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MP Election Results 2023: BJP की जीत के नायक रहे CM शिवराज, जानें 'पांव-पांव वाले भैया' और 'मामा' का सियासी सफर

Madhya Pradesh Election Results 2023: जीत के हीरो रहे शिवराज सिंह चौहान पांचवीं बार मुख्यमंत्री बन सकते हैं. हालांकि, इस बार के चुनाव में शिवराज को मुख्यमंत्री चेहरा नहीं बनाया गया था. बीजेपी पीएम मोदी के फेस पर यह चुनाव लड़ रही थी.

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MP Election Results 2023: BJP की जीत के नायक रहे CM शिवराज, जानें 'पांव-पांव वाले भैया' और 'मामा' का सियासी सफर

Madhya Pradesh Assembly Election 2023 Results: मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 163 सीटें जीतने के साथ ही एक प्रचंड बहुमत हासिल किया है. भले ही ये चुनाव बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के चेहरे पर लड़ा हो, लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) पार्टी की शानदार जीत के नायक बनकर उभरे हैं. वह सबसे लंबे समय तक भारतीय जनता पार्टी (BJP) से मुख्यमंत्री रहे हैं.

माना जा रहा है कि 64 वर्षीय शिवराज ने सत्ता विरोधी लहर को मात देने के लिए 'लाडली बहना' (Ladli Bahna Yojana) जैसी गेम-चेंजर योजना (Game-changer Ladli Bahna Yojana) शुरू करके मध्य प्रदेश में बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की. हालांकि, उनकी पार्टी ने पिछले महीने हुए विधानसभा चुनावों में उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया.

'पांव-पांव वाले भैया' और 'मामा' के नाम से हैं विख्यात

23 मार्च 2020 को मध्यप्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान को एक सफल प्रशासक के साथ ही बेहद विनम्र और मिलनसार नेता के रूप में पहचाना जाता है. किसान परिवार में पैदा हुए चौहान ने सबसे लंबे समय पौने सत्रह साल तक लगातार मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने का इतिहास रचा है. शिवराज सिंह चौहान प्रदेश, जनता के बीच विशेष रूप से बच्चों में मामा के नाम से लोकप्रिय हैं, जबकि मुख्यमंत्री बनने से पहले अपनी लोकसभा सीट विदिशा में अमूमन पैदल चलने के कारण 'पांव-पांव वाले भैया' के नाम से जाने जाते हैं.

चार बार रह चुके हैं मुख्यमंत्री

शिवराज सिंह चौहान 29 नवंबर 2005 को पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. उनके नेतृत्व में 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को भारी बहुमत से जीत मिली थी. बीजेपी ने उन्हें नवंबर 2018 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था, लेकिन इस चुनाव में वह अपनी पार्टी को बहुमत नहीं दिला सके और सत्ता उनके हाथ से खिसक कर कांग्रेस नेता कमलनाथ के हाथ में चली गई.

लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने और कांग्रेस के 22 विधायकों के बागी होने के कारण कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई, जिसके कारण कमलनाथ ने शक्ति परीक्षण से ठीक पहले 20 मार्च को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस के इन 22 बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने के बाद ये सभी बीजेपी में शामिल हो गए थे. इसके बाद कांग्रेस के पास मात्र 92 विधायक रह गए और बीजेपी 107 विधायकों के साथ बहुमत में आ गई. जिसके बाद बीजेपी विधायक दल ने चौहान को अपने दल का नेता चुना और वह 23 मार्च 2020 को चौथी बार मुख्यमंत्री बने.

लगातार पांच बार सांसद भी रहे

मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 2005 से वर्ष 2018 तक के कार्यकाल में शिवराज ने मध्य प्रदेश को बीमारू राज्य से बाहर निकाला. वह सादा जीवन जीना पसंद करते हैं. उन्होंने देश की राजनीति की बजाय मध्य प्रदेश की राजनीति में अपने को बनाए रखा. शिवराज इस बार छठी बार सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा सीट से जीते हैं. इसके अलावा, वह विदिशा लोकसभा सीट से वर्ष 1991 से वर्ष 2006 तक पांच बार लगातार सांसद भी रहे.

सीहोर जिले के जैत गांव में पांच मार्च 1959 को किसान प्रेम सिंह चौहान एवं सुन्दर बाई चौहान के घर में जन्मे शिवराज में नेतृत्व का हुनर तब सबसे पहले सामने आया, जब वह वर्ष 1975 में मॉडल हायर सेकेण्डरी स्कूल के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये. उनकी संगीत, अध्यात्म, साहित्य एवं घूमने-फिरने में विशेष रूचि है. उनकी पत्नी साधना सिंह हैं और उनके दो पुत्र कार्तिकेय एवं कुणाल है. कार्तिकेय कारोबारी हैं, जबकि कुणाल अभी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं. शिवराज की शैक्षणिक योग्यता पोस्ट ग्रेजुएशन तक है.

आपातकाल के दौर से कर रहे हैं राजनीति

चौहान 1972 में 13 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये. 1975 में आपातकाल के आंदोलन में भाग लिया और भोपाल जेल में बंद रहे. भाजपा युवा मोर्चा (भाजयुमो) के प्रांतीय पदों पर रहते हुए उन्होंने विभिन्न छात्र आंदोलनों में भी हिस्सा लिया.

उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर 29 नवंबर 2005 को पहली बार शपथ लेने वाले चौहान यहां लगातार दूसरी बार 2008 में और तीसरी बार 2013 में भी मुख्यमंत्री बने और दिसंबर 2018 तक मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद वह 23 मार्च 2020 को चौथी बार मुख्यमंत्री बने.

वाजपेयी की सीट से पहली बार बने सांसद

चौहान वर्ष 1990 में पहली बार बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने थे. इसके बाद 1991 में अटल बिहारी वाजपेयी ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उन्होंने लखनऊ सीट को रखा था और विदिशा से इस्तीफा दे दिया था. विदिशा में पार्टी ने शिवराज को प्रत्याशी बनाया और वह वहां से पहली बार सांसद बने.

चौहान 1991-92 में अखिल भारतीय केसरिया वाहिनी के संयोजक और 1992 में अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव बने. वर्ष 1992 से 1994 तक बीजेपी के प्रदेश महासचिव नियुक्त होने के साथ ही वह वर्ष 1992 से 1996 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 1993 से 1996 तक श्रम और कल्याण समिति और 1994 से 1996 तक हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रहे.

वर्ष 1996 में शिवराज सिंह विदिशा संसदीय क्षेत्र से दोबारा सांसद चुने गये. सांसद के रूप में 1996-97 में वह नगरीय एवं ग्रामीण विकास समिति, मानव संसाधन विकास विभाग की परामर्शदात्री समिति तथा नगरीय एवं ग्रामीण विकास समिति के सदस्य रहे. वर्ष 1998 में वह विदिशा संसदीय क्षेत्र से ही तीसरी बार बारहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गये. वह 1998-99 में प्राक्कलन समिति के सदस्य रहे. 1999 में वह विदिशा से लगातार चौथी बार तेरहवीं लोकसभा के लिए एक बार फिर चुने गए और 1999-2000 में कृषि समिति के सदस्य तथा 1999-2001 में सार्वजनिक उपक्रम समिति के सदस्य रहे.

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संगठन के कई पदों पर किया काम

साल 2000 से 2003 तक भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए शिवराज सिंह ने पार्टी की युवा इकाई को मजबूत करने के लिए मेहनत की. इस दौरान वे सदन समिति (लोकसभा) के अध्यक्ष और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव भी रहे. वह 2000 से 2004 तक संचार मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहने के साथ ही पांचवीं बार विदिशा से चौदहवीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए.

शिवराज सिंह वर्ष 2004 में कृषि समिति, लाभ के पदों के विषय में गठित संयुक्त समिति के सदस्य, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव, बीजेपी संसदीय बोर्ड के सचिव, केंद्रीय चुनाव समिति के सचिव और नैतिकता विषय पर गठित समिति के सदस्य और लोकसभा की आवास समिति के अध्यक्ष रहे. वर्ष 2005 में चौहान मध्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष नियुक्त किए गए और उन्हें 29 नवंबर 2005 को उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री की कमान सौंपी गई.

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