Prayagraj Maha Kumbh 2025: महाकुंभ (Mahakumbh Mela 2025) सनातन धर्म में आस्था की चरम अभिव्यक्ति है. प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का आयोजन अगले साल की शुरुआती महीने 13 जनवरी से 26 फरवरी तक होगा. महाकुंभ की तैयारियां को लेकर अलग-अलग अखाड़ों के द्वारा भूमि पूजन और ध्वजा स्थापित करने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है. महाकुंभ में अखाड़ों की खास भागीदारी होती है और हर अखाड़े की अपनी परंपरा होती है. ऐसे ही 13 अखाड़ों में उज्जैन का श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा (Shri Panch Dashnam Juna Akhara) है, जिसके बारे में अखाड़े के महामंडलेश्वर (Mahamandaleshwar) शैलेषानंद गिरी महाराज ने महाकुंभ को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी दी है.
महामंडलेश्वर ने क्या कुछ कहा?
महामंडलेश्वर शैलेषानंद गिरी ने परिचय देते हुए कहा, "श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा मेरे अखाड़े का नाम है. 13 अखाड़ों में प्राचीनतम इसका परिचय है. आदि गुरु शंकराचार्य ने इसका गठन किया था. उस समय उनकी एक मंशा थी कि संपूर्ण भारत को वह एक स्वास्तिक की तरह संग्रहित करें, तो उन्होंने 13 अखाड़े का गठन किया जिसमें से एक श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा है.
साधू-संतों ने बनाया अपना समूह
यह वह विकट स्थिति थी जब मुगलों का आक्रमण हुआ और बाद में अंग्रेजों का भी आना हुआ. मध्यकाल के इस अस्थिर समय में साधु संतों ने अपना समूह बनाया और समूह बनाकर युद्ध लड़ा जिसे हम गोरिल्ला युद्ध कहते हैं. उसके अंदर उन्होंने शस्त्र और शास्त्र दोनों का उपयोग करा और उसे क्रांति का नाम दिया गया. बंकिम चंद्र के उपन्यास आनंद मठ में इसका यथार्थ के साथ वर्णन है. संन्यासियों ने एकत्रित होकर भारत-माता की प्रतिमा बनाई और उनके समक्ष अभिवादन किया. वह उनकी पूजा करते और आक्रांताओं से युद्ध लड़ते थे.
यह एक छद्म युद्ध था जहां पिरामिड पर चढ़कर एक साधु योद्धा ने जहांगीर को जाकर कटारी भोंक दी थी. यह संन्यासी क्रांति का उच्चतम स्वरूप था. जब राजसी व्यवस्थाएं भी असहाय हो जाती हैं और भारत की अखंडता की रक्षा नहीं कर पा रही थी तो ऐसी स्थिति में साधु संतों ने एक सन्यासी सैनिक बनकर अपनी भूमिका निभाई और भारत की क्रांति को जन्म दिया जिसे हम आजादी की प्रथम क्रांति के रूप में जानते हैं.
क्यों महत्वपूर्ण हैं कुंभ?
महाकुंभ में सबसे ज़्यादा महत्व प्रयागराज का ही क्यों माना जाता है? इस पर महामंडलेश्वर शैलेषानंद गिरी ने कहा, प्रयागराज का कुंभ त्रिवेणी संगम के ऊपर होने वाला एक ऐसा कुंभ है, जहां से कुंभ की शुरुआत हुई थी. राजा हर्षवर्धन ने इसे आहूत किया था. इसलिए प्रयाग को बेहद महत्व दिया जाता है. प्रयाग में होने वाला संन्यास रजोगुणी संन्यास होता है. यानी राजसी व्यवस्था के रूप में एक राजा के रूप में, वहां पर एक संन्यासी का पटाभिषेक होता है या उसका संन्यास ग्रहण होता है.
इसके अलावा प्रयागराज का त्रिवेणी संगम स्नान सबसे बड़ा माना जाता है. कुंभ का स्नान अपने आप में एक बहुत बड़ा औषधीय गुण रखता है. भारतीय सनातन में स्नान में बड़ा महत्व माना गया है. समुद्र को महातीर्थ स्नान कहा गया और समुद्र स्नान के पश्चात त्रिवेणी संगम स्नान का सर्वोच्च स्थान है. सभी अखाड़ों के अलग-अलग स्नान माने गए हैं लेकिन स्नान के क्रम को बार-बार परिवर्तित किया जाता है.
कुंभ में और क्या बेहतर किया जाता हैं या किन बातों का ध्यान महाकुंभ के दौरान रखना चाहिए. इस पर महामंडलेश्वर शैलेषानंद गिरी का मानना है कि कुंभ के दौरान देशाटन, तीर्थाटन और पर्यटन पर खास ध्यान देना चाहिए. यह तीनों चीजें अलग महत्व रखती हैं. देशाटन किसी स्थान के साहित्य और वहां के ज्ञान को अर्जित करने के लिए किया जाता है. तीर्थाटन में अध्ययन से अधिक साधना का भाव होता है. वहीं कुछ स्थान ऐसे हैं, जहां पर हम शांति और मनोरंजन के लिए जाते हैं. ऐसे में महाकुंभ में इन तीनों पर चिंतन होना चाहिए.
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