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जज़्बे को सलाम: दोनों आंखों में रोशनी नहीं है, फिर भी तीन कक्षाओं के बच्चों को ये शिक्षक दिखा रहे हैं जिंदगी की राह

Madhya Pradesh News: खुद अंधेरे में हैं, लेकिन वह विद्यार्थियों के भविष्य में उजाला भर रहे हैं. दिव्यांगता के आधार पर सहायक शिक्षक पद पर भर्ती हुए रमेश कुमार राहंगडाले को स्कूल आने  और जाने में उनकी पत्नी मदद करती हैं.

जज़्बे को सलाम: दोनों आंखों में रोशनी नहीं है, फिर भी तीन कक्षाओं के बच्चों को ये शिक्षक दिखा रहे हैं जिंदगी की राह

Balaghat News: कहते हैं कि इंसान अगर चाह ले, तो पत्थर को भी पिघलाकर मोम बना सकता है. इंसान के अंदर अगर जज्बा है, तो वह हर मुश्किल को आसान कर सकता है. यानी जिंदगी में असंभव नाम की कोई चीज नहीं होती है और यह सच कर दिखाया है बालाघाट (Balaghat) जिले के भरवेली शासकीय माध्यमिक कन्या शाला (Bharveli Government Secondary Girls School) के शिक्षक रमेश कुमार राहंगडाले ने.

आंखों से दिव्यांगता के बाद भी उनके कुशल शिक्षण कार्य से न केवल साथी शिक्षक, बल्कि स्कूली विद्यार्थी भी काफी प्रभावित हैं. दरअसल, शिक्षक रमेश कुमार राहंगडाले शिक्षकों के लिए बड़ी मिसाल है. समाज में ऐसे जज्बा और जुनून वाले शिक्षक बहुत कम देखने को मिलते हैं. जहां कई शिक्षक पढ़ाने में अरुचि दिखाते हैं. वहीं, शिक्षक रमेश कुमार राहंगडाले हर दिन स्कूल आकर छठी से लेकर 8वीं तक की कक्षाओं में हिन्दी और संस्कृत विषय को पढ़ाते हैं.

बच्चे व शिक्षक भी उनकी पढ़ाई की कर रहे हैं तारीफ

खुद अंधेरे में हैं, लेकिन वह विद्यार्थियों के भविष्य में उजाला भर रहे हैं. दिव्यांगता के आधार पर सहायक शिक्षक पद पर भर्ती हुए रमेश कुमार राहंगडाले को स्कूल आने  और जाने में उनकी पत्नी मदद करती हैं. इसके बाद स्कूल में सहयोगी शिक्षक और विद्यार्थी उन्हें कक्षा तक लाते- ले जाते हैं, जहां वह बच्चों को बड़े ही कुशलता के साथ पढ़ाते हैं. कक्षा के छात्र बताते हैं कि एक छात्रा, किताब को पढ़कर बताती हैं और उसके बाद सर उन्हें उसके बारे में समझाते हैं, जिससे उन्हें अच्छे से समझ में आता है. साथी महिला शिक्षक सुनंदा सिक्का बताती हैं कि सहायक शिक्षक रमेश कुमार राहंगडाले की शैक्षणिक अध्यापन काफी अच्छा है और वह बच्चों को अच्छे ढंग से न केवल पढ़ाते हैं, बल्कि समझाते भी हैं. इनकी शब्दावली काफी अच्छी है.

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नेत्रहीन सहायक शिक्षक रमेश कुमार बताते हैं कि उनकी पहली पदस्थापना 1989 में प्राथमिक शाला गुडरू में हुई थी. उस समय उन्हें थोड़ा बहुत दिखता था, लेकिन कुछ साल बाद उन्हें दिखना बिलकुल बंद हो गया. नवंबर 2008 में उनकी पदस्थापना शासकीय माध्यमिक कन्या शाला भरवेली में हुई, जिसके बाद से वे यहां विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं. उन्होंने बताया कि काफी इलाज के बाद भी उनकी नेत्रहीनता ठीक नहीं हुई, जिसकी पूरी जानकारी मैंने विभाग को दे रखी है. उन्होंने यह भी बताया कि  शैक्षणिक कार्य के दौरान उन्हें सहयोगी शिक्षकों के साथ ही विद्यार्थियों का भी अध्ययन में अच्छा सहयोग मिलता है.  

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