाली के दिन गढ़रियार परिवार के वंशज शस्त्र पूजन के लिए ग्वालियर के सैन्य क्षेत्र में स्थापित इन तोपों का परम्परागत पूजन करने आते हैं. वंशजों का यह भी कहना है कि अब यदि सेना उनकी तोपें वापस नहीं करती तो वे अपनी ऐतिहासिक धरोहर को वापस लेने के लिए कोर्ट की शरण लेंगे.

Gwalior Devgarh Fort: तोप की पूजा के दौरान राज परिवार के वंशज

Gwalior Devgarh Fort: तोप की पूजा के दौरान राज परिवार के वंशज

देवगढ़ किले की धरोहर

वर्तमान मे झाँसी और दतिया के बॉर्डर पर स्थित खंडहर हालत में स्थित देवगढ़ दुर्ग का एक हजार साल तक काफी बड़े भूभाग और आबादी पर कब्ज़ा रहा था. इस राजवंश ने मुगलों से लेकर अंग्रेजों और सिंधिया राजाओं तक से अनेक साहसिक युद्ध लड़े. इन युद्ध में उपयोग में लाई गई चार सौ साल पुरानी दो तोपें अब ग्वालियर के केंट एरिया में रखी हैं.

खुद को देवगढ़ महाराज का वशंज बताने वाले डॉ सीताराम सिंह देव का कहना है कि सेना के 40 से ज्यादा अफसर और जवान देवगढ़ किले पर 20 अक्टूबर 2013 को प्रशासन के साथ आए. यहां रखीं वज्र और गढ़काली नामक दो तोप उठाकर ले गए. बड़ी तोप को नीचे उतारने उन्होंने ऐतिहासिक किले की दीवार भी तोड़ी. इस काम में तत्कालीन कलेक्टर ने भी मदद की. अब हम पिछले 12 साल से मजबूरी में हर साल दशहरा और दीपावली पर मुरार के सैन्य क्षेत्र में ही जहां तोप रखीं हैं, वहां उसकी परम्परागत पूजा करने परिवार सहित पहुंचते हैं. सिंह देव इन दिनों धार में वरिष्ठ पशु चिकित्सक के रूप में पदस्थ हैं.

डॉ सीताराम ने बताया कि वे लगातार कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें यह तोपें वापस दिलाई जाएं और इन्हें देवगढ़ किले पर स्थापित किया जाये, क्योंकि यह अंचल के शौर्य का प्रतीक हैं. इनके हटने से अंचल की शौर्यगाथा विलुप्त हो जाएगी. पहले उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया, लेकिन उसने गेंद सेना के पाले में डाल दी.

Gwalior Devgarh Fort: तोप की पूजा के दौरान राज परिवार के वंशज

Gwalior Devgarh Fort: तोप की पूजा के दौरान राज परिवार के वंशज

सेना दिया ऐसा जवाब

सीताराम ने बताया कि वर्ष 2015 में उन्होंने दो बार RTI लगाई. जवाब में सेना ने बताया कि 1955 में रक्षा मंत्रालय के आदेश पर ग्वालियर राज्य बल से 13 ग्रासबिर की जमीन सेना को दी गई थी. यहाँ लगी तोपों के साथ शरारती तत्वों द्वारा चोरी/छेड़छाड़ न की जाए और मौसमी क्षरण से बचाने तोपों को सेना क्षेत्र के अंदर स्थानांतरित किया है. यदि संतुष्ट नहीं हैं तो वे इसके लिए प्राधिकरण में अपील कर सकते हैं.

राज परिवार के वंशज हर वर्ष दीवाली और दशहरा पर एडीएम की इजाजत से परिवार सहित  केंट एरिया मे पहुंचकर अपने परिवार की तोपों की शाही पूजा करते है. उधर सेना के जनसंपर्क अधिकारी मध्य कमान शांतनु प्रताप सिंह का कहना है कि मुरार सैन्य क्षेत्र में देवगढ़ किले (श्री छात्रधारी आश्रम) की तोप से संबंधित मामले की जानकारी नहीं है. इस बारे मे सैन्य क्षेत्र के संबंधित विभाग से जानकारी लेंगे.

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