Indore Government Hospital News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के इंदौर (Indore) शहर के एक सरकारी अस्पताल ने ऐसा इलाज कर दिया जो सरकारी अस्पताल में होना संभव नहीं था. शहर में बनाए गए सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में एक ऐसी बीमारी 'अप्लास्टिक एनीमिया' (Aplastic anemia), जिसका इलाज कम से कम सरकारी अस्पताल में तो संभव नहीं था, उसका इलाज करने के लिए डॉक्टर ने युवक को घोड़े के खून का प्लाज्मा चढ़ाया और युवक इसी सरकारी अस्पताल में ठीक हो गया.
23 साल के जतिन ओझा जो गुना के रहने वाले हैं और एमबीए की पढ़ाई कर अपने करियर को बनाने का सपना देखने रहे हैं. इस युवा को एक ऐसी बीमारी हो गई जिसका इलाज कम से कम सरकारी अस्पताल में होना तो संभव नहीं था लेकिन अब यह संभव भी होने लगा है. ग्वालियर के बाद भोपाल से होते हुए जब यह मरीज इंदौर के सरकारी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल पहुंचा. इलाज मिलने की उसकी आस तब पूरी हो गई जब अस्पताल में उनका इलाज करने के लिए युवा चिकित्सक डॉक्टर अक्षय लाहोटी ने हां कर दी.
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सरकारी अस्पताल में संभव नहीं था इलाज
जब डॉक्टर ने उसका इलाज शुरू किया तो उन्हें यकीन नहीं था कि वह यह इलाज सरकारी अस्पताल में कर पाएंगे क्योंकि इस इलाज को करने के लिए प्रॉपर अलग से एक मेडिकल टीम की आवश्यकता होती है जो मरीज को ऑब्जर्वेशन में रख सके. डॉक्टर लाहोटी ने सारी व्यवस्थाओं का फंड जुटाना और मरीज का इलाज शुरू किया. अप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित मरीज की परेशानी यह थी कि इस बीमारी की वजह से उसका हीमोग्लोबिन बनना बंद हो गया था.
मरीज को चढ़ाई घोड़े की एंटीबॉडीज
इसमें मरीज के कभी नाक से तो कभी मुंह से और कभी कान से खून आ जाता था इसीलिए उसके प्लेटलेट बढ़ाए जाते हैं. डॉक्टरों ने तय किया कि इस बीमारी का इलाज घोड़े के खून से एंटीबॉडी लेकर ही संभव है. डॉक्टर ने उस कंपनी से संपर्क किया जो घोड़े के खून से एंटीबॉडी लेकर एटीजी यानी एंटी थाइमोजिट ग्लोबुलीन थेरेपी में महारत हासिल रखती है. प्लास्टिक एनीमिया के लिए इसी पद्धति से इलाज किया गया और घोड़े के खून की एंटीबॉडीज मरीज को दी गई.
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पिता को बेटे ने दी हिम्मत
जब बेटे की छुट्टी की खबर पिता ने सुनी तो उनके चेहरे पर वह सुकून था जो अपने बेटे के ठीक होने पर किसी भी पिता के चेहरे पर नजर आता है. पिता विनोद कुमार ओझा ने बताया कि सरकारी अस्पताल में रामबाण इलाज मिल गया है. उन्होंने बताया कि जब डॉक्टरों ने कुछ साइड इफेक्ट्स के बारे में बताया तो लगा कि करना है या नहीं करना है लेकिन बेटे ने हिम्मत दी और हमने इलाज करने का फैसला किया. आज हमारा बेटा स्वस्थ होकर घर लौट रहा है.