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Parshuram Jayanti 2024: इस दिन मनाई जाएगी परशुराम जयंती, जानें इसका महत्व और शुभ मुहूर्त

Parshuram Jayanti 2024: इस बार परशुराम जयंती 10 मई 2024 शुक्रवार को मनाई जाएगी. इस दिन पूजन का शुभ मुहूर्त क्या है और भगवान परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है? इसकी जानकारी हम आपके साथ साझा कर रहे हैं.

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Parshuram Jayanti 2024: इस दिन मनाई जाएगी परशुराम जयंती, जानें इसका महत्व और शुभ मुहूर्त

Bhagwan Parshuram Jayanti: हर साल बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया पर भगवान परशुराम की जयंती (Parshuram Jayanti) मनाई जाती है. इस दिन को अक्षय तृतीया (Akshay Tratiya) भी कहते हैं, इस बार परशुराम जयंती 10 मई 2024 शुक्रवार को मनाई जाएगी. इस दिन पूजन का शुभ मुहूर्त क्या है और भगवान परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti Kyu manate hain) क्यों मनाई जाती है? इसकी जानकारी पंडित दुर्गेश की मदद से हम आपके साथ साझा करने जा रहे हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में.

परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त

अमृत काल: सुबह- 07:44 से सुबह 09:15 तक
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:51 से दोपहर 12:45 तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:01 से 07:22 तक
संध्या पूजा मुहूर्त: शाम 07:02 से रात्रि 08:05 तक
रविवार: पूरे दिन और रात 

क्रोधी स्वाभाव के हैं परशुराम जी

पौराणिक कथाओं में परशुराम जी की कई कथाओं का वर्णन मिलता है, जिससे मालूम होता है कि परशुराम जी अत्यंत क्रोधी स्वभाव के हैं. साथ ही कथाओं में भी इस बात का वर्णन है कि परशुराम जी अमर हैं और श्रृष्टि के अंत तक वे धरती पर विराजमान रहेंगे.

पूजा करने से होती है साहस में वृद्धि

मान्यता है भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम को साहस का देवता माना जाता है. अक्षय तृतीया को भी परशुराम जयंती के रूप में मनाते हैं. परशुराम जी का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में पुत्रेष्टि से हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन दिए गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है और इस दिन पूजा करने से साहस में वृद्धि होती है और भय से मुक्ति मिलती है.

पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने की ले ली प्रतिज्ञा

सहस्त्रार्जुन के वध के बाद उसके पुत्रों ने प्रतिशोध में परशुराम जी के पिता जमदग्नि का सिर काट दिया था. इस पर परशुराम जी इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने की प्रतिज्ञा ले ली थी. इसके बाद भगवान परशुराम ने 21 बार घूम-घूमकर पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था. इसके बाद ही उन्होंने कुरुक्षेत्र में पिता की अंत्येष्टि की. वहां पितृगणों ने इन्हें आशीर्वाद दिया. बाद में उसी आशीर्वाद से उन्होंने पूरी पृथ्वी प्रजापति कश्यप को दान कर दी और स्वयं तपस्या करने निकल पड़े.

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष व लोक मान्यताओं पर आधारित है. इस खबर में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता के लिए NDTV किसी भी तरह की ज़िम्मेदारी या दावा नहीं करता है.

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