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Christmas 2024: जय विलास पैलेस के आर्किटेक्ट ने किया इस ऐतिहासिक चर्च का निर्माण, जानिए इसकी दास्तान

Christmas Celebration 2024: ऐसा माना जाता है कि 1874 में क्रिसमस पर कर्नल फ्लोज ने पहली बार इस गिरिजाघर पर क्रिसमस सेलिब्रेशन किया था, जिसमें शाही परिवार से जुड़े लोग भी उन्हें बधाई देने और दावत में शामिल होने पहुंचे थे. इसके बाद से यह चर्च कालांतर में ब्रिटिश क्रिश्चियन के लिए खोल दिया गया और फिर आम जन के लिए. आज भी क्रिसमस पर यहां धूम रहती है. वहीं साल भर देश और दुनिया से क्रिश्चियन समुदाय के लोग यहां चर्च को देखने और प्रार्थना करने आते हैं.

Christmas 2024: जय विलास पैलेस के आर्किटेक्ट ने किया इस ऐतिहासिक चर्च का निर्माण, जानिए इसकी दास्तान

Historical Church in Gwalior: ग्वालियर के फालका बाजार स्थित कैथोलिक संत जॉन महा गिरिजाघर (St John The Baptist Cathedral) में इस बार 150वां क्रिसमस त्योहार (Christmas Festival) मनाया जा रहा है. इसके निर्माण की भी एक खास कहानी है, जो ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के सुप्रसिद्ध जय विलास पैलेस (Jai Vilas Palace) से जुड़ी है. दरअसल इसका निर्माण भी ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट इंजीनियर माइकल फ्लोज ने ही किया था, वह भी अपने परिवार के लोगों को प्रार्थना करने के लिए, लेकिन अब यह गिरिजाघर पूरे देश बल्कि दुनिया भर में खास महत्व रखता है.

क्या है कहानी?

ये सन 1874 की बात है, तब देश पर अंग्रेजो का कब्जा था, लेकिन इस अंचल में सिंधिया परिवार की हुकूमत थी, जो अंग्रेजी सल्तनत के अधीन काम करती थी. तब ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया थे. उस समय सिंधिया परिवार गोरखी महल में रहता था, लेकिन जीवाजी राव अपने लिए ज्यादा बड़ा और भव्य महल चाहते थे, वह भी विश्व स्तरीय हो और लंदन के बकिंगघम पैलेस जैसा ही भव्य हो. इसलिए उन्होंने जय विलास पैलेस बनाने का जिम्मा तब दुनिया के सबसे प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलियाई इंजीनियर वास्तुविद कर्नल माइकल फ्लोज को सौंपा. उन्होंने ही इसका डिजायन बनाया, लेकिन महाराज चाहते थे कि जब तक महल बनकर बनकर तैयार हो तब तक कर्नल फ्लोज ग्वालियर में रहकर ही उसकी देखरेख करें.

फ्लोज सपरिवार ग्वालियर आये तो निर्माणाधीन महल के पास सरदार फाल्के की कोठी के पास की जमीन उन्हें दे दी गई. यहां उन्होंने अपने लिए एक छोटा सा आवास भवन बनाया साथ अपने परिवार की प्रार्थना के लिए यहां एक गिरिजाघर (चर्च) का निर्माण भी कराया. 

इस गिरिजाघर से जुड़े एडवोकेट राजू फ्रांसिस कहते हैं कि फालका बाजार का चर्च भारतीय संस्कृति और ईसाई धर्म संस्कृति का अदभुत मिश्रण भरा नमूना है.

इसमें दोनों संस्कृतियों की झलक साफ दिखाई देती है. बाहर मुख्य दरवाजे से लेकर अंदर तक का दृश्य ईसाई धर्म की छाप छोड़ता है, लेकिन चर्च के ऊपर गोल गुंबद और घंटे भारतीय संस्कृति की झलक दिखलाते हैं. यही कारण है कि ग्वालियर का यह सबसे पुराना चर्च सबसे चर्चित भी है. इसमें सिंधिया रियासत कालीन दो घंटे आज भी लगे हैं, जो अष्टधातु के हैं. यह इतने वजनदार है कि आज के जमाने में छत पर नहीं चढ़ाए जा सकते. इन पर रियासत की मोहर सांप सूरज का चिन्ह भी उकेरा गया है. कर्नल फ्लोज की एक मूर्ति जयविलास पैलेस के म्यूजियम में भी रखी गई है.

ग्वालियर में जिस इलाके फालका बाजार का यह सबसे पुराना चर्च स्थित है, उस जगह को कर्नल साहब की ड्योढ़ी भी कहा जाता है. क्योंकि कर्नल साहब ने यही रहकर अपने लिए ही इस चर्च की स्थापना की थी. इसके बाद इस जगह को कर्नल साहब की ड्योढ़ी के नाम से जाना जाने लगा. अब यह शहर का पॉश इलाका है और यहां इसी नाम से बाजार भी है.

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