Bhopal Gas Tragedy History: "बहुत ही भयावह स्थिति थी... बहुत ही ज्यादा... ये समझ लीजिए कि हम लोग सब परेशान थे. जो भी थे अंदर, वो लोग भी सब परेशान थे. बाहर जब देखा हमने तो बाहर रात में जो कुछ भी दिखा हमें, तो सारे लोग परेशान. दौड़ रहे थे, गिर रहे थे." ऐसा अक्सर गैस त्रासदी के पीड़ित बोलते हैं. वो दिसंबर 1984 की एक सर्द रात थी. अचानक, मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के भोपाल (Bhopal) में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (Union Carbide India Limited Factory) के कीटनाशक कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस (Methyl Isocyanate Gas) का रिसाव शुरू हो गया... अनुमान के मुताबिक, जहरीली गैस ने 5479 लोगों की एक ही झटके में जान ले ली. जहरीली गैस का असर पांच लाख से ज्यादा लोगों पर पड़ा. ये दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटना थी.
ऊंची चिमनी में से निकल रही थी गैसः पूर्व कर्मचारी
यूनियन कार्बाइड कारखाने के पूर्व कर्मचारी अब्दुल सईद खान उन गिने-चुने बचे हुए लोगों में हैं, जो रुह कंपाने वाली त्रासदी के समय कारखाने में मौजूद थे. 'मैं रेस्क्यू स्क्वॉड में था. इसमें कैजुअल्टी को रेस्क्यू करना है. इसकी हमें अलग से ट्रेनिंग दी गई थी. तो हम लोग दौड़ कर गए वहां, तो हमारे प्लांट सुपरिटेंडेंट थे मिस्टर के. वी. शेट्टी, तो उन्होंने बताया कि ये एमआईसी गैस लीकेज शुरू हुआ है, तो आप लोग ये पानी का हाइड्रैंट खोल के पानी मारना शुरू करो उसपर. ऊंची चिमनी में से निकल रही थी गैस और नीचे आ रही था. हमने पानी मारना शुरू किया. पानी मारते रहे. तकरीबन आधा घंटा तक खड़े रहे वहां पर.' जब हालात बेकाबू होने लगे, तो अब्दुल और दूसरे कर्मचारियों को फौरन सुरक्षित जगह जाने का निर्देश दिया गया.
कंट्रोल नहीं हो रही गैस-प्लांट सुपरिटेंडेंट
पूर्व कर्मचारी अब्दुल सईद खान ने बताया कि हमारे प्लांट सुपरिटेंडेंट थे मिस्टर के. वी. शेट्टी. उन्होंने अचानक कहा, 'कंट्रोल नहीं हो रही है गैस... आप लोग भी सेफ एरिया में चले जाओ. आप भी निकल जाओ.' तो मैं और मिस्टर शकील कुरैशी और एक मिस्टर दुबे, प्लांट ऑपरेटर थे जो, गैस इतनी फैल गई थी कि हम लोग को कुछ आइडिया नहीं लगा कि किस साइड जाना है. हम बाउंड्री की तरफ भागे पीछे ही से. ऑक्सीजन मास्क था तो, लेकिन उसमें भी ऑक्सीजन खत्म हो रही थी. उसमें बजर आ रहा था.
वो ड्राईवर भी अजीब था...-पीड़ित अब्दुल
अब्दुल आगे याद करते हुए बताते हैं, "जब फैक्ट्री से गाड़ी चली, तो हमीदिया हॉस्पिटल पहुंची. वहां डॉक्टरों को बताया, जो भी ड्यूटी डॉक्टर थे, कि हम लोग यूनियन कार्बाइड के इम्प्लॉई हैं. हमारे पास हेलमेट वगैरह है ये सब और एमआईसी गैस लीक हो गई है. बहुत ज्यादा मतलब लोग आ सकते हैं. इसपर वो बोले ठीक है. वहां पे लोग आना शुरू नहीं हुए थे.' इसके बाद उन्होंने ड्राइवर को याद करते हुए कहा कि उसके बाद वो ड्राइवर अजीब आदमी... वो कहने लगा कि चलो और आगे चलते हैं. तो और आगे चला जाए. थोड़ा आगे जाके खड़ा हुए. फिर वो बोला चलो, और आगे चलते हैं. सिहोर चला गया वो. सिहोर चला गया तो हम लोग को तो मालूम नहीं. भोपाल में क्या हो रहा है.'
'नहीं मिल पाए सबसे दोबारा'
दुखद घटना को याद करते हुए अब्दुल कहते है, ' उस रात के बाद में नहीं हुई कभी मुलाकात. एकाध बार सीबीआई वालों ने बुला कर कुछ स्टेटमेंट्स वगैरह ली, लेकिन सारे लोगों से नहीं बात हो पाई. बात ये है कि मेरे साथ जो मिस्टर दुबे गए थे, उनके साथ भी कई सालों के कोई कॉन्टैक्ट नहीं कि हम कहां रह रहे हैं, कुछ पता नहीं. शकील कुरैशी जो थे, उनका भी पेपर में आता रहता है कि वो बीमार हैं, बेड पे हैं. उनपे कुछ लकवे का असर हुआ है. तीन लोग ही थे हम लोग उस टाइम पे जो लास्ट में निकले और बाकी के बारे में कोई आइडिया नहीं है.'
पहले भी हो चुकी थी घटना
साल 1984 में हुए भोपाल गैस त्रासदी के पहले कोई ऐसी घटना को याद करते हुए अब्दुल कहते है, '1980 में चार साल पहले, एक हुई थी. इसमें फैटल एक्सिडेंट हुआ था, जिसमें अशरफ मोहम्मद खान के ऊपर फौजीन गैस लीक हुई थी. वो बेहोश हो गए थे. फिर, उनकी डेथ हो गई थी. थोड़ी-बहुत आमतौर पे निकलती थी. आंखों से नाक से पानी आता था. हम पानी मार लेते थे. लेकिन ये जो थी, ये तो बहुत ही ज्यादा क्वांटिटी में निकली, जिसकी वजह से इतनी कैजुअल्टी हुई.'
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परिवार पर भी हुआ असर
भोपाल गैस त्रासदी ने अब्दुल की जिंदगी हमेशा के लिए खराब कर दी. उनके निकाह के 17 साल बाद हुए उनके दोनों बच्चे दिमागी तौर पर बीमार निकले. कई शोध होने के बाद उन्हें बताया गया कि ये बीमारी जहरीली गैस का नतीजा थी.
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