
जबलपुर : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने छतरपुर जिले के नौगांव निवासी सुधीर कुमार रैकवार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार द्वारा उनकी ग्रेच्युटी से ₹5,27,961 की अवैध कटौती को रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि वसूली गलत पाई जाती है, तो सरकार को यह राशि 6% वार्षिक ब्याज सहित लौटानी होगी. यह फैसला उन हजारों सरकारी कर्मचारियों के लिए राहत की खबर है, जिनकी सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन या ग्रेच्युटी से मनमाने तरीके से वसूली की जाती है.
'बिना पूर्व सूचना के किसी भी प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती'
याचिकाकर्ता सुधीर कुमार रैकवार, जो 07 अक्टूबर 1994 से लैब अटेंडेंट के पद पर कार्यरत थे, ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह दावा किया था कि सरकार द्वारा बिना किसी पूर्व सूचना के उनकी ग्रेच्युटी से ₹5,27,961 काट लिए गए, जो पूरी तरह अवैध है. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता धीरज तिवारी ने इस मामले की पैरवी की और अदालत में तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पहले के फैसलों के अनुसार सेवानिवृत्त कर्मचारियों से बिना पूर्व सूचना के किसी भी प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती.
क्या है पूरा मामला ?
07 अक्टूबर 1994 – सुधीर कुमार रैकवार लैब अटेंडेंट के पद पर नियुक्त हुए.
14 सितंबर 2007 – उन्हें मल्टी पर्पस हेल्थ वर्कर के पद पर पदोन्नति दी गई.
30 जून 2023 – वह सेवा से सेवानिवृत्त हुए.
20 फरवरी 2024 – सरकार ने आदेश जारी कर उनकी ग्रेच्युटी से ₹5,27,961 की कटौती कर दी.
सेवानिवृत्ति के बाद इतनी बड़ी रकम काटे जाने से परेशान होकर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की.
हाई कोर्ट में क्या हुआ?
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट पहले ही तय कर चुके हैं कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से सेवानिवृत्ति के बाद बिना सूचना के वसूली नहीं की जा सकती. उन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा पहले दिए गए फैसले (WP No. 2778/2024, दिनांक 12/09/2024) का हवाला दिया, जिसमें सरकार की ऐसी वसूली को गैर-कानूनी घोषित किया गया था.
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ के फैसले (Writ Appeal No. 815/2017, राज्य बनाम जगदीश प्रसाद दुबे, दिनांक 06.03.2024) के अंतर्गत आता है. उन्होंने कहा कि यदि कर्मचारी सरकार को अभ्यावेदन (representation) प्रस्तुत करता है, तो मामला समीक्षा के बाद निपटाया जाएगा.
हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

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न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने कहा कि बिना नोटिस और सुनवाई के किसी भी सेवानिवृत्त कर्मचारी से वसूली अवैध है. यदि कर्मचारी ने स्वेच्छा से अधिक वेतन लेने का कोई उपक्रम (undertaking) नहीं दिया, तो वसूली संभव नहीं. सरकार को 45 दिनों के भीतर कर्मचारी के अभ्यावेदन पर फैसला लेना होगा. यदि वसूली गलत पाई जाती है, तो ₹5,27,961 की पूरी राशि 6% वार्षिक ब्याज सहित लौटाई जाए.
फैसले का बड़ा असर
अब राज्य सरकार मनमाने तरीके से कर्मचारियों की ग्रेच्युटी और पेंशन से कटौती नहीं कर सकेगी. तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के लाखों सरकारी कर्मचारी इस फैसले के आधार पर राहत मांग सकते हैं. यह निर्णय सरकारी कर्मचारियों के लिए एक मिसाल बन सकता है.
कर्मचारियों के लिए क्या करें?
अगर किसी भी सरकारी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद उनकी ग्रेच्युटी या पेंशन से अवैध वसूली हो रही है, तो वे इस फैसले का हवाला देकर शासन को अभ्यावेदन (Representation) दें. अगर राहत न मिले, तो हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करें. कर्मचारी संगठनों से संपर्क कर कानूनी मदद लें. यह खबर उन सभी कर्मचारियों के लिए एक राहत की खबर है, जो सेवानिवृत्ति के बाद सरकार की मनमानी वसूली का शिकार हो रहे हैं.