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जन्म से ही जिंदा रहने की जंग ! 700 ग्राम के साथ पैदा हुए 'पूर्वांश' ने 40 दिन में जीती ज़िंदगी की लड़ाई 

उज्जैन (Ujjain) जिले के जस्तीखेड़ी (Jastikhedi) में रहने वाले संदीप पाटीदार की पत्नी सिमरन गर्भवती (Pregnant) थी...लेकिन सिर्फ छह महीने ही हुए थे कि उन्हें ब्लीडिंग शुरू हो गई. जब पास के एक डॉक्टर से संपर्क किया तो उन्होंने सोनोग्राफी (Sonography) कर बताया कि बच्चेदानी के अंदर खून का थक्का जमा हुआ है जिसके कारण ब्लीडिंग हो रही है. 

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जन्म से ही जिंदा रहने की जंग ! 700 ग्राम के साथ पैदा हुए 'पूर्वांश' ने 40 दिन में जीती ज़िंदगी की लड़ाई 
सांकेतिक 

उज्जैन (Ujjain) जिले के जस्तीखेड़ी (Jastikhedi) में रहने वाले संदीप पाटीदार की पत्नी सिमरन गर्भवती (Pregnant) थी...लेकिन सिर्फ छह महीने ही हुए थे कि उन्हें ब्लीडिंग शुरू हो गई. जब पास के एक डॉक्टर से संपर्क किया तो उन्होंने सोनोग्राफी (Sonography) कर बताया कि बच्चेदानी के अंदर खून का थक्का जमा हुआ है जिसके कारण ब्लीडिंग हो रही है. ऐसे में बच्चे को बचाना बहुत मुश्किल है और गर्भपात भी करना पड़ सकता है. तभी किसी ने उन्हें लाइफ़ केयर अस्पताल में जाने की सलाह दी. किसी तरह हिम्मत बांध कर दंपती जब हॉस्पिटल पहुंचें तो अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कनकप्रिया तिवारी ने तुरंत गर्भवती महिला का टेस्ट किया. डॉक्टर ने देखा कि बच्चेदानी के अंदर खून का थक्का जमा है और इसी की वजह से लगातार ब्लीडिंग हो रही थी. मां का ब्लडप्रेशर भी बढ़ा हुआ था, बच्चे के आस-पास पानी की कमी थी और बच्चा गर्भ में उल्टा था. गर्भ में बच्चे का वजन सिर्फ 650 ग्राम पता चल रहा था. ऐसे में सुरक्षित डिलेवरी कराना, मां और बच्चे के बचाना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. 

लाइफ़ केयर हॉस्पिटल के डाक्टरों का सरहानीय कदम 

तब डॉ. कनकप्रिया तिवारी (Kanakpriya Tiwari), डॉ. ब्रजबाला तिवारी (Brajbala Tiwari) और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. ने अक्षय वनवट (Akshay Vanvat), डॉ. विनीता अग्रवाल (Vineeta Aggarwal) और डॉ. आशीष जायसवाल (Ashish Jaiswal) के साथ मिलकर इसे चुनौती के रूप में लिया. सिमरन के पूरे परिवार को साथ बिठाकर काउंसलिंग की गई. साथ ही सारी सुविधाओं के साथ सिमरन को ICU (Intensive Care Unit) में लेकर इलाज शुरू किया गया. उन्हें कुछ स्पेशल इंजेक्शन और दवाइयां दी गई जिससे कि मां के गर्भ में ही बच्चे के फेफड़े एवं दिमाग़ को मज़बूती मिल सके. इंजेक्शन के असर के लिए लगभग 48 घंटे का समय ज़रूरी था. उसके बाद डिलीवरी कराई गई. डिलेवरी के पहले ये पता करना ज़रूरी था कि NICU (Neonatal Intensive Care Unit) में ऑक्सीजन फ्लो बना रहें और इन्फेक्शन पर भी कंट्रोल रहे. 

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बच्चे को सही-सलामत पाकर अपार खुश हुआ परिवार 

700 ग्राम के शिशु को हॉस्पिटल के नवजात शिशु विभाग में शिफ्ट किया गया . सेप्टिक बेबी और आउट बोर्न बेबी के सेक्शन अलग होने और सभी बच्चों के बेड में पर्याप्त दूरी होने के चलते इलाज में बहुत मदद मिली और इन्फेक्शन को काबू करने में बहुत सुविधा रही. कम हीमोग्लोबीन और कम प्लेटलेट्स होने से बेबी और  सिमरन की ब्लड लेवल्स की बारीक से निगरानी की गई. सोनोग्राफी (Sonography), इकोकार्डियोग्राफ़ी (Echocardiography) कर डीप टेस्ट इकाई में कड़े तापमान कंट्रोल उपाय लागू किए गए....और 40 दिनों के लगातार मेहनत के बाद डॉक्टर्स की टीम ने स्वास्थ्य शिशु को पाटीदार परिवार के सौंप कर अपार ख़ुशी और गौरव का अनुभव किया. टीम के साथ ही सोनोलॉजिस्ट, एनआईसीयू स्टाफ़ फूलसिंह , सिस्टर सेलेस्टोलीना, अंकिता, मनीषा, शानू और अन्य सभी ने सराहनीय देखभाल की. इस सभी प्रक्रिया में सिमरन के माता पिता और परिवार ने ग़ज़ब का संयम और भरोसा रखा.

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