करीब 21 साल अपने हक की लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार निजी अस्पताल की लापरवाही के खिलाफ पीड़ित परिवार को कानूनी सफलता मिल गई है. जबलपुर के एक निजी अस्पताल में 21 साल पहले बच्ची की आंखों की रोशनी चले जाने पर उपभोक्ता फोरम (Consumer Forum) ने अस्पताल को दोषी पाया है. उपभोक्ता फोरम ने निजी अस्पताल के खिलाफ फैसला सुनाते हुए करीब 85 लाख का जुर्माना लगाया है. इस फैसले से पीड़ित परिवार का कहना है कि जुर्माने के पैसे से वह बच्ची का इलाज विदेश में कराएंगे.
दरअसल, 21 साल पहले कटनी में एक प्री मैच्योर नवजात बच्ची साक्षी का जन्म हुआ, उसे इलाज के लिए जबलपुर लाया गया जहां जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन देने से उसकी आंखों की रोशनी चली गई. यह सब बच्चों के अस्पताल आयुष्मान (Ayushman Hospital Jabalpur) में 21 साल पहले हुआ था.
उपभोक्ता फोरम ने अस्पताल को पाया दोषी
उपभोक्ता फोरम को साक्षी के पिता शैलेंद्र जैन की ओर से बताया गया कि बच्ची को रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी है. यह इंक्यूबेटर में ऑक्सीजन के अत्यधिक डोज के कारण हुआ है. जो कि अस्पताल की लापरवाही से हुआ है. जिस पर आरोप सही पाते हुए फोरम ने कहा कि अस्पताल और डॉक्टर की लापरवाही के कारण बच्ची के आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई. उसके जीवन पर कठिन प्रभाव पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, इसलिए आयुष्मान अस्पताल और डॉक्टर मुकेश खरे को 85 लाख रुपए हर्जाना देना होगा.
ये भी पढ़ें - कंघी चुराकर होता है प्यार का इजहार... माड़िया जनजाति की 'घोटुल' प्रथा, शादी का अनोखा तरीका
कैसे गई साक्षी के आंखों की रोशनी
वर्ष 2002 में प्राइवेट जॉब करने वाले शैलेंद्र जैन के यहां बेटी ने जन्म लिया था. बच्ची का वजह 1500 ग्राम से भी कम था और वह प्री मैच्योर थी. डॉक्टरों की सलाह पर उसे जबलपुर में चाइल्ड स्पेशलिस्ट मुकेश खरे (Child Specialist Doctor Mukesh Khare) के पास लाया गया. जिन्होंने उसे आयुष्मान अस्पताल में भर्ती करा दिया था. जहां वो 36 दिन में वह स्वस्थ हो गईं थी, लेकिन इस दौरान उनकी आंखों की रोशनी चली गई. साक्षी अब 21 वर्ष की हो गई हैं. वह हारमोनियम बजा कर गाने भी गाती हैं.
जांच कराने से पता चली अस्पताल की लापरवाही
पिता शैलेंद्र जैन ने पेपर में पढ़ा कि ज्यादा ऑक्सीजन से आंखों में असर पड़ता है. इसके बाद जब उन्होंने साक्षी की जांच कराई तो पता चला कि उसकी आंखों की रोशनी उसे तय मानक से ज्यादा ऑक्सीजन देने और समय पर इलाज ना मिलने से चली गई है. इसके बाद साक्षी के माता-पिता ने इलाज के लिए उसे देश के नामी नेत्र विशेषज्ञों को दिखाया लेकिन हर जगह से निराशा हाथ लगी. जिसके बाद माता-पिता ने इलाज में हुई लापरवाही के लिए दोषी अस्पताल के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने का मन बनाया.
19 साल तक चली कानूनी लड़ाई
आंखों की रोशनी जाने के बाद शैलेंद्र ने 2004 में उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज कराया था. 19 साल तक चली इस लड़ाई के बाद उपभोक्ता फोरम भोपाल ने साक्षी और उसके माता-पिता के पक्ष में फैसला सुनाया है. फोरम ने डॉ मुकेश खरे और आयुष्मान अस्पताल को 40 लाख रुपए क्षतिपूर्ति और साल 2004 से वर्तमान तक का ब्याज भुगतान करने के आदेश दिए हैं, जो कि करीब 85 लाख रुपए होते हैं.
ये भी पढ़ें - मेरे प्रेमी को जेल भेजो... SP ऑफिस के सामने महिला ने लगाई फरियाद और काट लिया अपना हाथ