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चार बेटे, एक संकल्प... मां-बाप को कंधे पर लेकर महाकाल दर्शन यात्रा पर निकले चार भाई, कलियुग के 'श्रवण कुमार' ने सबको किया भावुक

Dewas News: जहां एक ओर आधुनिक जीवनशैली और व्यस्तता की दौड़ में परिवारों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं, वहीं मध्य प्रदेश के देवास जिले के एक छोटे से गांव भीमसी से एक ऐसी प्रेरक कहानी सामने आई है, जो रिश्तों की गर्माहट और भारतीय संस्कारों की जीवंत मिसाल बन गई है.

चार बेटे, एक संकल्प... मां-बाप को कंधे पर लेकर महाकाल दर्शन यात्रा पर निकले चार भाई, कलियुग के 'श्रवण कुमार' ने सबको किया भावुक

Kaliyug Shravan Kumar: श्रावण मास में शिवभक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है, लेकिन इस बार मध्य प्रदेश के देवास में चार बेटों ने भक्ति और सेवा की ऐसी मिसाल पेश की है जो दिल को छू रही है. देवास जिले के भीमसी गांव के चार भाइयों ने एक साथ महाकाल के दर्शन यात्रा पर निकले हैं, लेकिन उनकी यह यात्रा सामान्य नहीं है. उन्होंने अपने बुज़ुर्ग मां-पिता को झूला कांवड़ में बैठाकर उज्जैन के लिए पैदल यात्रा शुरू की है.

 श्रवण कुमार की तरह माता-पिता को कंधे पर लेकर निकले देवास के ये चार भाई

झूला कांवड़ में एक ओर बुज़ुर्ग मां, तो  दूसरी ओर वृद्ध पिता विराजमान हैं, जिन्हें वो अपने कंधों पर उठाकर देवास से उज्जैन तक ला रहे हैं. यह नजारा हर उस व्यक्ति को श्रवण कुमार की याद दिला रहा है, जो अपने माता-पिता को कंधों पर बैठाकर तीर्थ कराने निकले थे. 

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माता-पिता को दूध से कराया स्नान

मां-पिता का तीर्थ कराने निकले चारों बेटों ने पहले दोनों को दूध से स्नान कराया और फिर उनपर फूलों की बारिश की. इसके बाद चारों भाइयों ने माता-पिता को कंधों पर लेकर तीर्थ यात्रा पर निकले.

बता दें कि भीमसी गांव के बुज़ुर्ग प्रहलाद नायक अब जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं, लेकिन उनकी झुकी कमर अब अकेली नहीं... कंधे बने हैं उनके चार बेटे- राजेश, धर्मेन्द्र, श्रवण और अर्जुन.

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बेटे ने माता-पिता को महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन कराने निकाले

चारों भाइयों ने मिलकर यह संकल्प लिया है कि वो बारी-बारी से अपने पिता को उज्जैन के पवित्र महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन कराने ले जाएंगे. न सिर्फ़ एक यात्रा, बल्कि यह सेवा, स्नेह और श्रद्धा का अद्वितीय संगम है.

हर बेटा अपने हिस्से का प्रेम, सम्मान और पुण्य अर्जित करना चाहता है- और यही वो संस्कार हैं, जो आज के समाज को फिर से जोड़ सकते हैं. जब बेटे ऐसे हों तो महाकाल की कृपा भी साक्षात् होती है और जब रिश्तों की डोर इतनी मजबूत हो, तो समाज को संस्कारों की नई परिभाषा और प्रेरणा की नई दिशा मिलती है. 

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