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Donkey Fair MP: इस बार बिकने आए 'सलमान', 'शाहरुख' और 'जैकलीन'; गधों को गुलाब जामुन खिलाकर शुरू हुआ मेला

मध्य प्रदेश के Ujjain में ‘Donkey Fair MP’ यानी गधों का मेला अनोखे अंदाज में चल रहा है. गधों को Gulab Jamun खिलाकर पूजा की गई, जबकि कुछ गधे ‘सलमान’, ‘शाहरुख’ व ‘जैकलिन’ जैसे नामों पर बिक्री के लिए खड़े हैं.

Donkey Fair MP: इस बार बिकने आए 'सलमान', 'शाहरुख' और 'जैकलीन'; गधों को गुलाब जामुन खिलाकर शुरू हुआ मेला

Donkey Fair MP 2025: मध्य प्रदेश में 'गधों का मेला' काफी चर्चित इवेंट है, इन दिनों उज्जैन में इसका अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है. यहां कार्तिक मेले की शुरुआत से पहले पारंपरिक पशु मेले की धूम मची है, जहां गधों की खरीदी-बिक्री होती है. इस मेले की शुरुआत गधों को गुलाब जामुन खिलाकर और उनकी पूजा करके की गई. यह अनोखी परंपरा हर साल निभाई जाती है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.

‘सलमान', ‘शाहरुख' और ‘जैकलिन' आकर्षण का केंद्र

इस बार मेले में गधों को फिल्मी सितारों के नाम दिए गए हैं. यहां कोई ‘सलमान' है, कोई ‘शाहरुख', तो कोई ‘जैकलीन' है. इन नामों ने पूरे मेले का माहौल मजेदार बना दिया है. लोग गधों के नाम सुनकर मुस्कुरा उठते हैं और फोटो खींचने में व्यस्त हो जाते हैं. बताया जा रहा है कि यह परंपरा पशुपालकों की रचनात्मकता और अपनापन दिखाने का तरीका बन चुकी है.

गधों की पूजा और खरीद-फरोख्त की परंपरा

कार्तिक मास में उज्जैन के बड़नगर रोड स्थित मैदान में हर साल यह मेला लगता है. मेले की शुरुआत गधों की पूजा से होती है. इसके बाद इन गधों की खरीद-फरोख्त शुरू होती है. पार्षद कैलाश प्रजापत इस साल के मुख्य अतिथि रहे और उन्होंने इस पारंपरिक आयोजन की सराहना की. यह आयोजन न केवल व्यापार का माध्यम है, बल्कि सदियों पुरानी लोक परंपरा का हिस्सा भी है.

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दांत देखकर तय होती है कीमत

गधों के दांत देखकर उनकी उम्र और ताकत का अंदाजा लगाया जाता है और इसी के आधार पर कीमत तय होती है. इस बार मेले में लाए गए गधों की कीमत 2000 से 8000 रुपये तक रखी गई है. ग्रामीण इलाकों में गधे आज भी सामान ढोने और खेतों में काम करने के अहम साथी हैं. यही वजह है कि हर साल बड़ी संख्या में पशुपालक इस मेले में हिस्सा लेते हैं.

दशकों पुरानी परंपरा अब भी जीवित

पशुपालक मनोज बाबूलाल प्रजापत बताते हैं कि यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से पहले दशकों से आयोजित होता आ रहा है. इसे प्रजापत समाज द्वारा लगातार निभाया जा रहा है. इस बार भी व्यापारी अच्छी बिक्री की उम्मीद में पहुंचे हैं और पूरा मेला उत्साह और रौनक से भरा हुआ है. इस आयोजन से यह साफ झलकता है कि परंपराएं समय के साथ भले आधुनिक हो जाएं, पर अपनी जड़ों से जुड़ी रहती हैं.

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