
Engineering Colleges of MP: एक ज़माना था जब भोपाल और इंदौर देश में इंजीनियरिंग शिक्षा के 'चार मीनार' समझे जाते थे. उत्तर भारत से छात्र यहां इसलिए आते थे कि पढ़ाई सस्ती थी, रहना आसान था और सपने बड़े थे. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. कैसे? ये इस आंकड़े से समझिए. साल 2015 में राज्य में इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या 300 थी जो आज आधे से भी कम यानि 140 रह गई हैं. अकेले राजधानी भोपाल में पिछले 9 साल में 60 से ज़्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो चुके हैं. पूरे प्रदेश में ये आंकड़ा 155 तक पहुंच चुका है. क्या और कैसे पैदा हुए ये हालात...इसी पर NDTV ने तैयार की है ग्राउंड रिपोर्ट
अब डिग्री की जगह मिलेगा 'डीलक्स रूम' !
सबसे पहले हम पहुंचे भोपाल के ही रातीबड़ में...यहां मौजूद है ‘गार्गी इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी'. ये नाम सुनते ही लगता है जैसे ज्ञान और विज्ञान की गंगा बहती होगी..कुछ वक्त पहले ऐसा था भी. यहां बी.टेक,मैकेनिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स की क्लासेस लगती थीं लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब यहां रिजॉर्ट बनाने की तैयारी हो रही है. कॉलेज अब बंद हो चुका है. यानी यहां डिग्री की जगह अब यहां ‘डीलक्स रूम' मिलेगा. परेशान करने वाली बात ये है कि संस्थान की बर्बादी की कहानी सिर्फ कुछ महीनों में ही लिख दी गई.

'गार्गी इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी' की शानदार इमारत महज कुछ महीनों में ही खंडहर में तब्दील हो गई है.
पहले यहां था इंजीनियरिंग कॉलेज अब है नर्सिंग कॉलेज
2005 में स्थापना हुई और अब बंद हुआ
अब बात इंदौर में मौजूद रहे एक्रोपोलिस इंस्टिट्यूट की. इसका नाम भले ही ग्रीक सभ्यता से प्रेरित हो, लेकिन किस्मत किसी ‘ब्यूरोक्रेटिक' सिस्टम के तहत तय हुई. साल 2005 में इसकी स्थापना हुई लेकिन अब इस पर ताला लग चुका है. इसकी आलीशान बिल्डिंग अब खामोश है, और मैदान में पड़ी बसें अब बता रही हैं कि यहां स्टूडेंट्स नहीं, बल्कि स्क्रैप डीलर्स आते हैं. जब इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थिति खराब हुई तो यहां ब्यूटिशन ट्रेनिंग की योजना चलाने की बात हुई लेकिन वो भी अब बंद हो चुकी है. यानी अब न यहां इंजीनियरिंग है और न ही सौंदर्यशास्त्र...है तो बस सन्नाटा!
जानकार बताते हैं - राज्य में इंजीनियरिंग कॉलेजों की गिरती साख की 5 बड़ी वजहें हैं .

जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेज समय के साथ नहीं चल सके. यहां सपनों की फैक्ट्री में सिलेबस वही रहा और मार्केट की मांग बदल गई तो ये 'फैक्ट्री' बंद हो गई. बिना प्लेसमेंट, बिना गुणवत्ता, सिर्फ इमारतों से न तो भविष्य बनता है और न ही भरोसा. ट्रिपल IIT के डायरेक्टर आशुतोष सिंह बताते हैं कि कॉलेज के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतें बना दी गईं, लैब खोल दिए गए लेकिन एकेडमिक पर ध्यान नहीं दिया गया.
इसलिए हालात खराब हो गए. कभी राज्य की इन कॉलेजों में 95 हज़ार से ज्यादा सीटें थीं, अब 71 हज़ार बची हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या उन सीटों पर बैठने वाले हैं? या सिर्फ ताले लटकेंगे? सरकार समिति बनाकर सोच रही है, पर युवा अब बिना नौकरी वाली डिग्री नहीं सोचते – और सोचने वालों की हालत कॉलेजों जैसी होती जा रही है. कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई अब ‘आउटडेटेड सॉफ्टवेयर' बन चुकी है – जिसे अपडेट नहीं किया गया, और अब सारे इंतजाम डिलीट हो रहे हैं. सरकार की ओर से समिति का गठन तो हुआ है, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये समिति फिर किसी और समिति की रिपोर्ट तो नहीं बन जाएगी?
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