Ganesh Chaturthi 2024: भगवान गणेश की उपासना और पूजा-पाठ करने के लिए गणेश चतुर्थी का अवसर काफी शुभ माना जाता है.इस बीच प्रकृति की रक्षा और ईश्वर की भक्ति का अनूठा संगम देखने को मिलता है बैतूल के रावत परिवार की गणेश प्रतिमा में, जो पिछले 364 वर्षों से पूरी तरह ईको-फ्रेंडली तरीके से बनाई जाती है. इस परंपरा की शुरुआत 1660 में हुई थी. आज भी रावत परिवार के सदस्य इस परंपरा को पूरी श्रद्धा के साथ निभाते आ रहे हैं.
देखने के लिए लगती है लोगों भीड़
रावत परिवार के गणेश प्रतिमा की खासियत इसमें उपयोग की जाने वाली विशेष हरी मिट्टी, फलों और सब्जियों से बने रंगों, और सोने-चांदी के साढ़े तीन सदी पुराने जेवरातों में निहित है. गणेशोत्सव के दौरान स्थापित की जाने वाली इस प्रतिमा को देखने के लिए हजारों लोग उमड़ते हैं.विशेषकर, यह प्रतिमा पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली होती है, जो अन्य प्रतिमाओं से अलग होती है जिनमें केमिकल युक्त रंग और प्लास्टिक या कांच की सजावट का इस्तेमाल होता है.
ऐसे तैयार किए जाते हैं रंग
इसमें इस्तेमाल की जाने वाली हरी मिट्टी विशेष पहाड़ी से लाकर तैयार की जाती है और रंग भिंडी, अभ्र्क, सिंदूर, कुमकुम और अन्य प्राकृतिक फूल-पत्तियों से तैयार किए जाते हैं. सजावट के लिए केवल कागज का उपयोग किया जाता है, जबकि सोने-चांदी के पुराने जेवरात प्रतिमा को सजाने में चार चांद लगा देते हैं.
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छह पीढ़ियों के इतिहास से जुड़ी है ये परंपरा
रावत परिवार के सदस्य इस परंपरा को अपने छह पीढ़ियों के इतिहास से जोड़ते हैं और परिवार के युवाओं से उम्मीद करते हैं कि वे इसे आगे भी इसी तरह बनाए रखें. यह अनूठी परंपरा न केवल उनकी धार्मिक श्रद्धा को दर्शाती है, बल्कि प्रकृति के प्रति उनके स्नेह और जिम्मेदारी का भी प्रमाण है.
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