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Parivartini Ekadashi 2024: परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा का क्या है महत्व? जानिए यहां

Parivartini Ekadashi Puja: पौराणिक कथा के मुताबिक, महाभारत दौर में पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत के बारे में पूछा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ब्रह्मा जी के नारद मुनि को सुनाई एक कथा सुनाई. नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा था कि भाद्रपद की एकादशी को भगवान विष्णु के किस रूप की पूजा की जाती है.

Parivartini Ekadashi 2024: परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा का क्या है महत्व? जानिए यहां

Parivartini Ekadashi: भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) कहा जाता है. इसे जलझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन विष्णु भगवान (Lord Vishnu) की पूजा (Puja) खास तौर पर की जाती है. कई विद्वान परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करने की सलाह देते हैं. इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 14 सितंबर, शनिवार को रखा जाएगा. ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी के दिन व्रत कथा (Parivartini Ekadashi Vrat Katha) पढ़ना शुभ होता है. आइए हम आपको पूजा और व्रत (Parivartini Ekadashi Vrat) के बारे में संपूर्ण जानकारी देते हैं.

कब से कब तक है तिथि? Parivartini Ekadashi Date and Time

भाद्रपद शुक्ल एकादशी तिथि 13 सितंबर को रात 10:30 बजे से 14 सितंबर को रात 8:41 बजे तक रहेगी. पूजा का मुहूर्त सुबह 6 बजकर 6 मिनट से है. ऐसे में उदया तिथि को आधार मानते हुए परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 14 सितंबर को रखा जाएगा. इस दिन उत्तराषाढा नक्षत्र और शोभन योग का निर्माण हो रहा है, जिन्हें ज्योतिष में बेहद शुभ माना जाता है.

पूजा विधि Parivartini Ekadashi Puja Vidhi

इस दिन सबसे पहले सुबह में स्नान आदि करके भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं. उसके बाद हाथ में जल और पुष्प लेकर परिवर्तिनी एकादशी व्रत और पूजा का संकल्प करें. फिर शुभ मुहूर्त में भगवान वामन या फिर श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें. उनको गंगाजल, पंचामृत आदि से स्नान कराएं. स्नान कराने के बाद भगवान का फूल, माला, चंदन, पीले वस्त्र, यज्ञोपवीत आदि से श्रृंगार करें. पीले फूल, हल्दी, अक्षत, रोली, तुलसी के पत्ते, गुड़, फल, नैवेद्य आदि अर्पित करें. इसके बाद परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा पढ़ें.

परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा  Parivartini Ekadashi Vrat Katha

पौराणिक कथा के मुताबिक, महाभारत दौर में पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत के बारे में पूछा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें ब्रह्मा जी के नारद मुनि को सुनाई एक कथा सुनाई. नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा था कि भाद्रपद की एकादशी को भगवान विष्णु के किस रूप की पूजा की जाती है. ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बताया कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान हृषिकेश की पूजा होती है.

सूर्यवंश में मान्धाता नाम का एक चक्रवती और महा प्रतापी राजर्षि हुआ करता था. उसके राज्य में सभी सुखी थे. एक बार कर्म फल के कारण उसके राज्य में तीन वर्ष तक अकाल पड़ा. प्रजा के निवेदन पर मान्धाता अकाल का कारण जानने निकल पड़े. इस दौरान उनकी मुलाकात अंगिरा ऋषि से हुई और उन्होंने अपनी परेशानी उन्हें बताई और उसका कारण जानना चाहा. 

अंगिरा ऋषि ने बताया कि सत्य युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्या कर सकते हैं लेकिन तुम्हारे राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा है. मान्धाता ने कहा मैं तपस्या करने के लिए उसे दंड नहीं दे सकता. तब ऋषि अंगिरा ने उन्हें भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत (Ekadashi Vrat) रखने की सलाह दी.

इसके बाद मान्धाता लौट आए और प्रजा के साथ भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखा. इसके बाद राज्य में वर्षा होने लगी और सभी समस्याओं का अंत हो गया. भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि परिवर्तिनी या पद्मा एकादशी का व्रत रखने और कथा सुनने से सभी प्रकार के पाप कट जाते हैं.

इस व्रत का महत्व

इस व्रत को करने से विष्‍णु भगवान आपके आर्थिक कष्‍ट दूर करते हैं और आपके घर को सुख समृद्धि से भर देते हैं. इसके साथ ही परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से धन-धान्य में वृद्धि होती हैऔर जीवन में खुशहाली बनी रहती है.

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