
सूरजपुर जिले के सुराजी गांवों और विकास के दावों के बीच एक बेहद दर्दनाक और शर्मनाक तस्वीर सूरजपुर जिले से सामने आई है. भैयाथान क्षेत्र के बड़सरा गांव के आमाखोखा बस्ती की 25 वर्षीय गर्भवती आदिवासी महिला मानकुंवर सिंह को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए उसके परिवार को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा, जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है.
मानकुंवर को प्रसव पीड़ा होने पर उसके पति इंद्रदेव सिंह, उनके भाई और गांव की महिलाएं मिलकर उसे खेतों में धान ढोने वाली बांस की बनी टोकरीनुमा झलगी में बैठाकर दो किलोमीटर तक पैदल लेकर गए, ताकि महतारी एक्सप्रेस एंबुलेंस तक उसे पहुंचाया जा सके. बारिश की वजह से खराब हुई सड़कों के कारण एंबुलेंस उनके घर तक नहीं पहुंच पाई. गांव की बदहाल स्थिति और पहुंचविहीनता ने फिर एक बार सरकारी व्यवस्था की पोल खोल दी.
खुले मैदान में ही हुआ प्रसव
झलगी में ले जाते समय मानकुंवर को अचानक तेज प्रसव पीड़ा हुई और खुले मैदान में ही उसका प्रसव हो गया. यह पूरी घटना न केवल सरकारी तंत्र की विफलता को उजागर करती है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को भी सामने लाती है.
नवजात और महिला दोनों खुश
राहत की खबर यह है कि जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं. मानकुंवर की यह दूसरी संतान है जो बच्ची है और फिलहाल दोनों का इलाज भैयाथान के उप स्वास्थ्य केंद्र में चल रहा है, पर सवाल यह है कि अगर समय रहते एंबुलेंस पहुंच जाती या गांव तक सड़क की व्यवस्था होती तो क्या इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती.
सरकारें भले ही विकास के बड़े-बड़े दावे करें, लेकिन हकीकत आज भी सैकड़ों गांवों में ऐसी ही है. जहां गर्भवती महिलाओं को झलगी और खाट में उठाकर अस्पताल ले जाना पड़ता है. यह घटना ना सिर्फ प्रशासन के लिए चेतावनी है, बल्कि एक बार फिर यह सोचने को मजबूर करती है कि असली विकास आखिर किसे कहते हैं और वह कब वह गांवों तक पहुंचेगा.
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