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भोपाल गैस त्रासदी में जीवित बचे लोगों को आज भी आता है भयानक सपना, कुछ सालों बाद लौटे थे अपने घर

भोपाल गैस त्रासदी के 39 साल बाद भी यह जीवित बचे लोगों को एक भयंकर सपने की तरह याद है. इस हादसे के बाद यह कारखाना बंद किया जा चुका है. लेकिन यादें आज भी ताजा है.

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भोपाल गैस त्रासदी में जीवित बचे लोगों को आज भी आता है भयानक सपना, कुछ सालों बाद लौटे थे अपने घर
भोपाल गैस त्रासदी आज भी है लोगों के जहन में जीवंत
Bhopal:

मध्य प्रदेश की राजधानी में दो दिसंबर 1984 की सर्द रात को यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस के रिसाव ने न केवल यहां हजारों लोगों की जान ले ली थी, बल्कि त्रासदी के 39 साल बाद भी यह जीवित बचे लोगों को एक भयंकर सपने की तरह याद है. इस हादसे के बाद यह कारखाना बंद किया जा चुका है. दो और तीन दिसंबर, 1984 की मध्यरात्रि को कीटनाशक कारखाने से जहरीली गैस के रिसाव के बाद कम से कम 3,787 लोग मारे गए और पांच लाख से अधिक लोग शारीरिक रूप से प्रभावित हुए.

पीड़ितों को आज भी आती है भयावह रात के सपने

गैस पीड़ित और रेलवे के सेवानिवृत्त मुख्य आरक्षण अधीक्षक महेंद्रजीत सिंह (79) ने बताया, 'हादसे वाली दो दिसंबर की रात को मैं डर से कांप उठा. मैंने उस ठंडी रात में लोगों को मरते हुए देखा था.'

उस भयावह रात को याद करते हुए, सिंह ने कहा, ‘‘उस रात लगभग दो बजे मेरा परिवार सो रहा था, जब यूनियन कार्बाइड कारखाने से कुछ ही दूरी पर स्थित रेलवे कॉलोनी में लोगों की चीख-पुकार ने हमें जगाया. हम घर से बाहर भागे और कारखाने से निकलने वाली गैस से बचने के लिए स्कूटर से और पैदल भागे.'

ऑल इंडिया रिटायर रेलवेमेन फेडरेशन वेस्टर्न ज़ोन के अध्यक्ष सिंह ने कहा, उनके परिवार ने उनके घर से चार किमी दूर एक होटल में रात बिताई. कुछ साल बाद, सिंह ने अपनी मां और छोटे भाई को खो दिया जो जहरीली गैस के संपर्क में आए थे.

पुरान पीपल के पेड़ हो गए थे बेजान

उन्होंने कहा, ''गैस रिसाव के तीन दिन बाद, मैंने देखा कि हमारे घर के पास एक पीपल के पेड़ की पत्तियां गिर गई थीं और वह मृत और बेजान दिखाई दे रहा था.''

उन्होंने कहा कि शहर के अन्य हिस्सों में भी पेड़-पौधों पर जहरीली गैस का असर देखा गया.

सिंह ने कहा, 'त्रासदी के बाद, ऐसी अफवाहें थीं कि फैक्ट्री से बची हुई जहरीली गैस निकलेगी. ऐसी अपुष्ट खबरों को देखते हुए हमने पड़ोसी होशंगाबाद जिले में शरण ली.'

पूर्व रेलकर्मी ने कहा कि उन्होंने इस त्रासदी में अपने कई सहयोगियों को खो दिया है और जो बच गए, वे बीमारियों, विशेषकर सांस लेने की समस्याओं के साथ जी रहे हैं.

सेवानिवृत्त सहायक स्टेशन मास्टर रामबली प्रसाद वर्मा (83) ने कहा कि वह भाग्यशाली थे कि आपदा से बच गये.

उन्होंने बताया, ''यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की चारदीवारी के पास स्थित रेलवे केबिन में मेरी ड्यूटी 2 दिसंबर की रात 10 बजे खत्म हो गई.'' आधी रात के आसपास, जब फैक्ट्री से गैस लीक हुई, तब वर्मा रेलवे स्टेशन के पास रेलवे कॉलोनी में अपने घर पर थे.

उन्होंने कहा, 'जहरीली गैस से बचने के लिए हम इधर-उधर भागे और हमें कुछ दूर स्थित सेना के वाहन में शरण मिली.'

वर्मा और उनका परिवार दिन निकलने पर घर लौट आए, लेकिन कुछ घंटों बाद फिर से अपना घर छोड़ना पड़ा क्योंकि ऐसी अफवाहें थीं कि बची हुई जहरीली गैस तीन दिसंबर को सुबह 11 बजे के आसपास फिर निकाली जायेगी. इसके बाद वर्मा का परिवार इंदौर चला गया और चीजें ठीक होने पर वापस लौटा था.

बुजुर्ग ने कहा, 'जब मैं उस ठंडी रात के बारे में सोचता हूं, तो मैं कांपने लगता हूं. गैस के संपर्क में आने के कारण मुझे सांस लेने में दिक्कत आती है और दमा हो गया है .''

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