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This Article is From Sep 06, 2023

ग्वालियर : 101 साल पुराना मंदिर, जहां जन्माष्टमी पर 100 करोड़ के आभूषणों से होता है राधा-कृष्ण का श्रृंगार

माधोमहाराज ने 1921 में जन्माष्टमी पर अपने हाथों से राधाकृष्ण की प्रतिमा का श्रृंगार किया. इस दौरान उन्होंने सोने-चांदी के आभूषण और हीरे, मोती, नीलम और पन्ना जैसे रत्नों की मालाएं राधा-कृष्ण को पहनाई और हमेशा के लिए मंदिर को भेंट कर दी.

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ग्वालियर : 101 साल पुराना मंदिर, जहां जन्माष्टमी पर 100 करोड़ के आभूषणों से होता है राधा-कृष्ण का श्रृंगार
100 करोड़ रुपए के आभूषणों से होता है राधा-कृष्ण का श्रृंगार

ग्वालियर : पूरा देश भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी धूमधाम से मना रहा है. देशभर के मंदिरों में अपने-अपने ढंग से जन्मोत्सव के आयोजन हो रहे हैं लेकिन कृष्णजन्मोत्सव का सबसे अनूठा आयोजन ग्वालियर के गोपाल मंदिर में होता है. यहां मौजूद राधाकृष्ण को निहारने के लिए देशभर से लोग पहुंचते हैं और मंदिर की रखवाली के लिए एक दिन के लिए सीसीटीवी कैमरे ही नहीं सैकड़ों सशस्त्र पुलिस वाले भी तैनात किए जाते हैं. इसकी वजह है यहां राधा-कृष्ण को पहनाए जाने वाले बेशकीमती एंटीक रत्नजड़ित गहने जिनकी कीमत 100 करोड़ रुपए है. हर कोई उन्हें इन आभूषणों से सुसज्जित देखना चाहता है.

यह गोपाल मंदिर ग्वालियर के फूलबाग परिसर में स्थित है. करीब 100 साल पुराने इस गोपाल मंदिर की स्थापना 1922 में तत्कालीन सिंधिया शासकों ने करवाई थी. ग्वालियर के महाराज माधवराव सिंधिया प्रथम ने फूलबाग परिसर में सांप्रदायिक सद्भाव प्रकट करने के लिए गोपाल मंदिर, मोती मस्जिद, गुरुद्वारा और थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना करवाई थी. 

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रत्नजड़ित गहने दिए भेंट
माधोमहाराज ने 1921 में जन्माष्टमी पर अपने हाथों से राधाकृष्ण की प्रतिमा का श्रृंगार किया. इस दौरान उन्होंने सोने-चांदी के आभूषण और हीरे, मोती, नीलम और पन्ना जैसे रत्नों की मालाएं राधा-कृष्ण को पहनाई और हमेशा के लिए मंदिर को भेंट कर दी. तब से स्वतंत्रता के बाद तक तक महाराज स्वयं या उनके परिवार के सदस्य हर जन्माष्टमी पर अपने हाथों से राधा-कृष्ण का इन बेशकीमती आभूषणों से श्रृंगार करते आ रहे हैं. स्वतंत्रता के बाद मंदिर का रख रखाव नगर निगम के हाथों चला गया और सुरक्षा कारणों से ये आभूषण ट्रेजरी में जमा कर दिए गए. इसके बाद ये हमेशा के लिए वहीं कैद हो गए. 

2007 में दोबारा शुरू हुई परंपरा
राधा-कृष्ण अपने भव्य स्वरूप में लौटें, इस बात की मांग सदैव उठती रही. आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद 2007 में तत्कालीन मेयर और वर्तमान सांसद विवेक नारायण शेजवलकर ने फिर से जन्माष्टमी पर प्राचीन गहनों से श्रृंगार करने की परंपरा शुरू की जो आज तक जारी है. हर वर्ष जन्माष्टमी पर सौ करोड़ की कीमत के गहने राधा-कृष्ण को पहनाए जाते हैं. गोपाल मंदिर में श्री राधाकृष्ण का श्रृंगार जिन आभूषणों से किया जाता है उनमें भगवान कृष्ण के लिए सोने का मुकुट और राधा जी का ऐतिहासिक मुकुट भी शामिल है. पुखराज और माणिक जड़ित इस मुकुट के बीच में पन्ना लगा हुआ है और इनका वजन 3 किग्रा है.

इन आभूषणों से होगा श्रृंगार 
भगवान के भोजन के लिए सोने, चांदी के प्राचीन बर्तन जिसमें प्रभु की समई, इत्र दान, पिचकारी, धूपदान, चलनी, सांकड़ी, छत्र, मुकुट, गिलास, कटोरी, कुंभकरिणी, निरंजनी आदि शामिल हैं. राधा जी के मुकुट में 16 ग्राम पन्ना रत्न लगे हुए हैं.

इसके अलावा श्रृंगार में राधाकृष्ण का सफेद मोती वाला पंचगढ़ी हार, 7 लड़ी हार जिसमें 62 असली मोती और 55 पन्ने लगे हैं, रियासत काल के हीरे जवाहरातों से जड़ित स्वर्ण मुकुट, पन्ना और सोने की सात लड़ी का हार, 249 मोतियों की माला, हीरे जड़े हुए कंगन, हीरे और सोने की बांसुरी और चांदी का विशाल छत्र शामिल है.

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मंदिर की सुरक्षा में लगे सैकड़ों पुलिसकर्मी
आंकलन है कि इन एंटीक बेशकीमती गहनों की कीमत वर्तमान में 100 करोड़ रुपए से अधिक है इसलिए कड़ी सुरक्षा के बीच साल में सिर्फ जन्माष्टमी के दिन नगर निगम की ओर से बनाई गई कमेटी की देखरेख में सुबह लगभग 10:00 बजे सेंट्रल बैंक के लॉकर से मंदिर लाया जाएगा और वीडियो ग्राफी के साथ भगवान का श्रृंगार किया जाएगा. रात लगभग 1 से 2:00 बजे के बीच वापस इन आभूषणों को कोषालय में सुरक्षा के बीच जमा कर दिया जाएगा.

पूरे मंदिर परिसर में दो सौ से अधिक पुलिस के जवान और अधिकारी सुरक्षा में तैनात किए गए हैं और सीसीटीवी से भी निगरानी की जा रही है.

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